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ईस्टर (20 अप्रैल) पर विशेष.. अंधकार में प्रकाश

मान्यता है कि प्रभु ईसा मसीह अपनी मृत्यु के तीन दिनों बाद जी उठे थे। इस अवसर को ईस्टर के रूप में मनाया जाता है। ईसा के पुनरुत्थान की घटना हमें अपने जीवन के अंधेरे में प्रकाश भरने की प्रेरणा देती है। ऐ नारी, तू क्यों रोती है? किसको ढूंढती है?' यही थे वे पहले शब्द, जिनके जरिये प

By Edited By: Published: Sat, 19 Apr 2014 04:37 PM (IST)Updated: Sat, 19 Apr 2014 04:44 PM (IST)

मान्यता है कि प्रभु ईसा मसीह अपनी मृत्यु के तीन दिनों बाद जी उठे थे। इस अवसर को ईस्टर के रूप में मनाया जाता है। ईसा के पुनरुत्थान की घटना हमें अपने जीवन के अंधेरे में प्रकाश भरने की प्रेरणा देती है।

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ऐ नारी, तू क्यों रोती है? किसको ढूंढती है?' यही थे वे पहले शब्द, जिनके जरिये पुनर्जीवित होने के बाद ईसा मसीह ने एक रोती हुई स्त्री से पूछे थे। यही प्रश्न हमारे आस-पास लगातार उभरता रहता है। आज हम दुख उठा रहे हैं। हमें शांति नहीं मिलती, मन में व्याकुलता रहती है। हम जानते नहीं कि अपने दुखों को लेकर कहां जाएं, किससे कहें। हम सभी लोग शांति की तलाश में इधर-उधर भटकते रहते हैं।

यह सब हमारे अपने स्वार्र्थो के कारण हो रहा है, क्योंकि हम अंतहीन दौड़ में शामिल हो गए हैं, जहां हर तरफ बेरुखी, निराशा, हताशा व चिंता का माहौल है। ईसा मसीह ने कहा है- 'तुम पृथ्वी के नमक हो, परंतु यदि नमक का स्वाद बिगड़ जाए तो वह किस वस्तु से नमकीन किया जाएगा? उसे फेंकना ही उचित है।' आज हमने अपने स्वभाव को नमकीन कर लिया है। हम प्रेम व आत्मीयता खो चुके हैं। भौतिक संसाधनों को पाने के लिए जीवन को ईष्र्या, क्लेश, वैर, द्वेष और शत्रुता का अखाड़ा बना बैठे हैं। तभी तो आपसी प्यार व सौहार्द की जगह हमारे जीवन में चिंता और अकेलापन घर कर रहा है।

ईसा मसीह का पुनरुत्थान हमें बहुत कुछ समझाने की क्षमता रखता है। बाइबिल के अनुसार, सप्ताह के पहले दिन पौ फटते ही मरियम मगदलिनी और दूसरी मरियम कब्र देखने आईं। उस समय एक बड़ा भूंकप हुआ, जब प्रभु का एक दूत स्वर्ग से उतरा और पास आकर उसने पत्थर को लुढ़का दिया और उस पर बैठ गया। उसका रूप बिजली जैसा और उसके वस्त्र उज्जवल थे। स्वर्गदूत ने स्त्रियों से कहा कि तुम मत डरो, मैं जानता हूं कि तुम ईसा मसीह को ढूंढ रही हो, जो क्रूस पर चढ़ाया गया था। स्वर्गदूत स्त्रियों से कहता है कि कब्र में झांक कर देखो। डरो मत। मैं जानता हूं कि तुम क्रूस पर चढ़ाए गए ईसा मसीह को खोजती हो, वह यहां नहीं हैं, वह तो फिर से जीवत हो गए हैं।

यह दृष्टांत मृत्यु को नहीं, बल्कि जीवन को जानने का है। कब्र का पत्थर इसलिए लुढ़कता है, ताकि हम जीवन के रहस्य को जान सकें। एक अंधेरी गुफा बोगदे (उजाले वाले स्थान) में बदल जाती है, ताकि हम ईश्वर के हृदय में प्रेम और जीवन की साम‌र्थ्य को देख सकें। अंधेरा कितना भी घना हो, लेकिन हमें प्रेम व आत्मीयता उजाले की ओर ले जाते हैं। वह पत्थर इसलिए नहीं लुढ़काया गया है कि प्रभु बाहर आ सके, परंतु इसलिए कि हम ईसा मसीह की दृढ़ता और प्रतिज्ञा के दर्शन कर सके।

कब्र पूर्ण रूप से खाली नहीं है। प्रभु की देह वहां नहीं है, परंतु वह स्थान स्वर्गदूत के वचनों से भरा है। वे वचन, जो साम‌र्थ्य, आनंद व आशा से भरे हुए हैं। 'वह यहां नहीं हैं, परंतु अपने वचन के अनुसार जी उठे हैं, आओ यह स्थान देखो, जहां प्रभु पडे़ थे और शीघ्र जाकर उनके शिष्यों से कहो कि वह मृतकों में से जी उठा है।'

हमारे साथ भी ऐसा होता है। हम प्रेम, समरसता और सौहार्द खोकर मृतक के समान ही तो हो जाते हैं। इन्हें अपनाकर हमें पुनर्जीवन मिल सकता है और दुखों का अंधेरा भी खत्म हो सकता है। अपनी-गलत इच्छाओं, लोभ और अहंकार के चलते हम ईश्वर की आज्ञाओं का उल्लंघन कर वैमनस्य फैला रहे हैं। इन परिस्थितियों से बाहर निकलने के लिए ईसा मसीह ने (लूका 6:20-23 में वर्णित) में कहा है- मनुष्य मन से दीन बने, नम्र रहे, दयावंत हो। वह मन से शुद्ध रहे, मेल कराने वाला हो और सर्वप्रमुख एक-दूसरे से प्रेम रखे। दरअसल, शांतिपूर्ण जीवन व्यतीत करने का यही मूलमंत्र है।

मानसिक संघर्ष और दबाव के इस वक्त में हमें सिर्फ प्रभु के पुनरुत्थान को याद रखना है। कब्र के मुंह से पत्थर को इसलिए नहीं लुढ़काया गया है कि प्रभु बाहर आ सकें, परंतु इसलिए कि हम अंदर जा सकें और देख सके कि घने अंधकार में प्रकाश का साम्राज्य स्थापित हो सकता है।

आर.एल. फ्रांसिस


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