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हिंदू धर्म में गंगा स्नान का विशेष महत्व

हिंदू धर्म में गंगा स्नान का विशेष महत्व है। जिस प्रकार संस्कृत भाषा को देववाणी कहा जाता है, उसी प्रकार गंगाजी को देव नदी कहा जाता है। गंगा भारत की ही नहीं बल्कि विश्व की परम पवित्र नदी है। इस तथ्य को भारतीय तो मानते ही है, विदेशी विद्वान भी इसे स्वीकार करते है। प्रचलित मान्यता- ऐसा माना जाता है कि गंगा जी स्वर्गलो

By Edited By: Published: Thu, 20 Jun 2013 12:17 PM (IST)Updated: Thu, 20 Jun 2013 12:25 PM (IST)
हिंदू धर्म में गंगा स्नान का विशेष महत्व

हिंदू धर्म में गंगा स्नान का विशेष महत्व है। जिस प्रकार संस्कृत भाषा को देववाणी कहा जाता है, उसी प्रकार गंगाजी को देव नदी कहा जाता है। गंगा भारत की ही नहीं बल्कि विश्व की परम पवित्र नदी है। इस तथ्य को भारतीय तो मानते ही है, विदेशी विद्वान भी इसे स्वीकार करते है।

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प्रचलित मान्यता-

ऐसा माना जाता है कि गंगा जी स्वर्गलोक से ज्येष्ठ शुक्ल दशमी को पृथ्वी पर उतरी थीं। इसी दिन सूर्यवंशी राजा भगीरथ की पीढि़यों का परिश्रम और तप सफल हुआ था। उनके घोर तप के फलस्वरूप गंगाजी ने शुष्क तथा उजाड़ प्रदेश को उर्वर तथा शस्य श्यामल बनाया और भय-ताप से दग्ध जगत के संताप को मिटाया। उसी मंगलमय सफलता की पुण्य स्मृति में गंगा पूजन की परंपरा प्रचलित है।

भारतीय संस्कृति और गंगा

गंगा, गीता और गौ को भारतीय संस्कृति में विशेष महत्व दिया गया है। प्रत्येक आस्तिक भारतीय गंगा को अपनी माता समझता है। गंगा में स्नान का अवसर पाकर कृत-कृत्य हो जाता है। गंगा दशहरा के दिन गंगा के प्रति अपनी सारी कृतज्ञता प्रकट की जाती है। ऐसा माना जाता है कि गंगा दशहरा के दिन गंगा स्नान और पूजन से समस्त पाप नष्ट हो जाते है। गंगा दशहरा के दिन यदि संभव हो तो गंगा स्नान अवश्य करना चाहिए अथवा किसी अन्य नदी, जलाशय में या घर के ही शुद्ध जल से स्नान करें, पर गंगा जी का स्मरण और पूजन करे।

गंगा पूजन के साथ उनको भूतल पर लाने वाले राजा भागीरथ और उद्गम स्थान हिमालय का भी पूजन नाम मंत्र से करना चाहिए। इस दिन गंगा जी को अपनी जटाओं में समेटने वाले भगवान शिव की भी पूजा करनी चाहिए। संभव हो तो इस दिन दस फूलों और तिल आदि का दान भी करना चाहिए।

पौराणिक कथा

प्राचीन ग्रंथों में वर्णित कथा के अनुसार अयोध्या के सूर्यवंशी राजा सगर ने एक बार अश्वमेघ यज्ञ का अनुष्ठान किया। यज्ञीय अश्व की रक्षा के लिए उनके साठ हजार पुत्र उसके पीछे-पीछे चले। इंद्र ने ईष्र्यावश यज्ञ के अश्व को पकड़वा कर कपिल मुनि के आश्रम में बंधवा दिया। सागर पुत्र जब अश्व को खोजते हुए कपिल मुनि के आश्रम में गए, तो वहां यज्ञ के घोड़े को देखकर ऋषि को भला-बुरा कहा। ऋषि को इंद्र के षड्यंत्र का पता न था अतएव उन्हे भी क्रोध आया और उन्होंने हुंकार से राजकुमारों को भस्म कर दिया।

जब बहुत दिन बीत गए और कोई भी राजकुमार लौट कर नहीं आया तो राजा सगर ने अपने नवयुवक पौत्र अंशुमान को उनका पता लगाने के लिए भेजा। उसने घोड़े का पता लगाया और अपने पूर्वजों की दुर्दशा भी देखी। उसे गरुड़ द्वारा यह भी ज्ञात हुआ कि भस्म हुए राजकुमारों का उद्धार तभी हो सकता है, जब स्वर्गलोक से गंगा जी को पृथ्वी पर लाया जाए और इन सबकी भस्मी का स्पर्श गंगाजल से कराया जाए। अंशुमान ने वैसा ही किया। इसके बाद इसी वंश में आगे चल कर राजा दिलीप के पुत्र भगीरथ परम प्रतापी तथा धर्मात्मा राजा हुए। वह गंगा जी को लाने केलिए गोकर्ण तीर्थ में जाकर कठोर तप करने लगे। उन्होंने अपनी कठोर तपस्या से देवताओं को भी विचलित कर दिया। देवों ने ब्रह्मा जी से प्रार्थना की कि वे भगीरथ को संतुष्ट करे। इसके बाद ब्रह्मा जी देवताओं के साथ राजा के पास गए और उनसे अभीष्ट वरदान मांगने को कहा। भगीरथ ने गंगावरतण की प्रार्थना की। ब्रह्माजी ने प्रार्थना स्वीकार कर ली, किंतु यह भी कहा कि गंगा जी की वेगवती धारा को भूतल पर संभालने का प्रबंध तु6हे करना पड़ेगा। इसके लिए राजा ने घोर तप करके शिवजी को प्रसन्न किया और उन्होंने गंगा की वेगवती धारा को संभालने का कार्य अंगीकार कर लिया। उसके बाद शंकर जी ने अपनी जटा से गंगा जी को रोका और बाद में अपनी जटा को निचोड़ कर बिंदु के रूप में गंगा जी को बाहर निकाला। वह बिंदु शिवजी के निवास स्थान कैलास पर्वत के पास बिंदु सरोवर में गिरा। वहां पर तत्काल गंगाजी सात धाराएं हो गई और वे अलग-अलग दिशाओं में फैल गई।

अथक भागीरथ प्रयत्न

गंगा जी की कृपा से भारत का मानचित्र ही बदल गया है। गंगावतरण के प्रमुख साधक भगीरथ की साधना, तप और अति विकट परिश्रम ने यह अमृत फल प्रदान किया है। उनके इस कठिन प्रयत्न की वजह से ही भगीरथ प्रयत्न एक मुहावरा बन गया है और गंगा जी का एक नाम भागीरथी पड़ गया। गंगावतरण की तिथि गंगा दशहरा के दिन हरिद्वार स्थित हर की पौड़ी में गंगा स्नान, गंगा पूजन और दान का विशेष महत्व है।

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