नानक की योग्यता देखकर उनके गुरु भी थे हैरान
पंजाब का एक छोटा सा शहर तलवंडी में कालूराय बेदी की पत्नी तृप्ता देवी के गर्भ से एक शिशु का जन्म हुआ। यह शिशु बालक था, जिसने बड़े होकर अपना समूचा जीवन धार्मिक कट्टरता और धर्म के नाम पर होने वाले अत्याचारों और अनाचारों का विनाश करने के लिए समर्पित
पंजाब का एक छोटा सा शहर तलवंडी में कालूराय बेदी की पत्नी तृप्ता देवी के गर्भ से एक शिशु का जन्म हुआ। यह शिशु बालक था, जिसने बड़े होकर अपना समूचा जीवन धार्मिक कट्टरता और धर्म के नाम पर होने वाले अत्याचारों और अनाचारों का विनाश करने के लिए समर्पित कर दिया।
कालूराय बेदी तलवंडी के शासक राय दुलार के प्रधान पटवारी थे। साथ ही अत्यधिक विश्वासपात्र भी। उनका घर धन-धान्य से भरा हुआ था। इसलिए शिशु का जन्मोत्सव बहुत धूम-धाम से मनाया गया।
तृप्ता देवी ने पुत्री नानकी के जन्म के बाद एक पुत्र को जन्म दिया था। पुत्री का नाम नानकी इसलिए रखा गया क्यों कि उसका अधिक समय ननिहाल में ही गुजरा था। इसलिए बालक को बहिन के नाम का पर्याय देते हुए नानक के रूप में बुलाया जाने लगा।
बचपन से ही नानक में विलक्षण प्रतिभाएं देखने के मिलने लगीं थीं। वह किसी भी पेड़ के नीचे बैठकर 'सत करतार' का जप किया करते थे। पांच वर्ष की उम्र में ही उनकी पढ़ाई शुरु हो गई।
उनके पहले गुरु बने पंडित गोपाल के पास जाने लगे। वह इतने कुशाग्र बुद्धि के थे कि कुछ दिनों में ही पं. गोपाल मान गए कि वह जितने पढ़े लिखे हैं उससे कहीं अधिक ज्ञान नानक जी को है।
इसके बाद नानक जी की फारसी शिक्षा शुरू हुई। उनको फारसी की शिक्षा देने के लिए मौलवी कुतबुद्वीन के पास भेज दिया गया।
लेकिन मौलवी ने कुछ दिनों बाद कालूराय जी को बताया कि यह बालक फारसी का विद्वान है। नानक की योग्यता देखकर उनके दोनों गुरु ही हैरान थे।