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भगवान शिव ने शरीर में जितनी चीजें धारण की हैं, अचंभित करने वाला है उनका महत्‍व

शिव लिंग बहुत प्राचीन है. वास्तव में सबसे प्राचीन है। शिव लिंग के माध्यम से आप साकार से निराकार के पास जाते हैं।

By Preeti jhaEdited By: Published: Fri, 03 Feb 2017 12:31 PM (IST)Updated: Thu, 23 Feb 2017 09:54 AM (IST)
भगवान शिव ने शरीर में जितनी चीजें धारण की हैं, अचंभित करने वाला है उनका महत्‍व
भगवान शिव ने शरीर में जितनी चीजें धारण की हैं, अचंभित करने वाला है उनका महत्‍व

शिखर पर चन्द्रमा

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शिव तत्व वह तत्व है जो कि मन के परे है। चंद्रमा मन का प्रतीक होता है। मन के परे निर्गुण अवस्था को कैसे कोई अभिव्यक्त कर सकता है? इस निर्वचनीय स्थिति को कैसे कोई समझ सकता है? समझने, अनुभव करने और व्यक्त करने के लिये मानस का थोड़ा उपयोग करना आवश्यक है। अप्रकट, अनंत, अवचेतन अवस्था को प्रकट जगत में व्यक्त करने के लिये कुछ मन की आवश्यकता होती है। इसीलिये, अव्यक्त को व्यक्त करने के लिये शिव के शिखर पर यह पतला सा चन्द्रमा है जो कि मन का द्योतक है।

ब्रह्मज्ञान मन के परे है, परन्तु उसे व्यक्त करने के लिये थोड़े मानस की आवश्यकता है - यही चंद्रशेखर का प्रतीक है।

डमरू

डमरू इस ब्रह्माण्ड का प्रतीक है। ब्रह्माण्ड सदैव फैल रहा है और विलीन हो रहा है। वह फैलता है, विलीन हो जाता है और फिर पुनः उसका विस्तार होता है, यही सृष्टि का नियम है।

यदि आप अपने दिल की धड़कन को देखें तो पायेंगे कि वह केवल एक सीधी रेखा में नहीं चलती, उसकी एक लय है जो ऊपर नीचे होती है। पूरी दुनिया में अलग अलग लय हैं; ऊर्जा ऊपर उठती है और गिरती है और फिर से उसका पुनरुत्थान होता है। डमरू इसी का प्रतीक है। डमरू के आकार को देखो – पहले चौड़ा फैला हुआ है, फिर वह पतला हो जाता है और पुनः चौड़ा हो जाता है ।

डमरू ध्वनि का भी प्रतीक है। ध्वनि लय है, ध्वनि ऊर्जा भी है। यह पूरा ब्रह्मांड केवल तरंगों का पुंज है – उसमें केवल अलग अलग कंपन हैं। प्रमात्र भौतिकी (क्वांटम फ़िज़िक्स) भी यही कहती है – पूरा ब्रह्मांड तरंगों के अलावा कुछ और नहीं है। वह केवल एक ही तरंग है (अद्वैत) है। यानि डमरू ब्रह्मांड की अद्वैत प्रकृति का प्रतीक है।

गले में सर्प

समाधि की अवस्था – जहाँ कुछ भी नहीं होता – केवल चिदाकाश होता है – वही शिव है; वह अवस्था जिस में सजगता रहे परन्तु कोई कर्म नहीं हो। इस सजगता को शिव के गले में एक सर्प डाल कर दर्शित किया गया है। यानि सर्प सजगता का प्रतीक है।

ध्यान की अवस्था में जब आंखें बंद हो जाती हैं तब ऐसा प्रतीत होता है कि व्यक्ति सो रहा है, लेकिन वह सोया हुआ नहीं है, वह सजग है। चेतना के इस अवस्था को व्यक्त करने के लिए शिव भगवान के गले में एक साँप को दिखाया गया है।

त्रिशूल

त्रिशूल चेतना के तीन पहलुओं का प्रतिनिधित्व करता है - जाग्रत, स्वप्न और सुषुप्ति, और यह तीन गुणों का भी प्रतीक है - सत्व, रजस और तमस। शिव द्वारा त्रिशूल धारण करना इसी का प्रतीक है कि शिव (दिव्यता) तीनों अवस्थाओं - जाग्रत, स्वप्न और सुषुप्ति के परे हैं, और फिर भी वह तीनों को धारण किये हुए हैं।

शूल मायने समस्याएँ या दुःख। त्रिशूल का अर्थ है – वह जो सभी पीडाओं का अंत करे। और वह शिव के हाथ में है|

जीवन में तीन स्तर पर ताप मिलते हैं :-

1. आदिभौतिक (शारीरिक)

2. आध्यात्मिक (मानसिक)

3. आदिदैविक (अदृश्य)

इन सभी तापों और पीड़ाओं का अंत त्रिशूल से होता है – और यह शिव के हाथ में है।

सिर से गंगा की धारा

गंगा का अर्थ है ज्ञान; वह ज्ञान जो कि आपकी आत्मा को शुद्ध करे। मस्तक हमेशा ज्ञान का प्रतीक रहा है। दिल प्रेम का प्रतीक है। यदि गंगा का अर्थ प्रेम होता तो वह भगवान शिव के दिल से बाहर निकलती हुई चित्रित करी जातीं। वह मस्तक से निकल रही हैं क्योंकि इसका अर्थ केवल ज्ञान है।

ज्ञान मुक्ति देता है, ज्ञान स्वतंत्रता लाता है, ज्ञान शुद्ध करता है। यह सभी ज्ञान के लक्षण हैं। ज्ञान में गति है, धारा है। इसीलिये गंगा (ज्ञान) को भगवान शिव (दिव्यता) के सिर से बाहर निकलते हुए दर्शाया गया है।

नंदी (बैल) - भगवान शिव के वाहन

दुनिया भर में बहुत समय से बैल को धर्म का एक प्रतीक माना गया है। बैल पर सवार होकर भगवान शिव के चलने का यही तात्पर्य है कि जब आप धर्म और सत्य की राह पर चलते हैं तो दिव्य अनंत चेतना और भोलेभाव वाली चेतना आपके साथ रहती है।

शरीर का रंग नीला क्यों है?

नीला मायने अनंत, आकाश की तरह। नीला रंग अनंत का प्रतीक है, जो असीम और सर्वव्यापी हो। इसका कोई रूप नहीं है। शिव का कोई शरीर नहीं है। शिव किसी व्यक्ति के रूप में कभी नहीं आये। उस अथाह, अनंत दिव्यता को प्रतीकात्मक रूप से दर्शाने के लिये और जनसामान्य को दिव्य स्वरुप बताने के लिये प्राचीन ऋषियों ने शिव का एक रूप बनाया।

ज्ञान का कोई रूप नहीं है परन्तु वह ब्रह्मांड के प्रत्येक कण में समाया हुआ है।

पूरी दुनिया ही शिवमय है – उनका शरीर पूरा ब्रह्मांड है।

शिव लिंग

लिंगम मायने पहचान, वह प्रतीक जिसके द्वारा आप सत्य को पहचान सकते हैं, वास्तविकता जान सकते हैं। जो अभी अदृश्य है परन्तु एक चिन्ह के द्वारा पहचाना जा सकता है वह शिवलिंग है। जब बच्चा पैदा होता है,तो आप कैसे पहचानते हैं कि बच्चा लड़का है या लड़की? केवल शरीर के एक अंग के माध्यम से ही आप बच्चे की पहचान कर पाते हैं कि वह एक लड़का है या लड़की है। यही कारण है कि जननांग को भी लिंगम कहा जाता है।

इसी तरह, आप इस सृष्टि के रचयिता को कैसे पहचान सकते हैं? उनका कोई रूप नहीं है! इसीलिये कहा गया कि उन्हें पहचानने के लिये एक चिन्ह बनाया जाना चाहिए। वह चिन्ह जिसके द्वारा आप नर – मादा में भेद कर पाते हैं उन दोनों के संयोजन से उन प्रभु का एक प्रतीक बनाया गया जिनका अपना कोई रूप या चिन्ह नहीं है – जो इस पूरे ब्रह्माण्ड में सर्वव्याप्त हैं - वही शिवलिंग है।

शिव लिंग बहुत प्राचीन है. वास्तव में सबसे प्राचीन है। शिव लिंग के माध्यम से आप साकार से निराकार के पास जाते हैं। यह एक ऐसा प्रतीक है जो कि सृष्टि और सृष्टिकर्ता दोनों को एक ही रूप द्वारा प्रतिनिधित्व करता है। वह सृष्टि के दोनों सिद्धांत शिव और शक्ति का प्रतिनिधित्व करता है। अप्रकट मौन और प्रकट गतिशीलता की एक साथ अभिव्यक्ति शिव लिंग के रूप में होती है। शिव लिंग सिर्फ शिव नहीं अपितु सम्पूर्ण परम चेतना की पूर्ण अभिव्यक्ति है।

तांडव

सारी सृष्टि एक ही चेतना (शिव) का नृत्य है। एक चेतना ने नृत्य किया और सृष्टि के लाखों प्रजातियों में प्रकट हो गयी। इसलिए यह अनंत सृष्टि भगवान शिव का नृत्य है या शिव तांडव है। पूरी सृष्टि ही शिव का निवास है।

कैलाश - शिव का निवास

शिव का निवास कैलाश पर्वत पर है और शमशान में है। कैलाश का अर्थ है ‘जहाँ केवल उल्लास हो’, और शमशान यानि ‘जहाँ केवल शून्य हो’। दिव्यता शून्य में पायी जाती है या तो किसी उत्सव में । और तुम्हारे भीतर शून्य भी है और उत्सव भी है।

'ओम नमः शिवाय'

ओम नमः शिवाय सबसे शक्तिशाली मन्त्रों में से एक है। यह तंत्र को ऊर्जावान बनाता है और पर्यावरण को शुद्ध करता है। मंत्र वे ध्वनियाँ हैं जिससे चेतना के उत्थान में मदद मिलती है।


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