.और कोपभाजन बनने से बची बोधिवृक्ष
राजकुमार सिद्धार्थ ने जिस पीपल वृक्ष की छांव में अलौकिक दिव्य ज्ञान को प्राप्त किया था। आज वह वृक्ष संपूर्ण विश्व में महाबोधि मंदिर परिसर स्थित पवित्र बोधिवृक्ष के नाम से ख्यात है। बोधिवृक्ष पूर्व में दो बार शासक व एक बार प्राकृतिक आपदा का कोपभाजन बनकर धरासायी हुई थी। इस बार बोधिवृक्ष बच गई। अब इसे संयोग कहें या फिर बम
बोधगया (गया)। राजकुमार सिद्धार्थ ने जिस पीपल वृक्ष की छांव में अलौकिक दिव्य ज्ञान को प्राप्त किया था। आज वह वृक्ष संपूर्ण विश्व में महाबोधि मंदिर परिसर स्थित पवित्र बोधिवृक्ष के नाम से ख्यात है।
बोधिवृक्ष पूर्व में दो बार शासक व एक बार प्राकृतिक आपदा का कोपभाजन बनकर धरासायी हुई थी। इस बार बोधिवृक्ष बच गई। अब इसे संयोग कहें या फिर बम लगाने वाले व्यक्ति की अज्ञानता। जो आज बोधिवृक्ष पूर्व की स्थिति में खड़ी है। साजिश तो इसे ध्वस्त करने की ही रची गई प्रतीत होती है। क्योंकि रविवार की अल सुबह सबसे पहला बम धमाका 5 बजकर 40 मिनट 27 सेंकेड में यही पर हुआ था। और यही पर साधनारत दो बौद्ध भिक्षु घायल हुए। यहां पर रखा एक लकड़ी का बेंच बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो गया और उस पर रखा एक चीवर उड़कर बोधिवृक्ष की एक टहनी पर जा अटकी।
बोधिवृक्ष के नीचे रखा वज्रासन जिस पर राजकुमार सिद्धार्थ बैठकर बुद्धत्व लाभ को प्राप्त किए, उस ओर जाने वाली सीढ़ी क्षतिग्रस्त हो गई। बम धमाके करने वाले ने साजिश तो अच्छी रची थी। लेकिन इस संयोग ही कहें कि चौथे बोधिवृक्ष को आंच नहीं आई। मानो जाके राखे साइंया मार सके न कोय वाली कहावत चरितार्थ हुई हो। जिस बोधिवृक्ष पर स्वयं भगवान बुद्ध विराजमान हो। उसका भला क्षति कैसे हो सकता है। इतिहासकारों के अनुसार लगभग 130 वर्ष पुरानी वर्तमान में यह चौथा वृक्ष है। जिसे लार्ड कनिंघम ने वर्ष 1880 में श्रीलंका के अनुराधापुरम से लाकर लगवाया था। राजकुमार सिद्धार्थ के दिव्य अलौकिक ज्ञान प्राप्ति का साक्षी रहा प्रथम बोधिवृक्ष को कलिंग युद्ध के पश्चात सम्राट अशोक का बौद्ध धर्म के प्रति रूझान देखकर उनकी प8ी तिस्त्रक्षिता कुपित हुयी और ईसा पूर्व 272-262 में कटवा दिया। क्योंकि कलिंग युद्ध के पश्चात सम्राट अशोक का अधिकांश समय बोधिवृक्ष की छांव में बिता करता था। इतना ही नहीं सम्राट अशोक ने बौद्ध धर्म के प्रचार-प्रसार के लिए बोधिवृक्ष की शाखा को अपने पुत्र महेन्द्र व पुत्री संघमित्र के माध्यम से श्रीलंका भेजा था। जिसे श्रीलंका के अनुराधापुरम में लगवाया गया था। तत्पश्चात बोधिवृक्ष की जड़ से निकाला दूसरा वृक्ष को बंगाल के तत्कालीन शासक शशांक ने 602- 620 ईसवी में बौद्ध धर्म के अस्तित्व को समाप्त करने के उद्देश्य से कटवाया था।
पुन: बोधिवृक्ष की जड़ से तीसरा वृक्ष निकला। जो लार्ड कनिघ्म द्वारा मंदिर की खुदाई के दौरान प्राकृतिक आपदा का शिकार 1876 में हुआ। खुदाई के दौरान पुन: लार्ड कनिघ्म द्वारा श्रीलंका के अनुराधापुरम से बोधिवृक्ष की शाखा को लाकर वर्ष 1880 में लगवाया गया।
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