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ध्यान: मन को मालिक नहीं सेवक बनाएं

हम हर काम करने से पहले यह जरुर सोचते हैं कि इसे करने से हमें क्या मिलेगा। लेकिन जब यही सोच कर हम ध्यान करना चाहते हैं तो सद्गुरु बता रहे हैं कि यह सोचना छोडि़ए। क्यों, आइए जानते हैं-

By Preeti jhaEdited By: Published: Sat, 28 Feb 2015 11:16 AM (IST)Updated: Sat, 28 Feb 2015 11:21 AM (IST)
ध्यान: मन को मालिक नहीं सेवक बनाएं
ध्यान: मन को मालिक नहीं सेवक बनाएं

हम हर काम करने से पहले यह जरुर सोचते हैं कि इसे करने से हमें क्या मिलेगा। लेकिन जब यही सोच कर हम ध्यान करना चाहते हैं तो सद्गुरु बता रहे हैं कि यह सोचना छोडि़ए। क्यों, आइए जानते हैं-

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लोग अकसर हिसाब लगाते हैं ध्यान करने से मुझे क्या मिलेगा। यह हिसाब-किताब लगाना छोड़ दीजिए। आपको कुछ भी नहीं मिलने वाला है। आपको इससे कोई लाभ नहीं होगा। जरुरी नहीं है कि कुछ घटित हो। ध्यान का मकसद सेहतमंद होना, ज्ञान प्राप्त करना या स्वर्ग हासिल कर लेना नहीं है, यह तो बस आपके जीवन का पुष्पित होना है।

'आज के सत्संग से हम क्या ले जाएंगेÓ- अगर आप इस तरह की बातें सोचेंगे कि आप लेकर क्या जाने वाले हैं तो आप देखेंगे कि आप बेहद तुच्छ चीजें लेकर जा रहे हैं। असली चीज आप अपने साथ कभी नहीं ले जा पाएंगे।

अगर आप शरीर को स्थिर और शांत कर देंगे तो मन अपने आप शांत और स्थिर हो जाएगा। यही वजह है कि योग में आसनों पर इतना ज्यादा जोर दिया गया है।अगर आपको असली चीज चाहिए तो ले जाने का चक्कर छोडि़ए। बस वहां रहिए, कुछ भी करने या होने की जरूरत नहीं है। अगर आप अपने जीवन के हर क्षेत्र से इस गणना को खत्म कर दें कि मुझे बदले में क्या मिलेगा, तो आप असीमित और करुणामय हो जाएंगे। इसके अलावा कोई और रास्ता नहीं है। आपको बस इसी एक गणना को छोडऩा है, क्योंकि आपकी पूरी मानसिक प्रक्रिया की, दिमाग में जो कुछ भी हो रहा है उन सबकी चाबी यही है।

चूंकि लोगों के पास इतनी जागरूकता नहीं है कि वे बिना कोई हिसाब-किताब लगाए बस यूं ही खुद को रख सकें, इसलिए एक विकल्प दिया गया है और वह विकल्प यह है कि बस प्रेम में रहो। प्रेम एक ऐसी हालत है, जिसमें रहते हुए काफी हद तक आप कुछ साथ ले जाने के भाव से अलग होते हैं। प्रेम और करुणा का गहन भाव विकसित करने के लिए जो कुछ भी कहा जाता है उन सबका आशय यही है कि आप अपेक्षाओं को खत्म कर रहे हैं। किसी के साथ गहराई में भावनात्मक रूप से जुडऩे पर 'मुझे क्या मिलेगाÓ वाली बात खत्म हो जाती है।

अगर आपने अपने जीवन से इस एक गणना को खत्म कर दिया तो समझिए कि नब्बे फीसदी काम पूरा हो गया। बाकी का दस फीसदी अपने आप पूरा हो जाएगा। यह सांप-सीढ़ी के खेल की तरह है। यहां भी बहुत सारी सीढिय़ां हैं और बहुत सारे सांप भी।

प्रेम और करुणा का गहन भाव विकसित करने के लिए जो कुछ भी कहा जाता है उन सबका आशय यही है कि आप अपेक्षाओं को खत्म कर रहे हैं। किसी के साथ गहराई में भावनात्मक रूप से जुडऩे पर 'मुझे क्या मिलेगाÓ वाली बात खत्म हो जाती है। आप कभी ऊपर जाएंगे, तो कभी अचानक नीचे आ जाएंगे, यह सब चलता रहेगा, लेकिन अगर एक बार आपने अंतिम सीढ़ी को छू लिया तो फिर आपको किसी सांप का सामना नहीं करना है। आप बस एक, एक और एक लाते रहिए। आप मंजिल पर पहुंच ही जाएंगे। अब आपको डसने के लिए कोई सांप नहीं है। फिर तो मंजिल तक पहुंचना बस कुछ समय की बात है।

अगर आप शरीर को स्थिर और शांत कर देंगे तो मन अपने आप शांत और स्थिर हो जाएगा। यही वजह है कि योग में आसनों पर इतना ज्यादा जोर दिया गया है। अगर आप यह सीख लें कि शरीर को शांत और स्थिर कैसे रखा जाता है तो आपका मन अपने आप शांत और स्थिर हो जाएगा।

अगर आप अपने शरीर पर गौर करें तो आप पाएंगे कि जब आप चलते हैं, बैठते हैं या बोलते हैं, तो आपका शरीर ऐसी बहुत सी हरकतें करता है, जो गैर जरूरी हैं। इसी तरह अगर आप अपने जीवन को गौर से देखें तो पाएंगे कि जीवन का आधे से ज्यादा समय ऐसी बातों में बर्बाद हो जाता है, जिनकी आप खुद भी परवाह नहीं करते।

अगर आप शरीर को स्थिर रखेंगे तो मन धीरे धीरे अपने आप शिथिल पडऩे लगेगा। मन जानता है कि अगर उसने ऐसा होने दिया तो वह दास बन जाएगा। अभी आपका मन आपका बॉस है और आप उसके सेवक। जैसे-जैसे आप ध्यान करते हैं, आप बॉस हो जाते हैं और आपका मन आपका सेवक बन जाता है और यह वह स्थिति है, जो हमेशा होनी चाहिए। एक सेवक के रूप में मन बहुत शानदार काम करता है। यह एक ऐसा सेवक है जो चमत्कार कर सकता है, लेकिन अगर आपने इस मन को शासन करने दिया तो यह भयानक शासक होगा। अगर आपको नहीं पता है कि मन को दास के रूप में कैसे रखा जाए तो मन आपको एक के बाद एक कभी न खत्म होने वाली परेशानियों में डालता रहेगा।

साभार: सद्गुरु (ईशा हिंदी ब्लॉग)


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