मधुर हो जीवन का हर क्षण
जिस प्रकार हमेशा प्रत्यंचा तनी रहने से धनुष बेकार हो जाता है, उसी प्रकार यदि हम हर वक्त तनाव में रहेंगे, तो हमारी रचनात्मकता क्षीण हो जाएगी। आइए, मन पर भारी सारे बोझ हटा लें और मधुर बना लें जीवन का हर क्षण...।
जिस प्रकार हमेशा प्रत्यंचा तनी रहने से धनुष बेकार हो जाता है, उसी प्रकार यदि हम हर वक्त तनाव में रहेंगे, तो हमारी रचनात्मकता क्षीण हो जाएगी। आइए, मन पर भारी सारे बोझ हटा लें और मधुर बना लें जीवन का हर क्षण...।
एक बच्चे को अपना मनपसंद खिलौना मिल गया। बहुत प्रतीक्षा के बाद मिला था, इसलिए खिलौना पाते ही वह उससे खेलने में मगन हो गया। अचानक उसका नाजुक हाथ उस खिलौने के बीच में फंस गया। वह दर्द से कराहने लगा। वह मदद के लिए पिता के पास पहुंचा। दरअसल, बच्चे की मुट्ठी बंद थी, इसलिए वह अपना हाथ बाहर नहीं निकाल पा रहा। दरअसल, बच्चा अपनी मुट्ठी में एक सिक्का पकड़े था, इसलिए वह अपनी मुट्ठी खोलने को तैयार नहीं था। उसे डर था कि मुट्ठी खुलते ही सिक्का खिलौने के अंदर ही छूट जाएगा! अंतत: पिता को वह कीमती नया खिलौना तोड़ना पड़ा।
दरअसल, छूट जाने की यह कसक और फिर से न मिल पाने का तनाव केवल बच्चे में ही नहीं, हम सबको है। आज हर जगह इसी की आपाधापी है, इसी छूट जाने या पा लेने के मोह के इर्द-गिर्द घूमती है हमारी पूरी दिनचर्या। अचानक पता चलता है कि यदि सिक्का पहले ही बाहर रख दिया जाता, तो वह कीमती खिलौना भी बच सकता था और उस पैसे से दूसरा खिलौना भी खरीदा जा सकता था...।
होकर लहरों पर सवार...
सुबह से शाम तक जिन चीजों के लिए हम भाग रहे होते हैं, वह सिर्फ एक ही चीज है-प्रसन्नता। इसी प्रसन्नता के लिए तमाम हथकंडे अपनाने के बाद भी जब मन उद्विग्न ही रहता है, तो तनाव होना लाजिमी है। हर जगह, हर उस स्थान पर जहां हमें लगता है कि मन को सुकून मिलेगा, वहां भी बेचैनी पीछा नहीं छोड़ती। अंतत: थककर हम समय को दोष देने लगते हैं। युग को भला-बुरा कहते हैं। पर यही सच नहीं है। वास्तव में अशांति और मन की इन उद्विग्न लहरों पर सवार होकर भी अपने भीतर शांति का उजास पैदा किया जा सकता है। जब ऐसा होता है तब हम समझ पाते हैं कि अब तक की सारी भागदौड़ व्यर्थ थी। मन की प्रसन्नता और लक्ष्य प्राप्ति के लिए ज्यादा हाथ-पांव मारने की जरूरत कहां थी! सुकरात ने भी कहा है-'कठिनाइयां और अव्यवस्था के बीच आनंद ढूंढ़ने का प्रयत्न करना ही जिंदगी की असली खूबसूरती है। इन कठिनाइयों और ऐसे प्रयासों के बगैर जिंदगी का कोई मोल नहीं।Ó
सीमित संसाधनों के बीच
हमारे सारे प्रयत्न संसाधनों को जुटाने से जुड़े होते हैं। हम इसलिए भी तनाव में रहते हैं कि हमारे पास पर्याप्त संसाधन नहीं हैं। आम सोच होती है पर्याप्त संसाधन होंगे तभी लक्ष्य हासिल हो सकेंगे। इसलिए हममें से अधिकांश उस बड़े और अच्छे वक्त का इंतजार करते रहते हैं, जो कभी आता ही नहीं। वास्तव में लक्ष्य कितना भी बड़ा हो, वह संसाधनों का मोहताज नहीं होता। परिस्थितियां कैसी भी हों, उसे अपने अनुरूप बनाने की कला हो, तो हम हर लक्ष्य को हासिल कर सकते हैं। ऐसा करके हम खुद की ही नहीं, औरों की जिंदगी में भी रोशनी बिखेर सकते हैं। महापुरुषों की जिंदगी में झांकें, उनके प्रसंगों को अपनी जिंदगी से जोड़कर देखने का प्रयत्न करें तो हमारी तमाम उलझनें सुलझ सकती हैं। थॉमस एडिसन एक बढि़या उदाहरण हैं, जिन्होंने पूरी जिंदगी संघर्ष में ही गुजारी, पर थके कभी नहीं। तभी सैकड़ों बार असफल होने के बावजूद इतने आविष्कार किए, जिनका कर्ज दुनिया ताउम्र नहीं चुका सकती। मैडम क्यूरी की जिंदगी की तरफ नजर डालें तो वहां से भी यही सीख मिलती है। मैरी क्यूरी नोबेल पुरस्कार जीतने वाली पहली महिला थीं। उन्होंने सीमित संसाधन में ही शिक्षा पूरी की। कहा जाता है कि उच्च शिक्षा के दौरान भूख से आई कमजोरी के कारण अक्सर वे बेहोश हो जाती थीं। अपने पति पियरे क्यूरी के साथ मिलकर वे जहां शोध करती थीं, वह कोई भारी-भरकम संसाधनों से लैस प्रयोगशाला नहीं थी। एक टूटी हुई छत वाला मकान था, जिससे बरसात में पानी टपकता रहता था।
जैसे भी हैं, अच्छे हैं
अंतस की ऊर्जा अनंत है। स्वामी विवेकानंद इसी असीम ऊर्जा के इस्तेमाल पर सदैव जोर देते रहे। पर तनाव की मोटी चादर मन पर ऐसे भारी है कि हमारी ऊर्जा ढकी रह जाती है। हम अपने शारीरिक और मानसिक संसाधनों का बहुत थोड़ा-सा हिस्सा ही इस्तेमाल कर पाते हैं। एक रिक्शा चालक की बेटी बढि़या मिमिक्री करती थी। पर इस दौरान उसके दांत बाहर नजर आते थे। एक बार स्थानीय स्तर पर टैलंट हंट शो में विजेता बनी तो उसकी चर्चा दूर-दूर तक गई। एक दिन उसके पास एक प्रसिद्ध टीवी चैनल के टैलंट हंट शो से फोन आया। वह बुलावे से फूली न समाई, पर दूसरी तरफ यह सोच कर दुखी हो गई कि वह बदसूरत है, इसलिए चयनित न हो सकेगी। ऑडिशन के दिन तो उसके होश उड़े हुए थे। पर अचानक करिश्मा हो गया, उसका चयन हो गया। उसका चयन जिन जजों ने किया उन्होंने एक ही बात कही, 'खुद को स्वीकार करो। लोग तुम्हारे बाहर हुए दांत को नहीं देखेंगे, वे तुम्हारी क्षमता, तुम्हारी प्रतिभा को देखेंगे।Ó बस, यही मंत्र था, जिसे लड़की ने अपने जीवन का मंत्र मान लिया।