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लोहड़ी: उमंग का उत्सव

हमारे भीतर की उमंग ही हमें जीवनी-शक्ति प्रदान करती है, जिससे हम बड़े-बड़े काम कर जाते हैं। लोहड़ी (13 जनवरी) उत्साह और उमंग को पुनर्जीवित करने का पर्व है.. पूस (पौष) महीने की अंतिम रात यानी मकर संक्रांति की पूर्व संध्या पर मनाया जाने वाला यह लोक-पर्व अत्यं

By Edited By: Published: Mon, 13 Jan 2014 11:59 AM (IST)Updated: Mon, 13 Jan 2014 12:11 PM (IST)
लोहड़ी: उमंग का उत्सव

हमारे भीतर की उमंग ही हमें जीवनी-शक्ति प्रदान करती है, जिससे हम बड़े-बड़े काम कर जाते हैं। लोहड़ी (13 जनवरी) उत्साह और उमंग को पुनर्जीवित करने का पर्व है..

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पूस (पौष) महीने की अंतिम रात यानी मकर संक्रांति की पूर्व संध्या पर मनाया जाने वाला यह लोक-पर्व अत्यंत महत्वपूर्ण है। इस पर्व की जड़ें पंजाब की प्राचीन कृषि-संस्कृति के भीतर हैं। संभवत: सप्त सिंधु कहलाने वाले पुरातन पंजाब के निवासियों ने इसे शुरू किया होगा। कुछ लोग कहते हैं कि अपनी नई फसल की प्रसन्नता मनाने और नए अन्न को अग्निदेव को अर्पित करने की रीत डाली गई होगी। जो भी हो, तब और अब में एक चीज समान है और वह है खुशी, उत्साह व उमंग। कहा जाता है कि तिल और रोड़ी मिलकर 'तिलौड़ी' बना जो बाद में भाषा के बहाव में बहता हुआ 'लोहड़ी' बन गया।

लोहड़ी पर्व को सती (शिव की पत्नी) के आत्मदाह से भी जोड़ा जाता है। मान्यता के अनुसार, पिता दक्ष द्वारा करवाए जा रहे यज्ञ में पति शिव को आमंत्रित न करने से अपमानित व आहत होकर सती ने यज्ञाग्नि में कूदकर आत्मदाह कर लिया था। क्रुद्ध शिव ने दक्ष प्रजापति का सिर काट कर अग्नि को भेंट कर दिया। देवताओं की अनुनय-विनय से दक्ष को नवजीवन मिला और इसी दिन से यज्ञ में पूर्णाहुति डाली गई।

मध्यकाल में दुल्ला भ˜ी का प्रसंग लोहड़ी से जुड़ गया। उसके परोपकारी कार्यो की अनेक कहानियां पंजाब में प्रचलित हैं। कहते हैं कि एक गरीब की दो सुंदर बेटियां थी-सुंदरी और मुंदरी। इसकी सगाई भी हो चुकी थी, लेकिन एक दिन उस इलाके के हाकिम की कुदृष्टि उन बहनों पर पड़ गई। दुखी पिता की फरियाद दुल्ला भ˜ी तक पहुंची। दुल्ले ने सुंदरी-मुंदरी को शरण में ले उनकी शादी संपन्न करवाई। तब से इस पर्व पर इस घटना को गा-गा कर याद किया जाता है-

सुंदर मुंदरिए, हो।

तेरा कौण विचारा, हो।

दुल्ला भ˜ी वाला, हो।

दुल्ले दी धी विहाई, हो।

लोहड़ी वस्तुत: खुशियां मनाने का पर्व है। जिस घर में संतान जन्मी हो या शादी हुई हो, वे लोहड़ी बांटते हैं। मूंगफलियां, रेवड़ियां, मक्के के भुने दाने, तिल, गुड़ आदि सामग्री को मिलाकर बांटने को ही लोहड़ी बांटना कहा जाता है। घर के दरवाजे के आगे या खुले मैदान में लोहड़ी जलाई जाती है। उपले, लकड़ियां आदि इकट्ठे कर आग जलाई जाती है। सभी लोग सामूहिक रूप से आग के इर्द-गिर्द बैठकर अग्नि को तिल-मूंगफली, रेवड़ी और मक्की के दाने आदि भेंट करते हैं।

कुल मिलाकर, यह पर्व हमारे भीतर उमंग और उत्साह जगाने का काम करता है।

डॉ. राजेंद्र साहिल

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