इसी स्वप्नलोक में रचे गए थे वेद
गैरोलीपातल से सिर्फ तीन किमी के फासले पर है वैतरणी, जिसे अब वेदिनी बुग्याल, वेदिनी कुंड नाम से भी पुकारा जाता है। पश्चिमी-उत्तरी ढलान पर फैला मखमली हरी घास का यह खूबसूरत मैदान सप्तमी पूजन के लिए पहली बार राजजात का पड़ाव बनाया गया है। समुद्रतल से 11004 फीट की ऊंचाई पर अवस्थित यह पड़ाव ही सर्वप्रथम नंदा घुंघटी व त्रिशू
देहरादून। गैरोलीपातल से सिर्फ तीन किमी के फासले पर है वैतरणी, जिसे अब वेदिनी बुग्याल, वेदिनी कुंड नाम से भी पुकारा जाता है। पश्चिमी-उत्तरी ढलान पर फैला मखमली हरी घास का यह खूबसूरत मैदान सप्तमी पूजन के लिए पहली बार राजजात का पड़ाव बनाया गया है। समुद्रतल से 11004 फीट की ऊंचाई पर अवस्थित यह पड़ाव ही सर्वप्रथम नंदा घुंघटी व त्रिशूल हिमशिखरों के निकट होने का आभास कराता है। गैरोली पातल से यात्र गौल्यों होते हुए दो किमी दूरी पर वेदिनी पहुंचती है। एशिया के सबसे खूबसूरत बुग्यालों में शामिल वेदिनी में मखमली घास दूर-दूर तक नजर आती है। सामने खड़ी बर्फीली चोटियां जैसे यात्रियों को सम्मोहित कर अपने मोहपाश में बांध लेती हैं। इन दृश्यों को अनवरत निहारते रहने पर भी मन नहीं भरता। आस्थावानों की मान्यता है कि वेदों की रचना इसी स्थान पर की गई, इसलिए इसका नाम वेदिनी रखा गया। यहां पर भी भगोती नंदा का मंदिर स्थित है। राजजात के समय राजकुंवर अपने पितरों को वेदिनी कुंड में तर्पण देते हैं। वेदिनी के दक्षिणी भाग में पसरा एक और खूबसूरत बुग्याल आली के नाम से जाना जाता है। मूलत: आली गुजराती का शब्द है, जिसका अर्थ विस्तीर्ण घास का मैदान होता है। आली बुग्याल वेदिनी से घोड़े की सपाट पीठ की तरह दिखाई देता है।
गैरोली में जगह नहीं वेदनी गए श्रद्धालु
गैरोलीपातल, जागरण संवाददाता। उच्च हिमालयी क्षेत्र के पहले ही पड़ाव पर सरकारी व्यवस्थाओं की पोल खुल गई। खराब मौसम के बीच आठ हजार से अधिक यात्री गैरोली पातल पहुंच चुके हैं, लेकिन उनके ठहराने के कोई इंतजाम नहीं हैं। ले-देकर जो 26 टेंट लगाए गए हैं, वो डोली-छंतोली लाने वालों के लिए भी पर्याप्त नहीं। जबकि, पड़ाव में लगातार बारिश हो रही है। ऐसे में अधिकांश यात्रियों ने वेदिनी की तरफ रुख कर लिया है।
मौसम बिगड़ने के कारण नंदा पथ के पहले निर्जन पड़ाव गैरोली पातल में ही चुनौतियों का पहाड़ खड़ा हो गया। पड़ाव में सरकार ने सिर्फ 26 टेंट लगाए हैं। इसके अलावा वन विभाग दो टिन शेड हैं, जिनमें बहुत यात्रियों के रुकने की गुंजाइश नहीं। यही नहीं, पीने के पानी की भी कोई व्यवस्था पड़ाव में नहीं है। जिन लोगों के पास अपने टेंट हैं, वही यहां ठहरने की स्थिति में हैं। बाकी वेदिनी बुग्याल की ओर बढ़ गए। हालांकि, लगता नहीं कि वहां भी इतने यात्रियों की व्यवस्था हो पाएगी। ऐसे में अधिकतर यात्रियों को खुले में रात गुजारने को मजबूर होना पड़ेगा।
बता दें कि हाल ही तक सरकार निर्जन पड़ावों की व्यवस्था अपने हाथ में लेने की बात कर रही थी। दावे किए जा रहे थे कि इन पड़ावों में यात्री सुविधाओं के मद्देनजर जरूरी सारी व्यवस्थाएं जुटा दी गई हैं। साथ ही आबादी वाले अंतिम पड़ाव वाण से आगे सीमित संख्या में ही यात्रियों को ले जाने की बात भी की जा रही थी। इसके लिए चेपड़्यूं से ही स्वास्थ्य परीक्षण के साथ बॉयोमैटिक्स पंजीकरण भी शुरू कर दिया गया। लेकिन, यहां तो दो दिन पहले ही हजार के आसपास यात्री वेदिनी पहुंच गए। डोली-छंतौलियों के साथ भी लगभग आठ हजार यात्री चल रहे हैं। जबकि, व्यवस्थाओं की हकीकत गैरोली पातल में ही सामने आ गई। ऐसे में आगे क्या होगा, इसका अंदाजा लगाना कठिन नहीं।
निम ने दुर्गम राह को बनाया सुगम
वाण। उत्तरकाशी के नेहरू पर्वतारोहण संस्थान (निम) ने उच्च हिमालय में पहुंच चुकी नंदा राजजात की राह को और भी सुगम बना दिया है। अब यात्रियों को ऊंचाई वाले इलाकों में दुर्गम रास्तों को रस्सियों के सहारे पार नहीं करना पड़ेगा। विशेषकर ज्यूंरागली नामक स्थान पर स्थितियां बेहतर हो चुकी हैं। निम की टीम ने इन क्षेत्रों में रास्तों का निर्माण कर लिया है। वाण पहुंचे निम के प्रधानाचार्य कर्नल अजय कोठियाल ने यह जानकारी दी। उन्होंने बताया कि निर्जन पड़ावों पर यात्रियों की सुरक्षा के लिए निम की 130 सदस्यीय टीम तैनात की गई है। टीम ने गैरोली पातल, वेदनी बुग्याल, भगुवाबासा, चिड़यानाम, रुपकुंड और ज्यूंरागली में शिविर लगाए हैं। इन शिविरों में कुल 75 सदस्यों को तैनात किया गया है।
उन्होंने बताया कि निम ने हिमालय क्षेत्र में यात्रा मार्ग पर यात्रियों के लिए 250 टेंट लगाए हैं। इनमें से शिला समुद्र, चंदनियाघाट, लाटाखोपड़ी में 35-35 टेंट लगाए गए। इन स्थानों पर यात्रियों के ठहरने के प्रबंध के साथ भोजन का प्रबंध किया गया है। यहां यात्रियों को बुरांश के जूस के अलावा चाय और हलुवा परोसा जाएगा। टीम सभी लोग पर्वतारोहण के विशेषज्ञ हैं और इनमें से दो सदस्य सूबेदार तेजपाल और हवलदार रणजीत सिंह एवेरेस्ट फतह कर चुके हैं। उन्होंने बताया कि टीम किसी भी आपात स्थिति से निपटने के लिए तैयार है। उन्होंने बताया कि सात सदस्यों की मेडिकल टीम भी उनके साथ है।