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इस बार तालाबों में होगा मूर्ति विसर्जन

नदियों के अस्तित्व को बचाने के लिए प्रदूषण मुक्त किए जाने की जरूरत है। नदियों में प्रदूषण की एक वजह धार्मिक क्रिया कलाप व मान्यताएं भी मानी जा रही हैं। इसी को ध्यान में रखते हुए हाईकोर्ट ने गंगा-यमुना में मूर्ति विसर्जन पर रोक लगाने का आदेश दिया है। जिला प्रशासन ने कहा है कि मूर्ति विसजर्न तालाबों में की जाएगी। साज-सज्जा व ठ

By Edited By: Published: Wed, 02 Oct 2013 12:42 PM (IST)Updated: Wed, 02 Oct 2013 12:44 PM (IST)
इस बार तालाबों में होगा मूर्ति विसर्जन

इलाहाबाद। नदियों के अस्तित्व को बचाने के लिए प्रदूषण मुक्त किए जाने की जरूरत है। नदियों में प्रदूषण की एक वजह धार्मिक क्रिया कलाप व मान्यताएं भी मानी जा रही हैं। इसी को ध्यान में रखते हुए हाईकोर्ट ने गंगा-यमुना में मूर्ति विसर्जन पर रोक लगाने का आदेश दिया है। जिला प्रशासन ने कहा है कि मूर्ति विसजर्न तालाबों में की जाएगी।

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साज-सज्जा व ठाठ का प्रतीक 'केले की चौकी'-

प्रयाग के दशहरा मेले की शान देव व दानवों की श्रृंगार चौकियां अपने साज, सज्जा व ठाठ के लिए मशहूर हैं। इस श्रृंगार को निहारने के लिए हजारों लोग आज भी दशहरा मेले के दौरान सड़कों के किनारे देर रात चौकियों का इंतजार करते दिखते हैं। यह चौकियां अपनी बनावट की विशेषता के लिए जानी जाती हैं। पजावा रामलीला कमेटी की ओर से राम वन गमन और सीता हरण के दिन 'केले की चौकी' निकाले जाने परंपरा है। 'विमान' कहलाने वाली यह चौकी केले के रंग से सजाई जाती है। इसमें केले के पेड़ के सभी हिस्सों को जरूरत के मुताबिक काटकर निकलने वाले रंग का इस्तेमाल किया जाता है। 1केले के फल के छिलके से पीला, फूल और पंखुड़ियों से लाल, पत्तों से हरा, तने से सफेद, जड़ के पास के तने से नीला या बैगनी, जड़ के पास कत्थई, जड़ के पास सड़ा भाग काला और फूल के अंदर की कच्ची फलियों से बहुरंगी डिजाइन बनाए जाते हैं। चौकी के सभी बेल-बूटे केले से ही बनाए जाते हैं। चौकी की पृष्ठभूमि बनाने के लिए चमकदार रेशमी कपड़े पर केले से विभिन्न देवताओं के चित्र उकेरे जाते हैं। इसके साथ बिजली के रंगबिरंगे बल्ब से भी साज-सज्जा की जाती है। केले के इस्तेमाल के पीछे पजावा रामलीला कमेटी की मान्यता है कि यह शुभ कार्यो में इस्तेमाल किया जाने वाला पेड़ है। रामलीला कमेटी की ओर से प्रकाशित पहली स्मारिका में जिक्र किया गया है कि चौकी के प्रदर्शन के दौरान पारंपरिक तौर पर ऐलान होता है कि जो यह साबित कर देगा कि चौकी की सजावट में केले को छोड़कर कोई और रंग इस्तेमाल किया गया है तो उसे पुरस्कृत किया जाएगा। स्वांग कमेटियों के दिलचस्प नाम11977 में प्रकाशित दारागंज रामलीला कमेटी की स्मारिका में दशहरा मेले के दौरान स्वांग की परंपरा के बारे में एक लेख प्रकाशित किया गया है। इस लेख के अनुसार स्वांग की परंपरा लगभग डेढ़ सौ साल पुरानी है। दारागंज की विभिन्न स्वांग कमेटियों द्वारा स्वांग रचा जाता है। कमेटियों के नाम भी बड़े दिलचस्प हैं जैसे घायल स्वांग मंडल, मोरी स्वांग मंडल, चंदा स्वांग मंडल, बसोर स्वांग मंडल, मस्ताना स्वांग मंडल, लुटेरा स्वांग मंडल आदि।

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