सच्चा ज्ञान
इसका मोह त्यागने के बाद ही आपको सच्चा ज्ञान मिल सकता है।
वैदिक काल में जनश्रुति नाम के बड़े उदार हृदय राजा थे। लोगों की भलाई में वे दिन-रात लगे रहते। परोपकार का कार्य करते हुए उन्हें यह घमंड हो गया कि उनके समान दूसरा न तो कोई ज्ञानवान है और न ही परोपकारी। एक दिन उन्होंने दो हंसों को बात करते हुए सुना कि इस राज्य में एक ब्रह्मज्ञानी रैक्व हैं, जिनके सामने राजा के परोपकार-कार्य व ज्ञान दोनों तुच्छ हैं। सुबह राजा ने रैक्व की खोज में सैनिकों को लगा दिया।
काफी प्रयास के बाद वे मिले, तो राजा ने उन्हें अमूल्य उपहार प्रदान कर ब्रह्मज्ञान देने का आग्रह किया। पर राजा में अहंकार होने के कारण रैक्व बार-बार मना करते रहे। उन्होंने राजा से कहा कि ब्रह्मज्ञान के सामने सभी सांसारिक वस्तुएं तुच्छ हैं। इसका मोह त्यागने के बाद ही आपको सच्चा ज्ञान मिल सकता है। उनकी बातों से राजा की आंखें खुल गईं और वे सब कुछ त्याग कर रैक्व की शरण में आ गए। तब रैक्व ने उन्हें ज्ञान का उपदेश दिया, जिसे प्राप्त कर राजा जनश्रुति एक ज्ञानी महात्मा के नाम से प्रसिद्ध हुए।