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श्रेष्ठ गृहस्थ आश्रम

महाभारत में कहा गया है - सत्य, अहिंसा, दया एवं दान गृहस्थाश्रम के धर्म हैं। इसी प्रकार श्रीमद्भावगत में उल्लेख है - सभी आश्रमों का पोषण करते हुए गृहस्थ अपने जलयान रूपी आश्रम से सभी दुखों का सागर पार कर जाता है। वहीं मनु स्मृति कहती है- जिस प्रकार प्राणवायु

By Preeti jhaEdited By: Published: Fri, 19 Dec 2014 10:10 AM (IST)Updated: Fri, 19 Dec 2014 10:21 AM (IST)
श्रेष्ठ गृहस्थ आश्रम

महाभारत में कहा गया है - सत्य,

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अहिंसा, दया एवं दान गृहस्थाश्रम के धर्म हैं। इसी

प्रकार श्रीमद्भावगत में उल्लेख है - सभी आश्रमों का पोषण करते हुए गृहस्थ अपने जलयान रूपी आश्रम से सभी दुखों का सागर पार कर जाता है। वहीं मनु स्मृति कहती है- जिस प्रकार प्राणवायु जीवन का आधार है, उसी प्रकार अन्य सभी आश्रमों का आधार गृहस्थाश्रम है।

शास्त्रों में चार आश्रमों में से जिस आश्रम की सर्वाधिक स्तुति की गई है और सर्वाधिक महत्ता बताई गई है, वह गृहस्थाश्रम ही है। इसको धर्मग्रंथों में सर्वश्रेष्ठ माना गया है। इसकी श्रेष्ठता का कारण यह है कि शेष तीनों आश्रमों के लोग इस आश्रम पर ही निर्भर रहते हैं। वेदों का भी मत है कि आदर्श गृहस्थाश्रम में ही अन्य तीनों आश्रमों का समावेश होता है। विवाह से आरंभ होने वाले गृहस्थाश्रम के माध्यम से व्यक्ति के आत्म का विकास परिवार तक हो जाता है। गृहस्थाश्रम एक एेसा तपोवन है, जिसमें मनुष्य संयम, सेवा और सहिष्णुता की साधना करता है। गृहस्थाश्रम के विषय में संत तिरुवल्लुवर ने कहा है - गृहस्थ जीवन ही धर्म का पूर्ण रूप है।

गृहस्थाश्रम इसलिए भी श्रेष्ठ है कि जीवन में आनी वाली प्रत्येक बाधा और संकट का व्यक्ति अपने जीवन कौशल से सामना करता है। वह जिम्मेदारी के बोध से भरा होता है। गृहस्थ आश्रम में चूंकि पूरे परिवार का दायित्व बोध होता है, इसलिए व्यक्ति को संतुलन साधना आ जाता है, जिसके कारण उसे बाद के आश्रम में अधिक कठिनाई नहीं होती।

(साभार : देव संस्कृति विश्वविद्यालय, हरिद्वार)


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