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पितरों की शांति के लिए भौमवती अमावस्या का व्रत आज, होगी धन धान्‍य की प्राप्ति

पितरों की शांति के लिए किए जाने वाला भौमवती अमावस्या का व्रत 16 जून होगा। धर्म ग्रंथों के अनुसार मंगलवार को आने वाली अमावस्या को भौमवती अमावस्या कहा जाता है। भौमवती अमावस्या के समय पितृ तर्पण कार्यो को करने का विशेष विधान शास्त्रों में बताया गया है।

By Preeti jhaEdited By: Published: Tue, 16 Jun 2015 12:30 PM (IST)Updated: Tue, 16 Jun 2015 12:45 PM (IST)

पितरों की शांति के लिए किए जाने वाला भौमवती अमावस्या का व्रत आज 16 जून होगा। धर्म ग्रंथों के अनुसार मंगलवार को आने वाली अमावस्या को भौमवती अमावस्या कहा जाता है। भौमवती अमावस्या के समय पितृ तर्पण कार्यो को करने का विशेष विधान शास्त्रों में बताया गया है।

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अमावस्या को पितरों के निमित पिंडदान और तर्पण किया जाता है। मान्यता है कि भौमवती अमावस्या के दिन पितरों के निमित पिंडदान और तर्पण करने से पितर देवताओं का आशीर्वाद मिलता है और घर में धन धान्य की वृद्धि होती है। अमावस्या के दिन व्रत रखकर पितरों के लिए तर्पण करना चाहिए और भगवान विष्णु के पूजन से देवी लक्ष्मी की अपार कृपा प्राप्त होती है।

11 शास्त्रों में बताया है पितृ तर्पण कार्यो के लिए है विशेष विधान

क्या है महत्व -

भौमवती अमावस्या के दिन तीर्थ स्नान, दान करने का विशेष महत्व कहा गया है। भौमवती अमावस्या के दिन दान करने का सर्वश्रेष्ठ फल की प्राप्ति होती है। देव ऋषि व्यास के अनुसार इस तिथि में स्नान ध्यान करने से एक हजार गोदान के समान पुण्य फल प्राप्त होता है। भौमवती अमावस्या पर हरिद्वार, काशी जैसे तीर्थ स्थलों और पवित्र नदियों पर सूर्योदय से लेकर सूर्यास्त की अवधि में स्नान करने करने से सभी मनोकामनाओं की पूर्ति होती है।

कष्टों से मिलती है मुक्ति -भौमवती अमावस्या तिथि के दिन विशेष रूप से पितरों के लिए किए जाने वाले कार्य किए जाते हैं। इस दिन पितरों के लिए व्रत और अन्य कार्य करने से उनकी आत्मा को शांति प्राप्त होती है। शास्त्रों में अमावस्या तिथि का स्वामी पितृदेव को माना जाता है। अमावस्या के दिन तीर्थ स्नान, जप, तप और व्रत के पुण्य से ऋण या कर्ज और पापों से मिली पीड़ाओं से छुटकारा मिलता है। इसलिए यह संयम साधना और तप के लिए श्रेष्ठ दिन माना जाता है। पुराणों में अमावस्या को विशेष व्रतों के विधान है जिससे तन, मन और धन के कष्टों से मुक्ति मिलती है।

भगवान विष्णु की पूजा से मिलता है मनवांछित फल- आषाढ़ मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी के दिन योगिनी एकादशी व्रत का विधान है। इस बार 13 जून को योगिनी एकादशी का व्रत किया जाएगा। इस शुभ दिन के उपलक्ष्य पर विष्णु भगवान जी की पूजा उपासना करने से मनवांछित फल की प्राप्ति होती है। इसके अलावा पीपल के पेड़ की पूजा करने का भी विशेष महत्व शास्त्रों में बताया गया है। व्रत को करने से समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं तथा मुक्ति प्राप्त होती है। व्रत से पहले की रात्रि में ही व्रत नियम शुरू हो जाते हैं। यह व्रत दशमी तिथि कि रात्रि से शुरू होकर द्वादशी तिथि के प्रातकाल में दान कार्यो के बाद समाप्त होता है।

होते हैं पाप दूर-

योगिनी एकादशी के व्रत से समस्त पाप दूर होते है। भगवान नारायण की मूर्ति को स्नान कराकर पुष्प, धूप, दीप से आरती उतारनी चाहिए तथा भोग लगाना चाहिए।

क्या है नियम-

एकादशी तिथि के दिन प्रात स्नान आदि के बाद व्रत का संकल्प लिया जाता है। स्नान करने के लिए मिट्टी का प्रयोग करना शुभ रहता है। कुंभ स्थापना की जाती है, इसके ऊपर श्री विष्णु जी कि प्रतिमा रख कर पूजा की जाती है और धूप, दीप से पूजन किया जाता है। व्रत की रात्रि जागरण करना चाहिए। दशमी तिथि की रात्रि से ही व्रती को तामसिक भोजन का त्याग कर देना चाहिए और इसके अतिरिक्त व्रत के दिन नमक युक्त भोजन भी नहीं किया जाता है। इसलिए दशमी तिथि की रात्रि में नमक का सेवन नहीं करना चाहिए।


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