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आस्था की डगर पर उम्मीदों का सफर

राष्ट्रीय राजनीति में मंझधार में फंसी कांग्रेस की नैया को देवों के देव महादेव क्या पार लगाएंगे, पार्टी की कमान संभालने को बेताब राहुल गांधी के बाबा केदार की शरण में पहुंचने के बाद सियासी फिजा में यह सवाल तैर रहा है। वर्ष 2013 में उत्तराखंड खासतौर पर केदारघाटी में

By Preeti jhaEdited By: Published: Fri, 24 Apr 2015 12:00 PM (IST)Updated: Fri, 24 Apr 2015 12:12 PM (IST)
आस्था की डगर पर उम्मीदों का सफर

देहरादून। राष्ट्रीय राजनीति में मंझधार में फंसी कांग्रेस की नैया को देवों के देव महादेव क्या पार लगाएंगे, पार्टी की कमान संभालने को बेताब राहुल गांधी के बाबा केदार की शरण में पहुंचने के बाद सियासी फिजा में यह सवाल तैर रहा है। वर्ष 2013 में उत्तराखंड खासतौर पर केदारघाटी में आपदा का कहर टूटने के बाद राज्य के दौरे पर राहुल भले ही गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के बाद पहुंचे हों, लेकिन आपदा से उबरने के लिए पुनर्निर्माण की जिद्दोजहद में जुटे राज्य में केदारनाथ धाम के कपाट खुलने के मौके पर पहुंचकर उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा के राष्ट्रीय नेतृत्व से लीड लेने की कोशिश में तनिक देर नहीं लगाई।

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विदेश दौरे से लौटने के बाद यह दूसरा मौका है जब राहुल आपदा प्रभावित क्षेत्रों का दौरा कर रहे हैं। अब निगाहें इस पर भी टिकी हैं कि कांग्रेस की री-ब्रांडिंग की राहुल की मुहिम कितना असर दिखाती है। 1कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी के केदारनाथ दौरे से उत्साहित प्रदेश सरकार और संगठन भले ही इसे देशभर में सुरक्षित चारधाम यात्रा के संदेश के लिए ब्रांडिंग के तौर पर देख रही हो, लेकिन सियासी हलकों में इस दौरे को कांग्रेस की री-ब्रांडिंग के लिए हाथ-पांव मारने की छटपटाहट के रूप में देखा जा रहा है। बीते वर्ष लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को जो दुर्गति हुई। माना जा रहा है कि कांग्रेस से बड़ा वोटबैंक छिटक गया, विशेषकर उदार समझा जाने वाला हिंदू मतदाताओं के बड़े वर्ग ने कांग्रेस से दूरी बनाई। राहुल बाबा केदार के दर पर पहुंचकर पार्टी के खोए जनाधार को दोबारा पाने की उम्मीद संजोए हैं। इसे महज संयोग ही कहा जाएगा कि वर्ष 2013 में आपदा के बाद राहुल जब उत्तराखंड आए तो इससे पहले वह विदेश दौरे पर ही थे। तब केंद्र में यूपीए सरकार थी। विदेश दौरे से लौटने के तुरंत बाद उन्होंने उत्तराखंड का दौरा किया था। हालांकि आपदा के गंभीर और संवेदनशील मौके पर उनके तुरंत नहीं पहुंचने पर भी सवाल उठ खड़े हुए थे। यह दीगर बात है कि राहुल कुछ देरी से पहुंचने के बावजूद आपदा प्रभावित क्षेत्रों में पीडि़तों से सबसे पहले संवाद कायम करने वाले राष्ट्रीय नेता रहे। हालांकि, इसमें तत्कालीन मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा सरकार की बड़ी भूमिका रही। राज्य सरकार ने हवाई दौरे से राहुल से पहले पहुंचने वाले गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को आपदा प्रभावित क्षेत्रों में उतरने की इजाजत नहीं दी थी।

लोकसभा चुनाव के बाद बदले हालात में राहुल गांधी के सामने पार्टी की कमान संभालने के साथ ही उसे दोबारा मजबूती से खड़ा करने की चुनौती है। अब विदेश यात्रा और तकरीबन 58 दिन तक राष्ट्रीय राजनीति से दूर रहने के बाद राहुल का नई दिल्ली से बाहर पहला दौरा केदारनाथ धाम यात्रा है। प्रधानमंत्री बनने के बाद नरेंद्र मोदी के केदारनाथ दौरे पर आने की चर्चाएं कई बार तेज रहीं, लेकिन ये हकीकत की शक्ल नहीं ले सकीं। हालांकि, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का केदारनाथ धाम के प्रति लगाव कई मौकों पर जाहिर हो चुका है। प्रधानमंत्री और भाजपा के राष्ट्रीय नेताओं से पहले केदारपुरी का दौरा कर राहुल गांधी सियासी मकसद की दिशा में पहलकदमी कर चुके हैं।

वीआइपी की आवभगत में जुटा अमला- राहुल गांधी के साथ ही मुख्यमंत्री हरीश रावत समेत प्रदेश मंत्रिमंडल के सदस्यों के साथ ही अन्य अतिथियों के केदारनाथ यात्रा में शामिल होने के मद्देनजर मशीनरी पूरी तरह से वीआइपी की आवभगत में जुटी रही। गौरीकुंड से लेकर लिनचोली तक मशीनरी ज्यादातर मुख्यमंत्री समेत अन्य नेताओं के इर्द-गिर्द घूमती नजर आई। केदारनाथ के कपाट खुलने के साथ ही केदारनाथ यात्रा भी शुरू हो गई। इसे देखते हुए मशीनरी को गुरुवार को यात्रा के प्रथम पड़ाव गौरीकुंड से लेकर अंतिम पड़ाव लिनचोली तक की व्यवस्थाओं को परखना था। लेकिन, वीआइपी मूवमेंट के चलते पुलिस, प्रशासन के साथ ही यात्र से जुड़े विभिन्न विभागों के अधिकारी उनके आसपास ही नजर आए। गौरीकुंड से लेकर लिनचोली तक नजारा ऐसा ही था। जाहिर है, ऐसे में वे विभिन्न कार्यों का जायजा नहीं ले पाए। यह बात अलग है कि इस दौरान मुख्यमंत्री ने अधिकारियों को आवश्यक निर्देश अवश्य दिए।

सीएम ने घोड़े पर तय किया आधा सफर- कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने जहां गौरीकुंड से लेकर लिनचोली तक का सफर पैदल तय किया, वहीं मुख्यमंत्री हरीश रावत ने आधा सफर घोड़े पर तय किया। असल में मुख्यमंत्री हरीश रावत ने गौरीकुंड से राहुल गांधी के साथ ही पैदल सफर शुरू किया। इसी बीच राहुल काफी आगे निकल गए, जबकि मुख्यमंत्री को अधिकारियों के काफिले के साथ देर लग गई। इस दौरान उन्होंने अधिकारियों को जरूरी निर्देश भी दिए और साफ किया कि यात्रियों को किसी प्रकार की कोई परेशानी न होने पाए। देरी होने पर मुख्यमंत्री ने जंगलचट्टी के पास से घोड़े पर सफर तय करना उचित समझा। इसके बाद वह लिनचोली तक घोड़े पर सवार होकर ही पहुंचे।

भगवान भोले नाथ की प्रस्तुति देंगे सूफी गायक कैलाश खेर-प्रसिद्ध सूफी गायक कैलाश खेर केदारनाथ धाम में अपने सूफियाना अंदाज में भगवान भोले नाथ की प्रस्तुति का गायन करते नजर आएंगे। मुंबई से विशेष रूप से उत्तराखंड पहुंचे सूफी गायक कैलाश खेर दिल्ली से दोपहर जौलीग्रांट एयरपोर्ट पहुंचे। कांग्रेस के ब्लॉक अध्यक्ष मनोज नौटियाल ने उनका पुष्प गुच्छ के साथ स्वागत किया। वह कपाट खुलने के बाद बिना संगीत के भगवान भोले नाथ की स्तुति व भजनों से केदारपुरी को गुंजायमान करेंगे।

कुशल पर्वतारोही की तरह चढ़े राहुल-पांच घंटे में 11 किमी का पैदल सफर। कहीं ढलान तो कहीं एकदम खड़ी चढ़ाई। उस पर चोटियों पर जमा बर्फ और वहां से ठंडक लेकर लौटती तन चीरने वाली सर्द हवा के झोंके। यही नहीं, सफर के दौरान बूंदाबांदी व हल्की बारिश का सिलसिला भी। बावजूद इसके राहुल गांधी ने गौरीकुंड से लिनचोली तक का 11 किमी का पैदल सफर एक कुशल पर्वतारोही की तरह तय किया। और तो और चेहरे पर कहीं थकान का भाव भी नहीं। इसे देखते हुए यात्र में साथ चल रहे लोगों के साथ ही रोजाना इन परिस्थितियों से जूझने वाले स्थानीय निवासी भी राहुल की चाल देखकर दंग रह गए।

राहुल गांधी करीब एक बजे गौरीकुंड पहुंचे और फिर उनके काफिले ने पैदल ही लिनचोली के लिए प्रस्थान किया। वह इतना तेज चल रहे थे कि साथ में चल रहे सुरक्षाकर्मियों के साथ ही अन्य लोगों के पसीने छूट गए। आलम यह था कि मुख्यमंत्री समेत अन्य लोग काफी पीछे छूट गए और राहुल काफी आगे निकल गए। यह राहुल गांधी का जज्बा ही था कि उन्होंने पूरा सफर पैदल ही तय किया। वह भी महज पांच घंटे में। वह भी तब जबकि इस दौरान उन्होंने यात्र पथ में तैनात श्रमिकों का उत्साहवर्धन किया तो यात्रियों व स्थानीय लोगों और दुकानदारों से मुलाकात भी की।

जंगलचट्टी से लेकर रामबाड़ा और फिर लिनचोली तक के जिस चढ़ाईभरे सफर को तय करने में पसीने छूट जाते हैं, उसे राहुल गांधी ने कुशल पर्वतारोही के तौर पर आसानी से पार कर लिया। यही नहीं, लिनचोली पहुंचने के बाद भी वह लोगों से मिलते रहे। इसी बीच जब किसी ने थकान का अहसास तक न होने के बारे में पूछा तो बात सामने आई कि राहुल रोजाना 10 किमी पैदल चलते हैं। ऐसे में उन्हें इस पैदल सफल में कोई दिक्कत नहीं आई।


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