जिएं वर्तमान को
एक तालाब में दो बत्तखें तैर रही थीं। न जाने क्या हुआ, दोनों आपस में लड़ने लगीं। यह लड़ाई ज्यादा देर तक नहीं चल पाई। वे अलग हुईं और विपरीत दिशा में तैरने लगीं। फिर दोनों ने अपने-अपने पंख तेजी से झाड़े। इस प्रकार लड़ाई के दौरान बनी ज्यादा ऊर्जा को उन्होंने निकाल दिया। अपने पंख
एक तालाब में दो बत्तखें तैर रही थीं। न जाने क्या हुआ, दोनों आपस में लड़ने लगीं। यह लड़ाई ज्यादा देर तक नहीं चल पाई। वे अलग हुईं और विपरीत दिशा में तैरने लगीं। फिर दोनों ने अपने-अपने पंख तेजी से झाड़े। इस प्रकार लड़ाई के दौरान बनी ज्यादा ऊर्जा को उन्होंने निकाल दिया। अपने पंख झाड़ने के बाद वे शांति से तैरती रहीं- जैसे कि कुछ हुआ ही न था।
कल्पना कीजिए, अगर बत्तख में इंसान का दिमाग होता, तो वे जरूर इस लड़ाई को जारी रखतीं। खत्म होने के बाद भी उसे कहानी बनाकर जिंदा रखतीं। तब बत्तख अलग-अलग होकर इस प्रकार सोचतीं - 'पता नहीं अपने को क्या समझती है, क्या तालाब पर उसका नाम लिखा है। उसे मेरी जरा भी फिक्र नहीं है, आखिर मैं भी तो तालाब में रहती हूं। मैं उस पर आज के बाद कभी विश्वास नहीं करूंगी। मुझे पता है, अब भी वह मेरे खिलाफ साजिश कर रही होगी। लेकिन मैं इसे बर्दाश्त नहीं करूंगी। मैं उसे ऐसा सबक सिखाऊंगी, जिसे वह पूरी जिंदगी नहीं भुला पाएगी..।'
इस तरह बत्तख का इंसानी दिमाग कहानियां बुनता रहता। उसके बारे में सोचता रहता। दिनों, महीनों और कई सालों बाद तक यह बात करता रहता। लड़ाई खत्म होने के बाद भी उसके दिमाग में लगातार लड़ाई चल रही होती। जो ऊर्जा इस सब विचारों और बदले की भावनाओं के कारण पैदा होती है, वह अहं की भावनात्मक सोच बन जाती है। इस तरह आप देख सकते हैं कि अगर बत्तख में इंसानी दिमाग होता, तो बत्तख का जीवन कितने कष्टों से भरा होता।
दुख की बात यह है कि ज्यादातर लोग इसी तरह का जीवन जी रहे हैं। उनके मन-मस्तिष्क में कोई भी विपरीत परिस्थिति या घटना वास्तव में कभी खत्म ही नहीं होती। दिमाग द्वारा बनाई गई 'मैं' और 'मेरी कहानी' इसे चलाती रहती है। हम मनुष्य प्रकृति से सीखना नहीं चाहते। जबकि हर प्राकृतिक चीज, हर फूल या पेड़ या हर किसी जानवर के पास हमें देने के लिए जरूरी सीख है। बस हमें केवल रुकना होगा, देखना होगा और सुनना होगा। बत्तख द्वारा दी गई सीख है - अपने पंखों को
झाड़ो। इसे यह भी कह सकते हैं कि अतीत से अपने वर्तमान में लौटो। वह वर्तमान, जिस पर हमारा अधिकार है।
दो जेन साधुओं की कहानी है। तनजान और एकिडो एक गांव की सड़क पर जा रहे थे। सड़क पर बरसात के बाद काफी कीचड़ इकट्ठा हो गया था। गांव के समीप वे एक युवा स्त्री के करीब पहुंचे, जो सड़क पार करने की कोशिश कर रही थी, लेकिन कीचड़ इतना ज्यादा था कि उससे उसका रेशमी किमोनो (वस्त्र) खराब हो जाता। तनजान ने फौरन उस स्त्री को उठाया और सड़क के पार दूसरी तरफ छोड़ दिया। दोनों साधु शांति से चलते रहे। पांच घंटे बाद जब वे मंदिर के पास पहुंचने वाले थे, तब
एकिडो अपने को रोक नहीं पाया। उसने कहा - साधुओं को तो स्त्री को छूना भी नहीं चाहिए, तुमने तो उठाया। इस पर तनजान ने कहा - मैंने तो लड़की को पांच घंटे पहले कुछ सेकेंड के लिए उठाया था, तुम तो उसे अभी तक उठाये हुए हो।
किसी व्यक्ति के लिए जिंदगी कैसी होगी, जो हमेशा एकिडो की तरह वर्तमान की परिस्थितियों से मुकाबला करने में भीतरी तौर पर अक्षम बना रहे और अतीत की बेतुकी-बेवजह की बातें भीतर संचित करता रहे। अधिकतर लोगों की जिंदगी इस धरती पर ऐसी ही है। वे अतीत का कितना भारी बोझ अपने दिमाग में लिए फिरते हैं।
अतीत आपकी यादों में रहता है, लेकिन यादें अपने आप में मुसीबत नहीं हैं। वास्तव में यादें ही हैं, जिनके द्वारा हम अतीत की गलतियों से सीखते हैं। लेकिन जब यादें या बीते समय के विचार आप पर पूरी तरह से हावी हो जाते हैं, तब आपका व्यक्तित्व बीते हुए समय से निर्धारित होने लगता है। हमारी यादें खुद के अहसास से घिरी हैं और हम वह कहानी बना लेते हैं, जो चाहते हैं। जैसा कहानी में साधु के मामले में हुआ। उसने अपने गुस्से का बोझ पांच घंटे तक लगातार ढोया और अपने विचारों से पोषित किया। अधिकतर लोग सारी जिंदगी अपने दिमाग में ढेर सारा कबाड़ ढोते हैं, मानसिक और भावनात्मक दोनों तरह का। वे खुद को शिकायतों, पछतावे, दुश्मनी और अपराधबोध में ही समेट लेते हैं। उनकी यह सोच ही उनका स्वत्व, उनकी पहचान बन जाती है। हर कोई अपने ऊर्जा क्षेत्र में अतीत के भावनात्मक दुखों को इकट्ठा करके रखता है। हम चाहें तो अपने इस दुख के भंडार में और दुख शामिल करना बंद कर सकते हैं। पुरानी भावनाओं को छोड़ना हम सीख सकते हैं। हम अपने पंखों को झाड़कर अतीत में रहना छोड़ सकते हैं। हम सीख सकते हैं कि परिस्थितियों और घटनाओं से कैसे उबरा जाए। यदि हम अपना ध्यान लगातार वर्तमान क्षण पर बनाए रखें, तभी यह संभव है। फिर हमारा व्यक्तित्व ही हमारी पहचान बन जाता है।