Move to Jagran APP

शास्त्रों के अनूसार निषेध है इन घरों का भोजन करना

गरुण पुराण में कुछ ऐसे स्थानों का वर्णन है जहां भोजन करने का अर्थ है अपने चरित्र और मस्तिष्क को दूषित करना। जानें किन जगहों और किन लोगों के हाथ से बना भोजन वर्जित कहा गया है।

By Preeti jhaEdited By: Published: Tue, 01 Nov 2016 03:12 PM (IST)Updated: Wed, 02 Nov 2016 10:20 AM (IST)
शास्त्रों के अनूसार निषेध है इन घरों का भोजन करना

भारतीय घरों में भोजन का अपना एक अलग महत्व है। अकसर लोग एक-दूसरे के घरों में भोजन करने जाते हैं, एक-दूसरे को भोज पर आमंत्रित भी करते हैं। एक कहावत भी है कि जैसा होवे अन्न वैसा होवे मन। आपने लोगों को कहते सुना होगा कि जैसा भोजन हम करते हैं, हमारे आचार-विचार भी उस दिशा में परिवर्तित होते हैं। लेकिन कभी सोचा है कि उपरोक्त कथन का आशय क्या है, किस वजह से भोजन की शुद्धता को इतनी वरीयता दी गई है?

loksabha election banner

गरुण पुराण

आजकल लोग भले ही इस बात पर विश्वास ना करे लेकिन गरुण पुराण में कुछ ऐसे स्थानों का वर्णन किया है जहां भोजन करने का अर्थ है अपने चरित्र और मस्तिष्क को दूषित करना। ऐसे लोगों का भी उल्लेख है जिनके हाथ का बना खाना पूरी तरह दूषित तो होता ही है लेकिन साथ ही जो व्यक्ति उस भोजन को ग्रहण करता है उसका मन-मस्तिष्क भी संक्रमण की ओर बढ़ जाता है। हिंदू शास्त्र के अनुसार आइए जानते हैं कि हिन्दू शास्त्रों में किन-किन जगहों और किन-किन लोगों के हाथ से बना भोजन करना पूर्णत: वर्जित कहा गया है।

चरित्रहीन स्त्री

चरित्रहीन स्त्री से तात्पर्य ऐसी स्त्री है जो अपनी इच्छा से अनैतिक कृत्यों में लिप्त है। गरुण पुराण के अनुसार जो व्यक्ति ऐसी स्त्री के हाथ से बना भोजन करता है तो वह उसके द्वारा किए जा रहे पापों को अपने सिर ले लेता है।

सूद लेने वाला व्यक्ति

आज के समय में यूं तो ब्याज पर पैसा देना और लेना बहुत सामान्य हो गया है लेकिन गरुण पुराण के अनुसार ब्याज पर पैसे देना और सूद समेत वापस लेना निर्धन लोगों की मजबूरी का फायदा उठाना है। जो व्यक्ति ऐसा करता है वह तो अत्याचारी होता ही है साथ ही उस व्यक्ति के घर भोजन करने वाला व्यक्ति भी उसके पाप का भागीदार हो जाता है।

रोगी

शास्त्रों के अनुसार जो व्यक्ति गंभीर रोग से पीड़ित होता है या फिर कोई ऐसा व्यक्ति जिसे कोई असाध्य रोग अपनी चपेट में लिए हुए है, उसके घर भोजन करने से आप भी उस रोग की चपेट में आ जाते हैं।

गुस्सैल व्यक्ति

सामाजिक और धार्मिक, दोनों ही तौर पर क्रोध को इंसान का सबसे बड़ा शत्रु कहा गया है। गरुण पुराण में उल्लिखित है कि जो व्यक्ति क्रोधी व्यक्ति के घर भोजन करता है, उसका मस्तिष्क भी क्रोध की चपेट में आ जाता है। वह भी अच्छे और बुरे में अंतर करना भूल जाता है।

किन्नरों के घर भोजन

हमारी संस्कृति और धर्म-ग्रंथों में किन्नरों को दान करना शुभ बताया गया है। दरअसल किन्नरों को अच्छा-बुरा, हर व्यक्ति दान करता है इसलिए यह पता लगाना मुश्किल है कि जिस भोजन को ग्रहण किया जा रहा है वह अच्छे व्यक्ति का है या बुरे, इसलिए किन्नरों के घर भोजन करना निषेध है।

जिसमें दया ना हो

दूसरों को कष्ट देने वाले, अमानवीय व्यवहार वाले व्यक्ति के घर भोजन तो दूर की बात है, कदापि प्रवेश तक नहीं करना चाहिए। उसके अनैतिक कार्यों का दंड हमें भी भोगना पड़ सकता है।

निर्दयी शासक

प्रजा को परेशान कर, उन पर अत्याचार कर, धन एकत्रित करने वाले निर्दयी राजा या शासक के घर कदापि भोजन नहीं करना चाहिए। जो व्यक्ति अपने अधीनस्थों पर अत्याचार कर उनसे धन एकत्रित करता है, उसके घर का अन्न पूर्णत: दूषित होता है।

चुगलखोर

चुगली करने वाले लोग दूसरों की परेशानी का कारण बनते हैं और आत्मसंतुष्टि के लिए दूसरों को फंसा देते हैं। ये भी किसी पाप से कम नहीं है। ऐसे लोगों के घर भोजन कर उनके पाप का भागीदार नहीं बनना चाहिए।

नशीली चीजों के व्यापारी

नशा, मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु माना जा सकता है। जो व्यक्ति ऐसे पदार्थों का व्यापार करता है वह भी पापी ही माना जाएगा। एक पापी के घर कदापि अन्न नहीं ग्रहण करना चाहिए।

क्या होता है दूषित अन्न

अकसर लोग फ्रिज में पड़े बासी खाने या फिर खराब हो चुके अन्न को दूषित कहकर उसका त्याग कर देते हैं, लेकिन हमारे शास्त्रों में दूषित अन्न की परिभाषा अन्य शब्दों में ही दी गई है, जो शायद बहुत हद तक ज्यादा सटीक बैठती है।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.