नम्रता का सहारा लेकर हम बड़ी से बड़ी मुश्किलों से भी पार पा सकते हैं
भीष्म ने युधिष्ठिर से कहा कि राजा यदि निर्बल है, तो उसे शत्रु के साथ नम्रता का सहारा लेना चाहिए। नम्रता का सहारा ले हम बड़ी मुश्किलों से भी पार पा सकते हैं
एक बार युधिष्ठिर भीष्माचार्य के पास गए और बोले, ‘मैं आपसे एक प्रश्न पूछना चाहता हूं। वह यह कि यदि कोई प्रबल शत्रु किसी निर्बल राजा पर आक्रमण कर दे, तो उसे राजनीति की दृष्टि से क्या करना चाहिए?’
भीष्म बोले, ‘इसके जवाब में मैं एक कथा सुनाता हूं।’ और कहने लगे : ‘सरित्पति समुद्र वैसे तो अपनी सभी पत्नियों से प्रसन्न थे, लेकिन वेत्रवती नदी से असंतुष्ट हो गए। वेत्रवती ने जब अपना अपराध पूछा, तो
समुद्र ने कहा, ‘तेरे किनारों पर बेंत के झाड़ बहुत हैं। लेकिन तूने आज तक बेंत का एक टुकड़ा भी मुझे लाकर नहीं दिया। अन्य नदियां तो किनारे की सभी वस्तुएं लाकर देती हैं, जबकि तूने साधारण सा बेंत भी नहीं दिया।’
वेत्रवती ने उत्तर दिया, ‘नाथ, इसमें मेरा कुछ भी अपराध नहीं है। बात यह है कि जब मैं जोश के साथ तेज गति से आती रहती हूं, तो सारे बेंत के झाड़ नीचे झुककर पृथ्वी से मिल जाते हैं। मेरे जाने के बाद पुन: ज्यों के त्यों सिर उठाकर खड़े हो जाते हैं। यही कारण है कि मुझे एक भी बेंत नहीं मिल पाता।’ इस कथा को सुनाकर भीष्म ने युधिष्ठिर से कहा कि राजा यदि निर्बल है, तो उसे शत्रु के साथ नम्रता का सहारा लेना चाहिए।
कथासार : नम्रता का सहारा लेकर हम बड़ी से बड़ी मुश्किलों से भी पार पा सकते हैं