घोड़ा और ज्ञानी
ऊपरी दिखावा अहंकार को बढ़ाता है। इसलिए दिखावे के बजाय हमें अपने लक्ष्य पर एकाग्र होना चाहिए।
गुरु जी की दिनचर्या अत्यंत कठोर एवं संयमित थी। उनके सबसे अच्छे शिष्य ने उनका अनुसरण करना शुरू कर दिया। वह बिस्तर के बजाय जमीन पर सोने लगा, अल्प शाकाहार करने लगा और सफेद वस्त्र पहनने लगा। गुरु को शिष्य के व्यवहार में भी परिवर्तन दिखाई दिया। उन्होंने शिष्य से परिवर्तन का कारण पूछा तो वह बोला, 'मैं कठोर दिनचर्या का अभ्यास कर रहा हूं। मेरे श्वेत वस्त्र मेरे शुद्ध ज्ञान की खोज को दर्शाते हैं, शाकाहारी भोजन से मेरे शरीर में सात्विकता बढ़ती है और सुख-सुविधा से दूर रहने पर मैं आध्यात्मिक पथ पर बढ़ता हूं।Ó
गुरु जी शिष्य की बात सुनकर मुस्कुराए और उसे खेतों की ओर ले गए। खेत में एक घोड़ा घास चर रहा था। गुरु जी ने कहा, 'तुम खेत में घास चर रहे इस घोड़े को देख रहे हो। यह श्वेत रंग का है, यह केवल घास-फूस खाता है और अस्तबल में जमीन पर सोता है, क्या तुम्हें इस घोड़े में
जरा-सा भी ज्ञान और सात्विकता दिखती है? तुम्हारी बात मानें, तो यह घोड़ा आगे चलकर बड़ा गुरु बन सकता है।Ó
कथा-मर्म : ऊपरी दिखावा अहंकार को बढ़ाता है। इसलिए दिखावे के बजाय हमें अपने लक्ष्य पर एकाग्र होना चाहिए।