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कल्पवास को श्रीधाम में साधु-संतों का डेरा

एक महीने के माघ मास में विभिन्न स्थानों से आए साधु-संत और श्रद्धालु वृंदावन श्रीधाम में डेरा जमा चुके हैं। साधु-संत नित्य दो बार स्नान और यमुना किनारे उपवास और मौन व्रत रख प्रभु की आराधना में लगे हैं। जबकि शहर के सैकड़ों आश्रमों में भागवत कथा में भक्त लीन

By Preeti jhaEdited By: Published: Tue, 13 Jan 2015 03:33 PM (IST)Updated: Tue, 13 Jan 2015 03:38 PM (IST)
कल्पवास को श्रीधाम में साधु-संतों का डेरा

वृंदावन। एक महीने के माघ मास में विभिन्न स्थानों से आए साधु-संत और श्रद्धालु वृंदावन श्रीधाम में डेरा जमा चुके हैं। साधु-संत नित्य दो बार स्नान और यमुना किनारे उपवास और मौन व्रत रख प्रभु की आराधना में लगे हैं। जबकि शहर के सैकड़ों आश्रमों में भागवत कथा में भक्त लीन हैं। मंदिरों और मठों में भक्तों का जमावड़ा गुरुओं से मिलने को लग रहा है।

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माघ मास की शुरुआत को दस दिन व्यतीत हो चुके हैं। इस दौरान साधु और संतों के अलावा श्रद्धालु हजारों की संख्या में श्रीधाम आ चुके हैं। अनेक संत और साधु आश्रमों में रहकर पूजा अर्चना और सेवा नियम कर रहे हैं, तो अनेक फक्कड़ संत और साधु अपने 'गुरुÓ के वचनों का पालन करते हुए यमुना में दो बार स्नान कर पहले यमुना मैया की पूजा करते हैं।

इसके बाद किसी सूनसान स्थान पर बैठकर अथवा आश्रम में सात दिन का मौन व्रत तो कोई उपवास रखकर सुबह सूर्य निकलने से लेकर शाम को विदा ही होने तक ईश्वर की आराधना कर रहे हैं। इन्हीं साधुओं में तीन साधु सेवानंद, रघुनाथानंद और विरजनंदन वंशीबट क्षेत्र के निकट यमुना किनारे सात दिनी मौन व्रत पर हैं। उनके शिष्य राजकुमार ने बताया कि कल्पवास में साधुओं ने पिछले छह दिनों से मौन व्रत रखा है। कल्पवास के दौरान अनेक भक्त गुरुओं से दीक्षा प्राप्त कर रहे।

आश्रमों में भागवत कथाएं- शहर के दर्जनों आश्रमों में भागवत कथाओं का आयोजन किया जा रहा है। कल्पवास को आए यजमान और श्रद्धालु इन भागवत कथाओं में दिन भरे लगे रहते हैं। परिक्रमा मार्ग स्थित विरागी बाबा आश्रम के महंत हरिबोल बाबा ने बताया कि हरियाणा, राजस्थान, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, दिल्ली और बिहार के लोग ज्यादातर श्रीधाम में आकर माघ महीने में कल्पवास करते हैं।

मंदिर और मठों की परिक्रमा-कल्पवास को आए श्रद्धालु मंदिर-मठों के अलावा आश्रमों में अपने 'गुरुÓ के दर्शन कर उनके बताए अनुसार पूजा-अर्चना, अन्न-धन-वस्त्र दान और साधुसेवा कर रहे हैं। इतना ही नहीं हजारों श्रद्धालु गुरु की आज्ञा पाकर पांच-पांच सौ साल पुराने सप्त देवालयों में जाकर आराधना और नियम सेवा व परिक्रमा सुबह-शाम नियमित रूप से लगा रहे हैं।


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