विहार पंचमी: समर्पण का संदेश
मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष पंचमी को 'विहार पंचमीÓ एवं 'विवाह पंचमीÓ के नाम से जाना जाता है। दोनों ही अवसर हमें अपने प्रेम-पात्र के प्रति पूर्ण समर्पण का संदेश देते हैं...
ब्रज क्षेत्र में 'विहार पंचमीÓ मनाई जाती है, क्योंकि मान्यता है कि इस दिन श्री बांकेबिहारी (श्रीकृष्ण) को स्वामी हरिदास ने अपने दिव्य गायन से प्रकट किया था। माना जाता है कि संगीत सम्राट तानसेन के गुरु स्वामी हरिदास वृंदावन के निधि वन में संगीत की तान छेड़ते तो राधा-कृष्ण आकर रासलीला करते थे। अपने प्रिय शिष्य विठ्ठल विपुलदेव के आग्रह पर मार्गशीर्ष शुक्ल पंचमी को स्वामी हरिदास ने उनके सम्मुख राधा-कृष्ण को अपनी भक्ति व संगीत से प्रकट कर दिया था। स्वामी हरिदास के आग्रह पर राधा जी श्यामसुंदर में समा गईं। इस प्रकार प्रिय-प्रियतम का युगल स्वरूप श्रीबांकेबिहारी के रूप में सामने आया। वहीं मान्यता है कि सीता-राम का विवाह भी इसी तिथि में हुआ था। मिथिलांचल और अवध में इसे विवाह पंचमी के रूप में मनाया जाता है। ये दोनों ही अवसर हमें अपने साथी के प्रति पूर्ण समर्पण एवं प्रेम का संदेश देते हैं।