तभी वे हज़रत मुहम्मद साहब के जीवन को समझ पाएंगे
हजरत अली के जन्मदिवस पर विशेष् । इस्लाम के पैगंबर हज़रत मुहम्मद साहब के दामाद हज़रत अली साहब का जन्म सउदी अरब के शहर मक्का में हुआ था।
इस्लाम के पैगंबर हज़रत मुहम्मद साहब के दामाद हज़रत अली साहबका जन्म सउदी अरब के शहर मक्का में हुआ था। वे न सिर्फ एक कुशल सेनानायक थे, बल्कि विद्वान भी थे।हज़रत मुहम्मद साहब ने विरासत में राजनीतिक व्यवस्था नहीं छोड़ी थी, बल्कि विरासत में छोड़ा था एक रूहानी प्रभुत्व और अली इसके सही उत्तराधिकारी थे।
अली ने अपने जीवन में राजनीतिक महत्वाकांक्षा को कभी स्थान नहीं दिया। सैद्धांतिक रूप से वे इन सबसे ऊपर थे। अली कुरेश के सबसे ऊंचे क़बीले से होने के बावजूद वे कठोर परिश्रम करते थे। एक बार उनके घर में दो दिन से खाना नहीं बना था, जिसके कारण उनके छोटे-छोटे बच्चे भूख से व्याकुल थे। उनकी यह हालत जब अली ने देखी, तो अपनी पत्नी फ़ातिमा (हज़रत मुहम्मद साहब की बेटी) से बच्चों की परेशानी के बारे में पूछा। फ़ातिमा
बोलीं, ‘इन लोगों ने दो दिन से अन्न का एक दाना नहीं खाया है।’ यह सुनकर अली ने कहा, ‘मैं इनके लिए खाने का प्रबंध कर के आता हूं।’ उन्होंने एक व्यापारी के यहां पूरे दिन बोझा ढोया, इसके बाद उन्हें जो पैसे मिले, उन्हें लेकर वे घर आए। जैसे ही घर के निकट पहुंचे, वहां एक फ़क़ीर ने मदद की गुहार लगा दी। फ़क़ीर ने भी दो रोज़ से कुछ नहीं खाया था। अली ने जैसे ही उसका हाल सुना, उन्होंने जितने पैसे मज़दूरी से कमाए थे, उस फ़क़ीर को दे दिए। जब घर लौटकर आए, तो उनकी पत्नी फ़ातिमा ने पूछा, ‘क्या लाए हैं?’ जवाब में उन्होंने सारी बात बताई और कहा, ‘बच्चों से कहना, आज फिर ़खुदा का नाम लेकर सो जाएं। कल का दिन बेहतर होगा।’ इस किस्से से हज़रत अली के सेवा-भाव और त्याग को समझा जा सकता है। आज मुस्लिम समाज को यह विचार करना
होगा कि किस प्रकार वे हज़रत अली के बताये रास्ते पर चलें। सिर्फ अली का नाम लेने से कुछ नहीं होगा, ज़रूरी है कि वे अली के रास्ते पर चलने वाली मानसिकता को अपनाएं। तभी वे इस्लाम के पै़गंबर हज़रत मुहम्मद साहब के जीवन को समझ पाएंगे, जैसा कि हज़रत अली ने समझा।
रामिश सिद्दीकी
(लेखक इस्लामिक विषयों के जानकार हैं)