मान्यता है कि सामने दिखने वाले सूर्य देव से जो मांगा जाए वो अवश्य पूरी होती है
इतनी पवित्रता किसी दूसरे पर्व में नहीं दिखाई देती है। एक ऐसा त्योहार, जिसमें सामने होते हैं भगवान और पूरी होती है हर मनोकामना। छठ पर्व सूर्य के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करने का पर्व है।
एक ऐसा त्योहार, जिसमें सामने होते हैं भगवान और पूरी होती है हर मनोकामना। छठ पर्व सूर्य के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करने का पर्व है। सूर्य से हमें ऊर्जा मिलती है और यहां जहां रोशन होता है। सिर्फ यही नहीं, यह पर्व हमें कई संदेश देता है। पहला, पवित्रता-शुद्धता का। दूसरी, साफ-सफाई यानी स्वच्छता का। इतनी पवित्रता किसी दूसरे पर्व में नहीं दिखाई देती है। पूरा घर इसमें जुड़ जाता है। अनाज की सफाई करने के बाद नए चूल्हे बनाकर प्रसाद बनाया जाता है। जहां प्रसाद बनता है, उसकी सफाई की जाती है। इस पर्व का उद्देश्य भी है कि हम अपने आस-पास एक स्वस्थ और स्वच्छ वातावरण का निर्माण करें। इसी प्रकार शुद्धता का भी ख्याल रखा जाता है। ऐसी मान्यता है कि सामने दिखने वाले सूर्य देव से जो मांगा जाए वो अवश्य पूरी होती है एक ऐसा त्योहार, जिसमे सामने होते भगवान और पूरी होती है हर मनोकामना
चार दिवसीय यह व्रत कठोर साधना की परीक्षा भी है। व्रतधारी लगातार 36 घंटे का व्रत रखते हैं। इस दौरान वे पानी भी ग्रहण नहीं करते। इस पर्व में पहले उगते हीं नहीं, डूबते सूर्य को अर्ध्य दिया जाता है। नदी या तालाब में कमर तक खड़े होकर।
आयुर्वेद में कटि स्नान स्वास्थ्य के लिए लाभप्रद बताया गया। इसी प्रकार षष्ठी तिथि यानी छठ के दिन एक विशेष खगौलीय अवसर उपलब्ध कराता है। उस समय सूर्य की पराबैगनी किरणों पृथ्वी की सतह पर सामान्य से अधिक मात्र में एकत्र हो जाती हैं। उसके संभावित कुप्रभावों से मानव की यथासंभव रक्षा करने का सामर्थय इस परंपरा में है। पर्व पालन से सूर्य के पराबैगनी किरणों के हानिकारक प्रभाव से जीवों की रक्षा संभव है। पृथ्वी के जीवों को इससे बहुत लाभ मिलता है। यद्यपि सूर्य की उपासना हर प्राचीन समाज में प्रचलित है। झारखंड में भी प्रमुख देवता सिंगबोंगा यानी सूर्य देवता ही हैं। अलग-अलग धर्म-संस्कृति-समाज अपने-अपने ढंग से सूर्य देवता के प्रति अपनी कृतज्ञता ज्ञापित करता है। आम से लेकर खास तक। पर हिंदू धर्म में सूर्य की उपासना के साथ-साथ स्वच्छता का भी ध्यान रखा जाता है। नदी-तालाबों की साफ-सफाई की जाती है। घरों की पवित्रता का ध्यान रखते हुए उसकी भी सफाई की जाती है। पर्व का मुख्य संदेश साफ है-वह है स्वच्छता। इसके महत्व को समझेंगे ।
ऊर्जा के देवता की आराधना
परंपरा के पोषण और आस्था ने किसी युग में बिहार में छठ पर्व का प्रचलन किया होगा, लेकिन मौलिक ठेठ क्षेत्रीय पहचान का यह पर्व आज बिहार, उत्तर प्रदेश से लेकर महाराष्ट्र, दिल्ली और दूसरे कई प्रांतों तक पूरी नियमबद्धता के साथ मनाया जाने लगा है। छठ पूजा की बिहार में प्रचलित पद्धति के अनुसार, इसमें पुरोहित का कार्य घर का कोई भी नहाया-धुला हुआ व्यक्ति संपन्न करा सकता है। व्रती स्नान के बाद भीगे वस्त्र में ही जल में खड़े होकर प्रथम सायंकालीन और द्वितीय प्रात:कालीन अर्ध्य सूर्यदेव को अर्पित करते हैं। पुरोहित की मुख्य भूमिका अर्ध्य के दौरान सूप पर पांच-पांच बार क्रमश: दूध और जल गिराने की होती है। सुबह के अंतिम अर्ध्य के बाद घाट पर संक्षिप्त हवन होता है, यह कार्य भी व्रती स्वयं कर लेते हैं।
छठ पूजा को लेकर प्रचलित कई कथाओं में एक के अनुसार, मगध सम्राट जरासंध के एक पूर्वज को कुष्ठ रोग हो गया था। उनकी रोग-मुक्ति के लिए मग ब्राह्मणों ने सूर्योपासना की, वही बाद में छठ के रूप में प्रचलित हो गई। द्वापर की कथा के अनुसार, अंगराज कर्ण भगवान सूर्य की पूजा कमर तक जल में खड़े होकर करते थे। उन्होंने चैत्र व कार्तिक महीनों की षष्ठी तिथि को विशेष सूर्य-पूजा शुरू की, जो बाद में छठ के रूप में जनस्वीकार्य हो गई।त्रेताकाल के संदर्भ के अनुसार, कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को भगवान श्रीरामचंद्र ने अयोध्या में रामराज की स्थापना के अवसर पर सीता के साथ उपवास रखकर भगवान सूर्य की आराधना की। यही बाद में छठ के रूप में प्रचलन में आया। इनके अलावा, ऋग्वेद से लेकर ब्रह्मवैवर्त पुराण, मार्कण्डेय पुराण और उपनिषदों तक सूर्यपूजा के अनेक प्रसंग और कथा-संदर्भ भरे पड़े हैं।
इस पर्व को लेकर कुछ लोगों का कहना है कि उक्त तिथियों को पृथ्वी पर सूर्य की पराबैंगनी किरणें पहुंचती हैं, जो जीव-जगत के लिए हानिप्रद हैं। पुरखों ने संभवत: इन्हीं खतरों के शमन के लिए सूर्योपासना का विधान किया होगा। सामाजिक दृष्टिकोण तो यही है कि षष्ठी व्रत के रूप में मनुष्य उन देवता सूर्य के प्रति अपनी श्रद्धा से भरी कृतज्ञता अर्पित करता है, जो सृष्टि के संचालन में प्रत्यक्षत: मुख्य भूमिका निभाते हैं।