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आसान बनाया क्रियायोग का मार्ग

संत श्यामाचरण लाहड़ी ने गृहस्थ लोगों के बीच क्रियायोग को लोकप्रिय बनाया था। भौतिक युग में उपभोक्तावाद और कंप्यूटरीकरण के दौर में गृहस्थ जीवन और साधना के मार्ग के बीच सामंजस्य बैठाना एक बड़ी चुनौती है। महान संत योगीराज श्यामाचरण लाहड़ी (लाहड़ी महाशय) ने इस सत्य को लगभग डेढ़ सौ

By Preeti jhaEdited By: Published: Tue, 06 Oct 2015 01:23 PM (IST)Updated: Tue, 06 Oct 2015 01:30 PM (IST)
आसान बनाया क्रियायोग का मार्ग

संत श्यामाचरण लाहड़ी ने गृहस्थ लोगों के बीच क्रियायोग को लोकप्रिय बनाया था। भौतिक युग में उपभोक्तावाद और कंप्यूटरीकरण के दौर में गृहस्थ जीवन और साधना के मार्ग के बीच सामंजस्य बैठाना एक बड़ी चुनौती है। महान संत योगीराज श्यामाचरण लाहड़ी (लाहड़ी महाशय) ने इस सत्य को लगभग डेढ़ सौ साल पहले जान लिया था। इसीलिए उन्होंने साधना के नियमों को सरल करते हुए आम गृहस्थ के लिए भी क्रियायोग का मार्ग खोल दिया, ताकि वह अपने कार्यों के बीच सुबह और रात नियमित साधना मार्ग पर चल कर परमात्मा को जान सके, जिसके लिए ऋषि-मुनियों ने पूरा जीवन जंगल में तप करते हुए बिता दिया।

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क्रियायोग वही साधना पद्धति है, जिसके बारे में गीता में भगवान श्रीकृष्ण और योगसूत्र में ऋषि पतंजलि ने बताया है। क्रियायोग में साधक अपान वायु को प्राणवायु में और प्राणवायु को अपान वायु में हवन कर योगी

प्राण और अपान दोनों की गति को रुद्ध कर प्राणशक्ति पर नियंत्रण प्राप्त कर लेता है। दुनिया में सबसे अधिक बिकने वाली आध्यात्मिक आत्मकथा च्योगी कथामृतज् (ऑटोबायोग्राफी ऑफ ए योगी) में लेखक परमहंस योगानंद ने क्रियायोग के संबंध में विस्तार से जानकारी दी है।

योगानंद के गुरु स्वामी युक्तेश्वर गिरी लाहड़ी महाशय के शिष्य थे। श्यामाचरण लाहड़ी का जन्म 30 सितंबर,

1828 को पश्चिम बंगाल के कृष्णनगर के घुरणी गांव में हुआ था। पिता गौरमोहन लाहड़ी जमींदार थे, जिनका झुकाव योग साधना की ओर था। मां मुक्तकेशी शिवभक्त थीं। श्यामाचरण बचपन में ही मां के साथ बाहर बने शिव मंदिर में बैठ जाते। काशी में उनकी शिक्षा हुई। विवाह के बाद नौकरी की। कई स्थानों पर रहने के बाद उनका स्थानांतरण रानीखेत (अल्मोड़ा) हो गया। अवकाश में वे पर्वतीय क्षेत्र का भ्रमण करते। कहा जाता है कि एक दिन उन्हें अपने पूर्वजन्म के गुरु महावतार बाबाजी दिखाई दिए। उन्होंने ही उन्हें क्रियायोग का मार्ग गृहस्थों को दिखाने का आदेश दिया था। बाद में काशी आकर उन्होंने क्रियायोग की अलख जगाई। योगानंद को अमेरिका जाकर पश्चिम में योग के प्रचार- प्रसार के लिए उन्होंने ही चुना था। भारत में योगदा सत्संग सोसाइटी क्रियायोग की दीक्षा देती है। अमेरिका में सेल्फ रियलाइजेशन फेलोशिप दी जाती है। कहा जाता है कि महाअवतार बाबाजी ने ही लाहड़ी महाशय को बताया था कि कृष्ण द्वारा अर्जुन को दिया गया योग का ज्ञान ही क्रियायोग है। उन्होंने ही क्रियायोग की जटिलताओं को कम करने का निर्देश लाहड़ी जी को दिया था।


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