अनमोल वचन
जिसने मन और इंद्रियों सहित पूरा शरीर जीता हुआ है, उस जीवात्मा का तो वह स्वयं अपना ही बंधु है और जिसके द्वारा मन तथा इंद्रियों सहित शरीर नहीं जीता गया है, उसके लिए वह स्वयं के लिए ही शत्रु की तरह बरताव करता है।
बन्धुरात्मात्मनस्तस्य येनात्मैवात्मना जित:।
अनात्मनस्तु शत्रुत्वे वर्तेतात्मैव शत्रुवत् ॥ (6-6)
अर्थ : जिसने मन और इंद्रियों सहित पूरा शरीर जीता हुआ है, उस जीवात्मा का तो वह स्वयं अपना ही बंधु है और जिसके द्वारा मन तथा इंद्रियों सहित शरीर नहीं जीता गया है, उसके लिए वह स्वयं के लिए ही शत्रु की तरह बरताव करता है।
भावार्थ : यहां श्रीकृष्ण इंद्रियनिग्रह की बात कर रहे हैं। वह कहते हैं कि जो व्यक्ति अपनी इंद्रियों के साथ-साथ अपने पूरे शरीर पर विजय पा लेता है, वह स्वयं के भाई की तरह व्यवहार करता है। अर्थात वह उसका कोई अहित नहीं करने देता। जबकि इसके विपरीत, इंद्रियां जिस मनुष्य के वश में नहीं होतीं, वह स्वयं का ही शत्रु बन जाता है और अपना ही अहित कर बैठता है। जैसे कोई व्यक्ति नशे का गुलाम बन गया, फिर नशा उस व्यक्ति को खत्म कर देता है। इसलिए अपनी इंद्रियों को नियंत्रण में करें, तब इच्छाएं भी नियंत्रण में हो जाएंगी और आप वही काम करेंगे, जो आपके हित में होगा।
मन
प्रसिद्ध मनोचिकित्सक इब्राहीम मुकद्दम कहते हैं कि जो लोग स्वयं, अपने साथियों और भविष्य के प्रति सकारात्मक सोच रखते हैंं, वे अधिक लक्ष्यपूर्ण रहते हैं। उनका लक्ष्य ऊंची उड़ान का होता है। उनकी सकारात्मक सोच ही उनके लक्ष्य तक पहुंचने का कारण बनती है।
वचन
विचारों में चाहे विरोधाभास हो, आस्था में चाहे विभिन्नताएं हों, लेकिन हम इंसानों को ऐसी वाणी बोलनी चाहिए कि बात के महत्त्व का पता चल सके।
कर्म
कर्म का आधार विचार हैं, इसलिए बुरे कर्मों को त्यागने से पहले बुरे विचारों का त्याग करना चाहिए।