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क्या आप जानते है सूर्य और योग का क्या नाता है

हाल ही में संयुक्त राष्ट्र ने हर साल 21 जून को विश्व योग दिवस मनाने की घोषणा की। इस तारीख में सूर्य की ऊर्जा सबसे प्रखर होती है और योग हमारे भीतर की ऊर्जा को जगाने का काम करता है...

By Preeti jhaEdited By: Published: Sat, 10 Jan 2015 03:59 PM (IST)Updated: Sat, 10 Jan 2015 04:07 PM (IST)

हाल ही में संयुक्त राष्ट्र ने हर साल 21 जून को विश्व योग दिवस मनाने की घोषणा की। इस तारीख में सूर्य की ऊर्जा सबसे प्रखर होती है और योग हमारे भीतर की ऊर्जा को जगाने का काम करता है...

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संयुक्त राष्ट्र ने ऐतिहासिक बहुमत से हाल ही में 21 जून की तारीख को 'विश्व योग दिवसÓ घोषित किया है। इससे पहले 2011 में विश्व के कुछ योग गुरुओं ने बेंगलुरू में हुए अपने सम्मेलन में 21 जून को 'योग दिवसÓ के रूप में मनाने का निर्णय लिया था। सवाल है कि 21 जून ही क्यों? इसके उत्तर में ही धर्म एवं विज्ञान की परस्पर निर्भरता स्पष्ट होती है। 21 जून को पृथ्वी पर सूर्य की उपस्थिति सबसे लंबे समय तक होती है।

सूर्य ऊर्जा का सबसे बड़ा और अक्षय श्चोत है। पृथ्वी पर उसकी लंबी उपस्थिति उस तिथि को पृथ्वी पर सबसे अधिक ऊर्जा की मौजूदगी को सुनिश्चित करती है। हम अपनी योग की पद्धति एवं उसके परिणामों को सीधे-सीधे ऊर्जा से जोड़कर देखते हैं। दरअसल, योग का अर्थ होता है- जोड़, जैसे कि दो और दो का जोड़ होता है चार। 'दोÓ की संख्या में दो और जोड़ दिए जाते हैं, तो उसकी क्षमता बढ़कर चार हो जाती है। ऊर्जा में वृद्धि का पहला सिद्धांत है किसी से जुड़ना तथा अन्यों को जोड़ना। जिसमें जुड़ने और जोड़ने की योग्यता जितनी अधिक होगी, वह उतना ही क्षमतावान होता जाएगा। ऊर्जा में वृद्धि के लिए क्या जुड़ना ही पर्याप्त है? नहीं। उसे दिशा तथा गति की जरूरत पड़ती है। जो भी आपस में जुड़े हैं, वे एक ही दिशा के सहयात्री हों। जुड़ना तभी संभव हो पाता है, जब दोनों की दिशाएं एक ही हों। जुड़ने के बाद दिशाएं अलग-अलग हुईं, तो ऊर्जा का केवल क्षरण ही होगा।

योग का मूल उद्देश्य व्यक्ति की शारीरिक, मानसिक एवं आत्मिक ऊर्जा में वृद्धि करके व्यक्ति को उसकी क्षमता के उच्चतम बिंदु तक पहुंचाना है। इसके लिए योग जोड़ एवं दिशा के सिद्धांत को लेकर चलता है। योग मुख्यत: शरीर, मन और आत्मा, इन तीनों को किसी एक निश्चित बिंदु पर इकट्ठा करने की प्रक्रिया है। ऊर्जा के हमारे ये तीनों उत्पादन-केंद्र अलग-अलग दिशाओं में काम करते रहते हैं, योग तीनों को मिलाता है। योग में मन का प्राण (सांस) से सामजंस्य स्थापित किया जाता है। दर्शन में यह प्राण आत्मा का प्रतिनिधित्व करती है। इसके फलस्वरूप व्यक्ति न केवल शारीरिक, मानसिक एवं आत्मिक रूप से अधिक प्रबल हो उठता है, बल्कि उसके शारीरिक स्वास्थ्य में भी वृद्धि होती है। जब व्यक्ति इन तीनों पर नियंत्रण स्थापित करके इन्हें किसी भी काम में लगा लेता है, तो वे कार्य गुणवत्ता एवं संख्या की दृष्टि से कई गुना अच्छे और अधिक हो जाते हैं। यही सूर्य की ऊर्जा एवं योग की पद्धति का संबंध है।


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