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यही कारण है कि हिंदू मंदिरों में अकूत धन-सम्पदा के भंडार वर्तमान में भी मौजूद हैं

'विश्व प्रसिद्ध कोहिनूर हीरा, जो विश्व में अब तक सबसे मूल्यवान और सबसे बड़ा हीरा है, जगन्नाथ मंदिर को दान कर दिया जाये।

By Preeti jhaEdited By: Published: Fri, 27 May 2016 04:45 PM (IST)Updated: Fri, 27 May 2016 05:02 PM (IST)
यही कारण है कि हिंदू मंदिरों में अकूत धन-सम्पदा के भंडार वर्तमान में भी मौजूद हैं

हाल ही में आंध्रप्रदेश के मुख्यमंत्री एन. चंद्रबाबू नायडू ने 'आस्था पर कटाक्ष' करते हुए कहा, 'दुनिया में पाप बढ़ने से मंदिरों की कमाई बढ़ रही है।'

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लेकिन ऐसा बिल्कुल भी नहीं है। प्राचीन काल से हिंदू मंदिरों में दान देने की परंपरा रही है। हिंदू धर्म ग्रंथों में उल्लेख मिलता है कि कलयुग में दान करने से पापों से मुक्ति मिलती है। यही कारण है कि सदियों से सम्राट, राजा और प्रजा सभी मंदिरों में दान करते हैं।

ओडिशा के पुरी का जगन्नाथ मंदिर में महाराजा रणजीत सिंह (महान सिख सम्राट) ने मंदिर स्वर्ण दान दिया था, जो कि उनके द्वारा स्वर्ण मंदिर, अमृतसर को दिए गये स्वर्ण से कहीं अधिक था। उन्होंने अपनी वसीयत उल्लेख किया था कि, 'विश्व प्रसिद्ध कोहिनूर हीरा, जो विश्व में अब तक सबसे मूल्यवान और सबसे बड़ा हीरा है, जगन्नाथ मंदिर को दान कर दिया जाये।

लेकिन यह सम्भव ना हो सका, क्योंकि उस समय तक अंग्रेजों ने पंजाब पर अपना अधिकार करके, उनकी सभी शाही सम्पत्ति जब्त कर ली थी, वरना कोहिनूर हीरा, भगवान जगन्नाथ के मुकुट की शान होता। इतिहास गवाह है कि वर्ष 1429 के एक अभिलेख के अनुसार विजयनगर सम्राट देवराय द्वितीय ने विक्रमादित्यमंगला नामक गांव तिरुपति मंदिर को दान किया था जिसके राजस्व से मंदिर के धार्मिक कार्य बेहतर तरीके से चलते रहें।

आंध्रप्रदेश में तिरुपति का वेंकटेश्वर मंदिर, भगवान विष्णु को समर्पित है जिसे वेंकटेश्वर, श्रीनिवास और बालाजी के नाम से भी जाना जाता है। यहां विजयनगर के राजा कृष्णदेवराय द्वारा द्वारा सोने-चांदी के आभूषण दान किए गए थे। उसी समय से भगवान के भक्त यहां दान देते हैं।

प्राचीन काल से ही यानी 18-19वीं शताब्दी तक भारतीय मंदिर ज्ञान-विज्ञान, कला आदि के साथ-साथ महत्वपूर्ण आर्थिक गतिविधियों केंद्र हुआ करते थे। भारत के आर्थिक इतिहास में मंदिरों की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। यही कारण है कि हिंदू मंदिरों में अकूत धन-सम्पदा के भंडार वर्तमान में भी मौजूद हैं।

तिरूपति मंदिर की वार्षिक आय की बात हो या फिर प्राचीन पद्मनाभ मंदिर से मिला खजाना हो, मंदिरों में धन का प्रवाह तब से लेकर आज तक चला आ रहा है। जहां दान करने से लोग आज भी पीछे नहीं हटते।


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