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वट सावित्री व्रत की कथा

वट वृक्ष का पूजन और सावित्री-सत्यवान की कथा का स्मरण करने के विधान के कारण ही यह व्रत वट सावित्री के नाम से प्रसिद्ध हुआ।सावित्री भारतीय संस्कृति में ऐतिहासिक चरित्र माना जाता है। सावित्री का अर्थ वेद माता गायत्री और सरस्वती भी होता है। सावित्री का जन्म भी विशिष्ट परिस्थितियों

By Preeti jhaEdited By: Published: Sat, 16 May 2015 10:27 AM (IST)Updated: Sat, 16 May 2015 11:00 AM (IST)
वट सावित्री व्रत की कथा

वट वृक्ष का पूजन और सावित्री-सत्यवान की कथा का स्मरण करने के विधान के कारण ही यह व्रत वट सावित्री के नाम से प्रसिद्ध हुआ।सावित्री भारतीय संस्कृति में ऐतिहासिक चरित्र माना जाता है। सावित्री का अर्थ वेद माता गायत्री और सरस्वती भी होता है। सावित्री का जन्म भी विशिष्ट परिस्थितियों में हुआ था। कहते हैं कि भद्र देश के राजा अश्वपति के कोई संतान न थी।

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उन्होंने संतान की प्राप्ति के लिए मंत्रोच्चारण के साथ प्रतिदिन एक लाख आहुतियाँ दीं। अठारह वर्षों तक यह क्रम जारी रहा। इसके बाद सावित्रीदेवी ने प्रकट होकर वर दिया कि 'राजन तुझे एक तेजस्वी कन्या पैदा होगी।' सावित्रीदेवी की कृपा से जन्म लेने की वजह से कन्या का नाम सावित्री रखा गया। कन्या बड़ी होकर बेहद रूपवान थी। योग्य वर न मिलने की वजह से सावित्री के पिता दुःखी थे। उन्होंने कन्या को स्वयं वर तलाशने भेजा। सावित्री तपोवन में भटकने लगी। वहाँ साल्व देश के राजा द्युमत्सेन रहते थे क्योंकि उनका राज्य किसी ने छीन लिया था। उनके पुत्र सत्यवान को देखकर सावित्री ने पति के रूप में उनका वरण किया।

कहते हैं कि साल्व देश पूर्वी राजस्थान या अलवर अंचल के इर्द-गिर्द था। सत्यवान अल्पायु थे। वे वेद ज्ञाता थे। नारद मुनि ने सावित्री से मिलकर सत्यवान से विवाह न करने की सलाह दी थी परंतु सावित्री ने सत्यवान से ही विवाह रचाया। पति की मृत्यु की तिथि में जब कुछ ही दिन शेष रह गए तब सावित्री ने घोर तपस्या की थी, जिसका फल उन्हें बाद में मिला था।पूजा के समय टोकरी में सत्यवान तथा सावित्री की मूर्तियों की स्थापना करें। इन टोकरियों को वट वृक्ष के नीचे ले जाकर रखें। इसके बाद ब्रह्मा तथा सावित्री का पूजन करें।

फिर निम्न श्लोक से सावित्री को अर्घ्य दें

अवैधव्यं च सौभाग्यं देहि त्वं मम सुव्रते।

पुत्रान्‌ पौत्रांश्च सौख्यं च गृहाणार्घ्यं नमोऽस्तु ते॥

तत्पश्चात सावित्री तथा सत्यवान की पूजा करके बड़ की जड़ में पानी दें।इसके बाद निम्न श्लोक से वटवृक्ष की प्रार्थना करें

यथा शाखाप्रशाखाभिर्वृद्धोऽसि त्वं महीतले।

तथा पुत्रैश्च पौत्रैश्च सम्पन्नं कुरु मा सदा॥

पूजा में जल, मौली, रोली, कच्चा सूत, भिगोया हुआ चना, फूल तथा धूप का प्रयोग करें।

जल से वटवृक्ष को सींचकर उसके तने के चारों ओर कच्चा धागा लपेटकर तीन बार परिक्रमा करें।

बड़ के पत्तों के गहने पहनकर वट सावित्री की कथा सुनें।

भीगे हुए चनों का बायना निकालकर, नकद रुपए रखकर सासुजी के चरण-स्पर्श करें।

यदि सास वहां न हो तो बायना बनाकर उन तक पहुंचाएं।

वट तथा सावित्री की पूजा के पश्चात प्रतिदिन पान, सिन्दूर तथा कुंमकुंम से सौभाग्यवती स्त्री के पूजन का भी विधान है। यही सौभाग्य पिटारी के नाम से जानी जाती है। सौभाग्यवती स्त्रियों का भी पूजन होता है। कुछ महिलाएं केवल अमावस्या को एक दिन का ही व्रत रखती हैं।

पूजा समाप्ति पर ब्राह्मणों को वस्त्र तथा फल आदि वस्तुएं बांस के पात्र में रखकर दान करें।

अंत में निम्न संकल्प लेकर उपवास रखें

मम वैधव्यादिसकलदोषपरिहारार्थं ब्रह्मसावित्रीप्रीत्यर्थं

सत्यवत्सावित्रीप्रीत्यर्थं च वटसावित्रीव्रतमहं करिष्ये।


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