Move to Jagran APP

खुशहाली का पर्व बैसाखी

फसलों के जरिये खुशहाली और समृद्धि लाने वाले पर्व बैसाखी के ही दिन खालसा पंथ की भी स्थापना हुई थी। बैसाखी पर्व पर विशेष.. घर में खुशहाली और समृद्धि आए, तो किसका मन नाचने-गाने को, उत्सव मनाने को नहीं करेगा। बैसाखी ऐसा ही पर्व है। यह फसल के तैयार होने की प्रसन्नता और

By Edited By: Published: Sat, 12 Apr 2014 11:05 AM (IST)Updated: Sat, 12 Apr 2014 02:21 PM (IST)

फसलों के जरिये खुशहाली और समृद्धि लाने वाले पर्व बैसाखी के ही दिन खालसा पंथ की भी स्थापना हुई थी। बैसाखी पर्व पर विशेष..

loksabha election banner

घर में खुशहाली और समृद्धि आए, तो

किसका मन नाचने-गाने को, उत्सव मनाने को नहीं करेगा। बैसाखी ऐसा ही पर्व है। यह फसल के तैयार होने की प्रसन्नता और उल्लास में मनाया जाता है। गेहूं, दलहन, तिलहन और गन्ने की रबी फसल किसानों को प्राप्त होती है। फसल ही किसानों के जीवन में समृद्धि लाती है, इसलिए किसान अपनी उमंग और उत्साह को रोक नहीं पाते और नाचने-गाने और उत्सव मनाने लगते हैं।

बैसाखी समृद्धि का उत्सव है। इस दिन किसान पकी हुई फसल को अग्नि को अर्पित करने के बाद इसका कुछ भाग प्रसाद के रूप में लोगों में बांट देते हैं। पंजाब में कृषि प्रमुखता से होती है इसलिए बैसाखी पर्व पंजाब के लिए बड़ा ही महत्वपूर्ण त्योहार है। इस अवसर पर पंजाब के लोग लोकसंगीत, लोकगीत, लोकनाट्य प्रस्तुत कर इसे और मोहक बना देते हैं।

खालसा का स्थापना पर्व : 13 अप्रैल, 1699 को सिखों के दसवें गुरु गोविंद राय जी ने आनंदपुर साहिब के श्रीकेसगढ़ साहिब में खालसा पंथ की स्थापना की थी। 'खालसा' का अर्थ है 'खालिस' (शुद्ध) और इस पंथ के माध्यम से गुरु जी ने जात-पात से ऊपर उठ कर समानता, एकता, राष्ट्रीयता, बलिदान एवं त्याग का उपदेश दिया। श्रीआनंदपुर साहिब में बैसाखी के दिन गुरबाणी का पाठ हो रहा था। तभी गुरु गोविंद राय ने उठकर सिखों से धर्म और मानवता की रक्षा के लिए पांच शीश मांगे -'कौन मुझे अपना सिर भेंट करने के लिए तैयार है?' कुछ लोग वहां से खिसकने का मौका तलाशने लगे, लेकिन उनमें से दया राम, धरम दास, मोहकम चंद, हिम्मत राय और साहिब चंद सिर देने को प्रस्तुत हो गए। गुरु जी ने पांचों को सुंदर पोशाकें व कृपाण धारण करवा कर उन्हें 'पंज प्यारे' नाम दे दिया। तब गुरु जी ने 'पंच

ककार' (केस, कंघा, कड़ा, कच्छ एवं कृपाण) धारण करने का विधान बनाया। पंज प्यारों को 'सिंह' उपनाम दिया गया। दसवें गुरु इसके बाद गोविंद राय से गोविंद सिंह बन गए। इतिहासकारों के अनुसार, उस दिन हजारों लोग ऊंच-नीच, जाति-पाति व भेदभाव त्यागकर 'खालसा' अर्थात शुद्ध बन गए। गुरु गोविंद सिंह जी ने दबे-कुचले लोगों को एकत्र कर 'खालसा' का सृजन कर ऐसी शक्तिशाली सेना तैयार की, जिसने अपने समय की सबसे बड़ी सैन्य शक्तियों को परास्त किया।

नव सौर वर्ष भी है बैसाखी : बैसाखी के दिन मेष संक्रांति के कारण स्नान-दान का तो विशेष महत्व रहता ही है, साथ ही इस दिन सूर्य के मेष राशि में प्रवेश करने के कारण इसे नए सौर वर्ष की शुरुआत भी माना जाता है।

वंदना वालिया बाली


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.