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हमें अपने जीवन के लिए सकारात्मक विचारों की मोती चुनना चाहिए

हंस की तरह हमें भी अपने जीवन के लिए सकारात्मक विचारों के मोती ही चुनने चाहिए। सकारात्मक विचार और दृढ़ इच्छाशक्ति से हम हर तरह की असहायता पर विजय पा सकते हैं।

By Preeti jhaEdited By: Published: Mon, 22 Dec 2014 02:45 PM (IST)Updated: Tue, 23 Dec 2014 01:24 PM (IST)
हमें अपने जीवन के लिए सकारात्मक विचारों की मोती चुनना चाहिए

हंस की तरह हमें भी अपने जीवन के लिए सकारात्मक विचारों के मोती ही चुनने चाहिए। सकारात्मक विचार और दृढ़ इच्छाशक्ति से हम हर तरह की असहायता पर विजय पा सकते हैं।

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बिट्रेन के पूर्व प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल इतिहासकार, साहित्यकार और कलाकार भी थे। वे एकमात्र ऐसे प्रधानमंत्री थे, जिन्हें साहित्य के लिए नोबेल पुरस्कार मिला था। एक बार उन्हें हाथ में लकवा मार गया। शुरुआत में उन्हें थोड़ी-बहुत चिंता हुई, लेकिन बाद में उन्होंने अपने मन में असीम उत्साह का संचार करते हुए इसे ठीक करने का एक उपाय निकाल लिया। उपचार के साथ-साथ वे प्रतिदिन अपने हाथ को बार-बार आदेश देते हुए कहते - 'तुम्हें ठीक होना है।Ó इस बात का उनके हाथ पर जबर्दस्त असर हुआ और वह ठीक हो गया।

दरअसल, हमारे मन पर विचारों का बहुत अधिक प्रभाव पड़ता है। आप जैसी सोच रखते हैं, उसी के अनुरूप आपका शरीर और हावभाव भी काम करते हैं। यदि आप खुद को हमेशा बीमार घोषित करते रहते हैं या घर-ऑफिस में हमेशा बुझे-बुझे से रहते हैं, तो ऐसे भाव न सिर्फ आपकी कार्यक्षमता को प्रभावित करते हंै, बल्कि जाने-अनजाने अपने इर्द-गिर्द नकारात्मक भाव का संचार भी करते रहते हैं। इससे दूसरे लोग भी प्रभावित होते हैं। वहीं अगर आप सुबह की शुरुआत मन में सकारात्मक भावों के साथ करते हैं, तो कोई भी बीमारी या नकारात्मक भाव आपके पास नहीं फटकता। आप यदि बीमारी की चपेट में आते भी हैं, तो आपकी दृढ़ इच्छाशक्ति उसे जल्द ठीक कर देती है।

दूर करें मन की बीमारी -

एन.के. शर्मा हमेशा बिस्तर पर पड़े रहते हैं। जब भी कोई उनसे कुशल-क्षेम पूछता है, तो उनका सिर्फ एक ही जवाब होता है, 'मैं तो बीमार हूं।Ó थोड़ी-बहुत तकलीफ होने पर वह न सिर्फ खुद बेचैन हो जाते हैं, बल्कि घर के प्रत्येक सदस्य को भी परेशान कर देते हैं। चिकित्सक जब उनकी जांच करते हैं, तो उन्हें शारीरिक रूप से स्वस्थ पाते हैं।

ओशो कहते हैं, 'हम बीमार नहीं होते, बल्कि हमारा मन बीमार होता है। भाव बीमार होता है। अगर कोई व्यक्ति पेट दर्द की शिकायत कर रहा है और बिस्तर पर पड़ा है, तभी दूसरा व्यक्ति यदि उसके बिस्तर पर सांप होने का शोर मचाए, तो लेटा हुआ व्यक्ति तुरंत उठकर भाग जाएगा। पेट दर्द की बात वह उस क्षण बिल्कुल भूल जाएगा। अगर हम हमेशा खुश रहने की कोशिश करें और नकारात्मक भावों को मन में न बैठने दें, तो हम जल्दी बीमार पड़ ही नहीं सकते।Ó स्वामी विवेकानंद कहते हैं कि बीमारी के बहाने बिस्तर पर पड़े रहने की बजाय हमें अपने मस्तिष्क को अच्छे विचारों से भरना चाहिए, क्योंकि हम जैसा सोचते हैं, वैसा ही बनते चले जाते हैं।

रचनात्मकता का सहारा- सुनीता ऑफिस में प्रवेश करते ही मंदी की खबरें सुनाने लगती हैं। ऑफिस बंद हो जाने और पैसे की जबर्दस्त तंगी होने की बातें तो उनकी जुबान पर होती हैं। यह भाव दिन भर उन पर हावी रहता है, जिसकी वजह से उनका चेहरा हमेशा बुझा-बुझा सा दिखता है। उनकी बातें सुन-सुनकर सहकर्मी भी चिंतित हो जाते हैं। दूसरी ओर, लेखिका इला कुमार पति के बार-बार तबादला होने के बावजूद अनजान जगहों में रहने-बसने और अपरिचित लोगों से आत्मीयता जोड़ने में तनिक भी दिक्कत महसूस नहीं करतीं। उन्होंने विषम परिस्थितियों से लड़ने का रचनात्मक तरीका ढूंढ़ निकाला और कविताएं, कहानियां लिखनी शुरू कर दीं। उपनिषद की गूढ़ बातों को उन्होंने रोजमर्रा के जीवन से जोड़कर उपनिषद की कहानियों का पुनर्लेखन किया। वे कहती हैं, 'दरअसल, नकारात्मक विचार प्रकट करना भी एक तरह की मानसिक बीमारी है। मन में जैसे विचार आते हैं, हम उन्हें ही प्रकट करते हैं। जो लोग हमेशा अपने बीमार होने की बात कहते हैं, दरअसल उनके अवचेतन मन में भी 'मैं बीमार हूंÓ चलता रहता है। वे हमेशा नकारात्मक बातें सोचते रहते हैं। अपनी सोच के अनुसार वे खुद को वैसा ही ढाल लेते हैं। मुनि उद्दालक के पुत्र श्वेतकेतु और राजा प्रवाहण के बीच संवाद में भी इस विषय पर चर्चा हुई है। परिस्थितियां कैसी भी हों, हम रचनात्मकता के सहारे उनका हर हाल में मुकाबला कर सकते हैं।Ó

दृढ़ इच्छाशक्ति का प्रभाव एक बच्चे की एक आंख खराब थी। उसे पढ़ने में रुचि थी, इसलिए वह एक आंख से ही पुस्तकें पढ़ा करता था। डॉक्टर ने इससे दूसरी आंख के भी खराब होने की आशंका जताई। परिवारवालों ने जब पढ़ाई करने से रोका, तो उसने दृढ़ होकर जवाब दिया, मैं

पढ़ना-लिखना तब छोड़ूंगा, जब मुझे कोई न कोई प्रतिदिन पुस्तक पढ़कर सुनाता रहेगा और मुझे बीमार नहीं समझेगा।Ó परिवार वाले बच्चे की इस बात पर सहमत हो गए। उसने सिर्फ अपनी दृढ़ इच्छाशक्ति से न सिर्फ अपनी पढ़ाई पूरी की, बल्कि अनेक पुस्तकें भी लिखीं। वह अपने विचार दूसरों से लिखवाता था। उसकी पुस्तकों में जीवन को हर हाल में सकारात्मक नजरिये व आनंदमय तरीके से जीने के तरीके सहज रूप में बताए गए हैं। वह बच्चा कोई और नहीं, बल्कि फ्रांस के प्रसिद्ध दार्शनिक ज्यांपाल सात्र्र थे। महान दार्शनिक अरविंदो कहते हैं, यदि मन को सकारात्मक रखा जाए तो किसी भी बीमारी को न सिर्फ नियंत्रित किया जा सकता है, बल्कि उसे पराजित भी किया जा सकता है।

अगर हम नकारात्मक विचारों से अपने मन को भरते रहेंगे, तो हमेशा बीमारी और बहानेबाजी की बातें ही सोचते रहेंगे। हमें अपने मन को हंस की तरह कर लेना चाहिए, जो सिर्फ बढि़या और सकारात्मक विचारों के मोती ही चुनता है।

मनोवैज्ञानिक आरती आनंद कहती हैं कि यदि प्रत्येक व्यक्ति अपनी दृढ़ इच्छाशक्ति से बीमारी को दूर भगाने की सोच ले, तो वह छोटी-मोटी बीमारी क्या, कभी जानलेवा बीमारियों की चपेट में भी नहीं आएगा। अगर आप किसी कारणवश बीमार पड़ते हैं, तो दवा के साथ-साथ संतुलित खान-पान, सकारात्मक विचार, मुस्कुराहट और परिवार का सहयोग लेकर और देकर अपने जीवन को स्वस्थ और सुंदर बना सकते हैं।


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