Move to Jagran APP

मन पर नियंत्रण

मौनी अमावस्या पर मौन व्रत रखकर स्नान-दान और सत्कर्म करने की परंपरा रही है। मौन मन को नियंत्रित करने का बेहतर तरीका माना गया है।?महाकुंभ के दौरान इस पर्व का आध्यात्मिक महत्व और भी बढ़ जाता है..।

By Edited By: Published: Mon, 11 Feb 2013 11:00 AM (IST)Updated: Mon, 11 Feb 2013 11:00 AM (IST)
मन पर नियंत्रण

माघ मास की अमावस्या मौनी अमावस्या कहलाती है। मुनि शब्द से ही मौनी की उत्पत्ति हुई है। मान्यता है कि मौन धारण करके मुनि पद प्राप्त किया जा सकता है। मन को नियंत्रण में करने वाला मुनि है और यह मौन से ही संभव है। इसलिए इस दिन मौन व्रत रखकर लोग स्नान-दान और सत्कर्म करते हैं।

loksabha election banner

मौनी अमावस्या माघ मास में सबसे बड़ा पर्व माना जाता है। ऐसे में तीर्थराज प्रयाग में पूर्णकुंभ होने से इसका माहात्म्य और भी बढ़ जाता है। प्रयाग में प्राचीन काल से आस्था एवं भक्ति की पावन धारा प्रवाहित होती रही है। माघ मास से आरंभ माघ मेला एक मास तक चलता है। पतित पावनी गंगा, यमुना और लुप्त सरस्वती के त्रिवेणी संगम पर प्रति वर्ष श्रद्धालु भक्तों की अनन्य भक्ति धारा प्रवाहित होती है। भारत की बहुविध विविधता इस मेले में सिमट आती है। मौनी अमावस्या का महापर्व जनमानस को आध्यात्मिकता से ओतप्रोत कर देता है। प्रयाग का कण-कण आध्यात्मिक भावना से पुलकित हो उठता है। अंतर्मन की श्रद्धा और समग्र आध्यात्मिक चेतना त्रिवेणी में मानव-मिलन का मंत्र देती है।

मौनी अमावस्या पर्व पर विभिन्न उपासनाओं, संप्रदायों, अखाड़ों, संन्यासियों और संतों के अतिरिक्त गृहस्थ भी भक्ति त्रिवेणी में अवगाहन करते हैं। अद्भुत संत समागम अध्यात्म ज्ञानपुंज वितरित करता है। दार्शनिक, धार्मिक आचार्य, समाज सुधारक एवं धर्म प्रवर्तक अपने-अपने विचार देशव्यापी बनाने के लिए संत समागम तथा मानव-मिलन का प्रयोग करते हैं। एक मास तक चलने वाले कल्पवास में लोग पूजा-अर्चना, धूप-दीप दानादि सत्कार्यो से आत्मसंतोष प्राप्त करते हैं। यहां संतों के सान्निध्य और ज्ञान लाभ से अपनी संस्कृ ति का बोध होता है। यह पर्व अनेकता में एकता का संदेश लाता है। के. एम. मुंशी ने अपनी पुस्तक कुंभ में लिखा है - कुंभ सनातन (हिंदू) धर्म के विभिन्न विचारों, संस्थाओं और संप्रदायों के अंदर से एक होने का प्रतीक है। यहां हर व्यक्ति दूसरे को समझने का, उसे आदर देने का प्रयास करता है। वे चाहे दूसरों के विचार हों या उनके प्रतिपालक संत आदि। कौन जाने भारतीय संस्कृति की परस्पर विरोधी अनेक मुद्राओं के बीच एकता का यही केंद्रीय बिंदु रहा हो।

अथर्ववेद में कुंभ के बारे में एक मंत्र में कहा गया है - पूर्ण कुंभो अधि काल अहितरत। वे पश्यामो बहुधा नु संत:।। से इमा विश्वा भुवनानि पत्यंग। कालं तमाहु: परमे व्योमन्।। अर्थात काल के ऊपर भरा हुआ कुंभ रखा है। काल सुदूर आकाश में स्थित है, परंतु लोकों में चलायमान दिखाई देता है। वेद व्याकरण के प्रणेता यास्क मुनि ने ऋग्वेद में कुंभ की व्याख्या करते हुए आकाश को कुंभ माना है। आकाश मंडल में नव-ग्रहों के संयोग पर कुंभ पर्व होता है। पूर्ण कुंभ वैदिक काल से भारतीय संस्कृति में मंगल का प्रतीक है। देवासुर संग्राम इसी अमरत्व की खोज का द्योतक है।

पूर्ण कुंभ के दौरान मौनी अमावस्या पर प्रयाग में स्नान-दान का अत्यधिक महत्व है। प्रयाग में हर्ष ने भी दान दिया था। चीनी यात्रियों ने भी त्रिवेणी स्नान का उल्लेख किया है। चीनी यात्री ”ेनसांग ने स्नान पर्व का वर्णन अपने यात्रावृत्त में किया है। कन्नौज नरेश हर्ष ने सन् 644 ई. में प्रयाग के संगम तट पर पांच दिन तक दान किया था। ”ेनसांग के अनुसार, प्रत्येक दिन किसी देवता की शोभायात्रा निकाली जाती थी। राजा हर्ष बौद्ध भिक्षुओं और ब्राšाणों को दान देकर भोजन कराता था।

भारत का प्राचीन गौरव गंगा की अमृतमयी धारा से संपृक्त रहा है। प्रयाग में तो तीन नदियों का संगम होता है।?कालिदास के मन को त्रिवेणी संगम ने मोह लिया था। कालिदास इतने भावविभोर हो उठे कि उस सौंदर्य को वे शब्दों में बांध नहीं पाए और उसे तमाम उपमाएं दे गए।

मौनी अमावस्या में मौन रहने का अभिप्राय अपनी इंद्रियों को वश में करके मन पर नियंत्रण पाना है। हम तभी मौनी अमावस्या के पर्व को सार्थक कर सकेंगे।

डॉ. हरिप्रसाद दुबे

मोबाइल पर ताजा खबरें, फोटो, वीडियो व लाइव स्कोर देखने के लिए जाएं m.jagran.com पर


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.