ये क्या गंगा में बह रही है लाशें, कैसे हो माघ मेला स्नान
पतितपावनी गंगा की धारा में 48 घंटे से दो लाशें फंसी हुई हैं, पर उन्हें वहां से हटाने की जहमत कोई नहीं उठा रहा है। अधिकारी अंजान बने हुए हैं तो कर्मचारी संवेदनहीन। जल पुलिस सबकुछ देखते हुए भी अनदेखी की कोशिश कर रही है। सरकारी अधिकारियों व कर्मचारियों की
इलाहाबाद। पतितपावनी गंगा की धारा में 48 घंटे से दो लाशें फंसी हुई हैं, पर उन्हें वहां से हटाने की जहमत कोई नहीं उठा रहा है। अधिकारी अंजान बने हुए हैं तो कर्मचारी संवेदनहीन। जल पुलिस सबकुछ देखते हुए भी अनदेखी की कोशिश कर रही है। सरकारी अधिकारियों व कर्मचारियों की इस कर्तव्यहीनता का खामियाजा श्रद्धालुओं को भुगतना पड़ रहा है।
एक तो गंगा का जल बेहद प्रदूषित, दूजे बहती लाशें। माघ मेले के लिए गंगा के जल के शुद्धिकरण की बात तो लंबे-चौड़े दावे के साथ की जा रही है। किंतु नतीजा..? आखिर प्रशासन के अलंबरदार कब चेतेंगे? यह बेहद संवेदनशील मामला गंगा के प्रदूषण से जुड़ा हुआ है। संगम घाट पर ही विगत दस वर्ष से नाव चलाने वाले रामनिहोर निषाद ने बताया कि हम लोगों ने संबंधित कर्मचारियों तक अपनी बात पहुंचा दी, किंतु 48 घंटे बीतने के बाद भी दोनों लाशें जस की तस फंसी हुई हैं।
आंध्रप्रदेश के विजयवाड़ा निवासी बीके रेड्डी संगम में अपने पिता की अस्थियां विसर्जित करने आए थे। नाव पर सवार उनके परिवार ने जब लाशों को देखा तो कह पड़े कि पतित पावनी की ऐसी दशा। प्रदूषण के बारे में उन्होंने सुन रखा था, पर आज खुद अपनी आंखों से ऐसा नजारा देख रहे हैं। मेला प्रभारी आरके शुक्ला से जब इस बारे में बात की गई तो उनका कहना था कि इसकी जानकारी उन्हें नहीं है। हालांकि उनका कहना था कि लापरवाही करने वाले व्यक्तियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाएगी। अधिकारी बोले, समय से पूरे होंगे काम।
झूंसी की ओर खिसका संगम-
एक तो गंगा में जल कम, दूसरे इसका रंग लाल। इनके दूर चले जाने से एक नई समस्या खड़ी हो गई है। पिछले वर्ष तक किले के समीप से बहने वाली यह पवित्र नदी इस वर्ष बिल्कुल झूंसी गांव के समीप से बह रही हैं। जाहिर है कि माघ मेले में आने वाले श्रद्धालुओं को गंगा में डुबकी लगाने के लिए काफी लंबी पदयात्रा करनी पड़ेगी। मेले की असली रौनक भी झूंसी क्षेत्र में ही देखने को मिलेगी। रही बात संगम की तो वह दिन पर दिन पीछे खिसकता जा रहा है।
माघ मेले की तैयारियां जोर शोर से की जा रही हैं। मेला क्षेत्र को तीन हिस्सों में बांटा गया है। संगम क्षेत्र, झूंसी क्षेत्र और अरैल क्षेत्र। इन तीनों क्षेत्रों में तैयारी की प्रगति को फिलहाल ठीक तो नहीं कहा जा सकता। पांच जनवरी को मेला का पहला स्नान पर्व है। देश विदेश से आने वाले श्रद्धालुओं को इस बार गंगा में डुबकी लगाने के लिए अतिरिक्त प्रयास करना होगा।
कारण है गंगा का लगातार पीछे होते जाना। वर्तमान समय में संगम क्षेत्र से करीब डेढ़ किलोमीटर पीछे यह प्रवाहित हो रही हैं। जानकार बताते हैं कि गंगा के इस तरह पीछे हटने से मेला प्रशासन को भी कई तरह की परेशानी का सामना करना पड़ेगा। मसलन उन स्थानों पर भी घाट बनाने होंगे, जहां पहले अमूमन स्नान नहीं होता था। नाविकों और पंडों को भी नित नए ठीहे बनाने पड़ रहे हैं। पिछले कुंभ में संगम अरैल घाट के सामने हुआ करता था, लेकिन इस बार इसका नजारा बदल गया है। गंगाजल के लिए लोगों को संगम नोज से डेढ़ किलोमीटर पैदल चलना पड़ता है।
यह हाल अभी है, जबकि मेला शुरू होने में अभी कुछ समय शेष है। आने वाले दिनों में अगर गंगा ने अपने पांव नहीं रोके तो सबसे ज्यादा दिक्कत में स्थानीय प्रशासन आ जाएगा।
माघ मेले में जहां दो हजार शिविर बनने हैं वहीं अब तक मात्र 30 शिविर ही लग पाए हैं। मेला प्रशासन संस्थाओं को पर्ची काटने का काम सुस्त रफ्तार से कर रहा है। इसी का नतीजा है कि अभी तक महज तीस संस्थाओं के शिविर लगे हैं। शिविर लगा रही कंपनी के अधिकारियों के अनुसार अभी तक डेढ़ सौ आश्रमों की पर्ची आई है। संस्थाओं को भूमि आवंटन होने पर मेला प्रशासन उन्हें पर्ची काटता है। पर्ची शिविर लगाने वाली कंपनी को देनी होती है। कंपनी के अनुसार अभी तक महज डेढ़ सौ संस्थाओं की पर्ची आई है। रोज चार से छह पर्चियां आ रही हैं। इन पर्चियों में शिविर बनाने की तिथि निर्धारित है। मेला क्षेत्र में कुल दो हजार शिविर लगाए जाने हैं। बहुत सी संस्थाओं के पदाधिकारी पर्ची थमाकर समय से वापस नहीं आ रहे हैं। एक तंबू कंपनी प्रबंधक ने बताया कि देरी में देरी हो रही है। जिस रफ्तार से मेला प्रशासन पर्ची काट रहा है, उस समय सीमा में शिविर लगाने का काम पूरा होने में संशय है। कंपनी के अनुसार अभी तक मछली बंदर मठ, योगी सत्यम, जगदगुरु शंकराचार्य, टीकरमाफी, विहिप और बजरंग दल समेत तीस संस्थाओं के शिविर बनाए जा चुके हैं। वहीं मेला प्रशासन उल्टा जवाब दे रहा है। माघ मेला प्रभारी डा. आरके शुक्ला का कहना है कि एक दिन में दो सौ संस्थाओं की पर्ची काटी जा रही है।