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अनन्य भक्त चैतन्य महाप्रभु

श्रीकृष्ण के अनन्य भक्त चैतन्य महाप्रभु ने छुआछूत और ऊंच-नीच के भेदभाव को मिटाकर प्रेम में निमग्न रहने की शिक्षा दी। पंद्रहवीं शताब्दी में फाल्गुन शुक्ल पूर्णिमा को चैतन्य महाप्रभु का जन्म पश्चिम बंगाल के नादिया गांव में हुआ। इसे अब मायापुर कहते हैं। वे राधा-कृष्ण के अनन्य

By Edited By: Published: Tue, 22 Apr 2014 04:32 PM (IST)Updated: Tue, 22 Apr 2014 04:39 PM (IST)
अनन्य भक्त चैतन्य महाप्रभु

श्रीकृष्ण के अनन्य भक्त चैतन्य महाप्रभु ने छुआछूत और ऊंच-नीच के भेदभाव को मिटाकर प्रेम में निमग्न रहने की शिक्षा दी।

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पंद्रहवीं शताब्दी में फाल्गुन शुक्ल पूर्णिमा को चैतन्य महाप्रभु का जन्म पश्चिम बंगाल के नादिया गांव में हुआ। इसे अब मायापुर कहते हैं। वे राधा-कृष्ण के अनन्य भक्त थे। हरे कृष्ण-हरे कृष्ण का जाप उन्होंने जन सामान्य की जुबान पर ला दिया। उन्होंने वैष्णवों के गौड़ीय संप्रदाय की आधारशिला रखी। भक्तगण प्यार से उन्हें गौरा और निमाई भी कहा करते थे। दरअसल, गौर वर्ण होने की वजह से उन्हें गौरांग, गौर हरि, गौर सुंदर भी कहा जाता था। मान्यता है कि नीम के पेड़ के नीचे उनका जन्म हुआ, इसलिए भक्त उन्हें निमाई कहा करते थे। चैतन्य महाप्रभु के जीवन और उनकी भक्ति रचना पर कई पुस्तकें लिखी गई हैं। उनमें से एक है 'चैतन्य चरितअमृत'। माना जाता है कि बहुत छोटी उम्र से ही वे कृष्ण के भक्ति गीत गाने में निपुण थे। चौदह-पंद्रह वर्ष की अवस्था से ही वे अर्थ सहित संस्कृत के श्लोक सुना देते। उन्होंने भजन गायकी की एक नई शैली को जन्म दिया और राजनीतिक अस्थिरता के दिनों में हिंदू-मुस्लिम एकता और सद्भावना पर बल दिया। उन्होंने लोगों को जाति-पांति, ऊंच-नीच की भावना को दूर करने की शिक्षा दी तथा विलुप्त होते वृंदावन को फिर से बसाया। घूम-घूम कर उनके कीर्तन करने का व्यापक और सकारात्मक प्रभाव आज पश्चिमी जगत तक है।

एक बार वे अपने पिता का श्राद्ध कर्म करने गया पहुंचे और वहीं उन्हें वैराग्य उत्पन्न हो गया। साथ ही, वहां उन्हें अपने गुरु ईश्वर पुरी से भी मिलने का मौका मिला। कुछ ही दिनों बाद उन्होंने संन्यास ले लिया और भारत भ्रमण पर निकल पड़े। उन्होंने अपने जीवन के लगभग चौबीस वर्ष पुरी (उड़ीसा) में बिताया। उनके अनुसार, श्रीकृष्ण ही परम सत्य हैं, जिनमें जगत की सारी शक्तियां निहित हैं। प्रत्येक व्यक्ति उनका ही अंश है और श्रीकृष्ण से प्रेम करने पर ईश्वर से एकाकार हो सकता है। मृदंग की ताल पर कीर्तन करने वाले चैतन्य महाप्रभु प्रेम की चेतना के संवाहक बने और लोगों को प्रेम और भक्ति के साथ रहना सिखाया।


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