अन्याय का प्रतिरोध
धर्म का मूल तत्व है - अन्याय का प्रतिरोध। धार्मिक ग्रंथों में मान्यता है कि अत्याचारियों के विनाश के लिए प्रभु मनुष्य के रूप में जन्म लेते हैं। इसका अर्थ यही है कि अत्याचार को मिटाना मनुष्य का धर्म है। अत्याचार के प्रति आंखें मूंद लेना सर्वघातक मूढ़ता के सिवाय और क्या हो सकता है। अत्य्
धर्म का मूल तत्व है - अन्याय का प्रतिरोध। धार्मिक ग्रंथों में मान्यता है कि अत्याचारियों के विनाश के लिए प्रभु मनुष्य के रूप में जन्म लेते हैं। इसका अर्थ यही है कि अत्याचार को मिटाना मनुष्य का धर्म है। अत्याचार के प्रति आंखें मूंद लेना सर्वघातक मूढ़ता के सिवाय और क्या हो सकता है।
अत्याचार के प्रतिरोध के लिए हिंसा अनिवार्य नहीं। निर्भयता, साहस, बहादुरी और एकता की ढाल से ही हम समाज में फैल रही गुंडागर्दी, भ्रष्टाचार-बेईमानी का सामना कर उसके विरुद्ध आवाज उठाकर उन्हें नष्ट कर सकते हैं।
पौराणिक ग्रंथों में भी अन्याय के विरुद्ध आवाज उठाई गई है। ऋग्वेद के अनुसार, जो सुकुमार बालकों को बहकाएं, उन्हें दंड दिलाने में पीछे न हटें, अन्यथा सर्वत्र विनाशकारी परिस्थितियां उठ खड़ी होंगी। अथर्ववेद कहता है, किसी का अन्याय सहन मत करो। स्थि् ाति के अनुसार अनीति के प्रतिकार का मार्ग ढूंढ़ो। दुष्टता करने वालों से संघर्ष करो। दुष्टों के साथ असहयोग, विरोध और संघर्ष की नीति अपनाओ। इसी तरह महाभारत में कहा गया है - जो शक्तिशाली होते हुए भी पाप को दूर करने का प्रयत्न नहीं करते, वे भी उस पाप के भागीदार होते हैं।
(साभार : देवसंस्कृति विश्वविद्यालय, हरिद्वार)