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जानें, 2017 में कब और कितने लगेंगे ग्रहण और किस पर कैसा होगा इसका प्रभाव

सूर्य ग्रहण और चन्द्र ग्रहण का प्रभाव प्रत्येक राशि और व्यक्ति पर होता है। यहां तक की इससे प्रकृति भी प्रभावित होती है।

By Preeti jhaEdited By: Published: Thu, 05 Jan 2017 03:10 PM (IST)Updated: Fri, 06 Jan 2017 11:14 AM (IST)

साल 2017 की शुरुआत हो चुकी है। सभी लोगों ने साल 2017 का स्वागत किया। वहीं साल 2017 में ग्रहण की बात करें तो इस साल चार ग्रहण पड़ेंगे। नए साल 2017 में सूर्य, पृथ्वी और चंद्रमा की त्रिमूर्ति दुनिया के खगोल प्रेमियों को ग्रहण के चार रोमांचक दृश्य दिखायेगी। भारत में इनमें से केवल दो खगोलीय घटनाओं के नजर आने की उम्मीद है।

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भारतीय संदर्भ में की गई कालगणना के अनुसार आगामी वर्ष में ग्रहणों की अद्भुत खगोलीय घटनाओं का सिलसिला 11 फरवरी को लगने वाले उपच्छाया चंद्रग्रहण से शुरू होगा। नववर्ष का यह पहला ग्रहण भारत में दिखाई देगा। उपच्छाया चंद्रग्रहण तब लगता है, जब चंद्रमा पेनुम्ब्रा (ग्रहण के वक्त धरती की परछाई का हल्का भाग) से होकर गुजरता है। इस समय चंद्रमा पर पड़ने वाली सूर्य की रोशनी आंशिक तौर पर कटी प्रतीत होती है और ग्रहण को चंद्रमा पर पड़ने वाली धुंधली परछाई के रूप में देखा जा सकता है।

वर्ष 2017 में 26 फरवरी को वलयाकार सूर्यग्रहण लगेगा। हालांकि, सूर्य, पृथ्वी और चंद्रमा की लुकाछिपी का यह रोमांचक नजारा भारत में दिखाई नहीं देगा। आगामी सात अगस्त को लगने वाले आंशिक चंद्रग्रहण का नजारा भारत में देखा जा सकेगा। आगामी 21 अगस्त को लगने वाले पूर्ण सूर्यग्रहण का दुनिया भर के खगोल प्रेमी इंतजार कर रहे हैं। बहरहाल, वर्ष 2017 का यह आखिरी ग्रहण भारत में नजर नहीं आएगा।

2017 में कितने सूर्य ग्रहण और चन्द्र ग्रहण का प्रभाव

सूर्य ग्रहण और चन्द्र ग्रहण का प्रभाव प्रत्येक राशि और व्यक्ति पर होता है। यहां तक की इससे प्रकृति भी प्रभावित होती है। सूर्य संपूर्ण जगत की आत्मा का कारक ग्रह है। वह संपूर्ण चराचर जगत को आवश्यक ऊर्जा प्रदान करता है इसलिए कहा जाता है कि सूर्य से ही सृष्टि है। अतः बिना सूर्य के जीवन की कल्पना करना असंभव है। चंद्रमा पृथ्वी का प्रकृति प्रदत्त उपग्रह है। यह स्वयं सूर्य के प्रकाश से प्रकाशित होकर भी पृथ्वी को अपने शीतल प्रकाश से शीतलता देता है। यह मानव के मन मस्तिष्क का कारक व नियंत्रणकर्ता भी है। सारांश में कहा जा सकता है कि सूर्य ऊर्जा व चंद्रमा मन का कारक है।

राहु-केतु इन्हीं सूर्य व चंद्र मार्गों के कटान के प्रतिच्छेदन बिंदु हैं जिनके कारण सूर्य व चंद्रमा की मूल प्रकृति, गुण, स्वभाव में परिवर्तन आ जाता है। यही कारण है कि राहु-केतु को हमारे कई पौराणिक शास्त्रों में विशेष स्थान प्रदान किया गया है। राहु की छाया को ही केतु की संज्ञा दी गई है। राहु जिस राशि में होता है उसके ठीक सातवीं राशि में उसी अंशात्मक स्थिति पर केतु होता है। मूलतः राहु और केतु सूर्य और चंद्रमा की कक्षाओं के संपात बिंदु हैं जिन्हें खगोलशास्त्र में चंद्रपात कहा जाता है।

ज्योतिष के खगोल शास्त्र के अनुसार राहु-केतु खगोलीय बिंदु हैं जो चंद्र के पृथ्वी के चारों ओर चक्कर लगाने से बनते हैं। राहू-केतू द्वारा बनने वाले खगोलीय बिंदु गणित के आधार पर बनते हैं तथा इनका कोई भौतिक अस्तित्व नहीं है। अतः ये छाया ग्रह कहलाते हैं। छाया ग्रह का अर्थ किसी ग्रह की छाया से नहीं है अपितु ज्योतिष में वे सब बिंदु जिनका भौतिक अस्तित्व नहीं है, लेकिन ज्योतिषीय महत्व है, छाया ग्रह कहलाते हैं जैसे गुलिक, मांदी, यम, काल, मृत्यु, यमघंटक, धूम आदि। ये सभी छाया ग्रह की श्रेणी में आते हैं और इनकी गणना सूर्य व लग्न की गणना पर आधारित होती है। ज्योतिष में छाया ग्रह का महत्व अत्यधिक हो जाता है क्योंकि ये ग्रह अर्थात बिंदु मनुष्य के जीवन पर विषेष प्रभाव डालते हैं। राहु-केतु का प्रभाव केवल मनुष्य पर ही नहीं बल्कि संपूर्ण भूमंडल पर होता है। जब भी राहु या केतु के साथ सूर्य और चंद्र आ जाते हैं तो ग्रहण योग बनता है। ग्रहण के समय पूरी पृथ्वी पर कुछ अंधेरा छा जाता है एवं समुद्र में ज्वार उत्पन्न होते हैं।

इस साल, कुल 4 ग्रहण लगेंगे। पहला ग्रहण उपच्छाया चंद्रग्रहण 11 फरवरी को लगेगा, जो भारत में दिखाई देगा। फिर 26 फरवरी को वलयाकार सूर्यग्रहण लगेगा, जो भारत में दिखाई नहीं देगा। फिर सात अगस्त को आंशिक चंद्रग्रहण का नजारा भारत में दिखेगा। 21 अगस्त को 2017 का पूर्ण सूर्य ग्रहण आखिरी ग्रहण होगा, जो भारत में नजर नहीं आएगा।


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