जब अखाड़े के साधु-संत आएंगे तो इस मुद्दे को उठाएंगे और विरोध दर्ज करा सकते हैं
सिंहस्थ के लिए प्रदेश सरकार ने इस बार अपनी तिजोरी खोल दी है, मगर इस पैसे का पूरी तरह सदुपयोग नहीं हो पा रहा है। सिंहस्थ के लिए किए गए कुछ निर्माण कार्यों की गुणवत्ता कठघरे में है, कहीं विवाद की स्थिति है तो कहीं काम की चाल ऐसी है
उज्जैन। सिंहस्थ के लिए प्रदेश सरकार ने इस बार अपनी तिजोरी खोल दी है, मगर इस पैसे का पूरी तरह सदुपयोग नहीं हो पा रहा है। सिंहस्थ के लिए किए गए कुछ निर्माण कार्यों की गुणवत्ता कठघरे में है, कहीं विवाद की स्थिति है तो कहीं काम की चाल ऐसी है कि कछुआ भी शरमा जाए।
जिन अफसरों के जिम्मे सिंहस्थ की तैयारी है, उनके हाल ऐसे हैं कि संभाग के सबसे बड़े अफसर को कहना पड़ रहा है-मैं बहुत दुखी हूं। मुख्यमंत्री गुरुवार को शहर में रहेंगे। हालांकि उनके दौरे में निरीक्षण का कार्यक्रम शामिल नहीं है।
चूंकि अब सिंहस्थ चंद माह दूर है, शहरवासियों की भावना है कि मुख्यमंत्री सिंहस्थ तैयारियों की जमीनी हकीकत को भी देखें। ताकि मालूम चल सके तीन हजार करोड़ रुपए खर्च करने के बाद भी शहर में वह रंगत नहीं आ सकी है, जो महाकुंभ की मेजबानी के लिए चाहिए।
नृसिंह घाट पुल: 9 करोड़ का प्रोजेक्ट बना मुसीबत
इस बार नृसिंहघाट के पास 9.62 करोड़ लागत से पुल बनाया गया है। शिप्रा नदी के ऊपर पुल तो बन गया है, लेकिन एप्रोच रोड के कारण प्रोजेक्ट मुसीबत बना हुआ है। एप्रोच रोड के लिए किसान ने जमीन देने की सहमति तो दे दी है, लेकिन इसमें यह शर्त भी रखी है कि पूरा मुआवजा मिलने के बाद ही वह काम करने देगा।
पूरा मुआवजा देने में काफी समय समय लग सकता है। पुल की एप्रोच रोड सुरक्षा कारणों से सीधी निकालना आवश्यक है पर जमीन की समस्या के कारण एप्रोच रोड में दो खतरनाक मोड़ आ रहे हैं। सीधी रोड के लिए प्रशासन को अवार्ड पारित करने की देर थी, पर अवार्ड पारित करने की जगह किसान से सहमति लेकर पुल बनाया जा रहा है। अगर वक्त पर पुल नहीं बना तो सिंहस्थ में सुविधा की जगह मुसीबतें खड़ी कर सकता है। दत्त अखाड़ा तक क्यों नहीं बन रहा घाट?
इस बार घाटों के निर्माण पर भी करोड़ों स्र्पए पानी की तरह बहाए जा रहे हैं, लेकिन सबसे महत्वपूर्ण मेला क्षेत्र में नृसिंह घाट पर बने नए पुल से दत्त अखाड़ा तक के हिस्से को नहीं जोड़ा जा रहा है। इस स्थान का मुख्यमंत्री या प्रभारी मंत्री द्वारा जाए निरीक्षण किया जाए तो घाट बनाने की जरूरत दिखाई देगी।
घाट की लंबाई इतनी अधिक भी नहीं कि सिंहस्थ से पहले बनाया न जा सके। अगर इस मामले की तह में जाया जाए तो घाट बनाने से रोकने वाले कारण साफ हो सकते हैं। जल संसाधन विभाग के अधिकारियों की इस महत्वपूर्ण स्थान पर घाट बनाने की अरुचि का मतलब लोगों को समझ नहीं आ रहा।
साधु-संत भी चाहते हैं कि इस स्थान पर घाट बनाना बेहद जरूरी है। सेतु संभाग और जल संसाधन विभाग के बीच 'शीत युद्ध के कारण भी घाट नहीं बन पा रहा।
फोरलेन पर संतों के विरोध का साया
बड़नगर रोड को मुल्लापुरा से छोटी रपट तक फोरलेन किया जा रहा है। इस पर साधु-संतों ने आपत्ति उठाई है। अभा अखाड़ा परिषद के महासचिव हरिगिरिजी ने दत्त अखाड़ा से लगी जमीन की ओर रोड के चौड़ीकरण पर आपत्ति ली है। इस विरोध का अभी कोई निराकरण नहीं किया गया है।
सिंहस्थ के पूर्व जब अखाड़े के साधु-संत आएंगे तो इस मुद्दे को उठाएंगे और विरोध दर्ज करा सकते हैं। लिहाजा, इस समस्या का निराकरण गंभीरता से किया जाना चाहिए। इसके लिए जूना अखाड़े के साधु-संतों के साथ एमपीआरडीसी अधिकारियों की समन्वय बैठक कराना चाहिए, जिससे कि इसका सर्वमान्य हल निकाला जा सके।
इंदौर रोड फोरलेन : अब तक अधूरा
शहर के आंतरिक फोरलेन इंदौर रोड के चौड़ीकरण कार्य का भूमिपूजन मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान ने सिंहस्थ की तैयारियों से पहले किया था। आज तक फोरलेन का काम पूरा नहीं हो सका है।
मुख्यमंत्री व प्रभारी मंत्री के आने की सूचना पर बुधवार को ताबड़तोड़ लंबे समय से अधूरे पड़े डिवाइडर को बनाने का काम शुरू किया गया। डामर की रोड के दोनों ओर सीमेंट कांक्रीट के शोल्डर बनाए जा रहे हैं। जानकारों के मुताबिक इस शोल्डर की मोटाई इतनी नहीं रखी गई है कि भारी वाहन इस पर से गुजर सकें।
बहुत कम समय में सीसी के शोल्डर खराब हो सकते हैं। फोरलेन पर किया गया डामर भी कई जगह उखड़ गया है। नानाखेड़ा चौराहे पर ही उखड़ी हुई गिट्टी और गड्ढे देखे जा सकते हैं। धार्मिक स्थलों को विस्थापित भी नहीं किया जा सका है। इस कारण भी रोड का चौड़ीकरण सार्थक साबित नहीं हो रहा।
चौड़ीकरण सिंहस्थ से पहले नहीं हो सकेगा पूरा
सिंहस्थ के मद्देनजर सरकार ने खासतौर से उज्जैन से कानीपुरा होते हुए तराना (करंज) तक रोड चौड़ीकरण की योजना मंजूर की है। इस रोड का काम इतना धीमा है कि अब तक काफी कम काम हो सका है। देवनखेड़ी और रूदाहेड़ा में किसानों द्वारा मुआवजा न मिलने के कारण काम भी रोका जा रहा है। शहरी क्षेत्र में सीसी रोड का काम भी पूरा नहीं हो सका है।
आधे-अधेरे रोड के कारण आम लोग परेशान हो रहे हैं और कंस्ट्रक्शन कंपनी के अधिकारी विभाग के सर्वोच्च अधिकारी से निकटता का भय दिखाकर इंजीनियरों के निर्देशों का कोई पालन नहीं कर रहे। कंसलटेंट ने खुद विभाग को पत्र लिखा है कि यह काम सिंहस्थ से पहले पूरा होना संभव नहीं है और हर माह 15 करोड़ स्र्पए खर्च करना अत्यंत मुश्किल है।
जयसिंहपुरा रोड भी अधूरा छोड़ा
चारधाम मंदिर से जयसिंहपुरा की ओर जाने वाले मार्ग को सीमेंट कांक्रीट का किया गया है। जयसिंहपुरा क्षेत्र में इस रोड का काम अधूरा ही छोड़ दिया गया है। वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारियों के आदेश के बाद भी लोक निर्माण विभाग इसे पूरा नहीं करा सका है। इससे क्षेत्रीय लोगों सहित बाहर से आने वाले यात्रियों को कई मुसीबतों का सामना करना पड़ रहा है।
मकोड़ियाआम चौराहा पर फोरलेन का हिस्सा रोटरी के पास अधूरा छोड़ दिया गया है। संभागायुक्त के निर्देश के बाद भी इसे पूरा नहीं किया जा रहा। लोक निर्माण विभाग के अधिकारी इस समस्या को दूर करने की कोशिश ही नहीं कर पा रहे। इससे क्षेत्र में दुर्घटना का खतरा बना हुआ है। जनप्रतिनिधियों को कोई तवज्जो नहीं
इस बार सिंहस्थ के कार्यों को लेकर जनप्रतिनिधियों को कोई तवज्जो नहीं दी गई। जनप्रतिनिधि भी तैयारियों से पूरी तरह संतुष्ट नहीं है। कुछ नेता तो अपना गुबार निकालने की तैयारी में हैं। सूत्रों के मुताबिक भाजपा ग्रामीण से जुड़े एक नेता ने निर्माण कार्यों को लेकर विरोध का मोर्चा खोलने के लिए वरिष्ठ नेताओं से अनुमति तक ले ली थी, लेकिन केंद्रीय सिंहस्थ समिति के अध्यक्ष द्वारा पदभार ग्रहण कार्यक्रम तय होने के कारण उन्होंने फिलहाल अपना गुस्सा शांत कर लिया है। आने वाले दिनों में जनप्रतिनिण्रियों के तेवर देखने को मिल सकते हैं। सिंहस्थ क्षेत्र में कैसे हो रहा पक्का निर्माण
सिंहस्थ क्षेत्र में पक्के निर्माण पर प्रतिबंध है। शासन के इस नियम की धज्जी नृसिंह घाट क्षेत्र में ही उड़ रही है। नृसिंह घाट पुल की एप्रोच रोड के पास एक पक्का निर्माण हो रहा है। यहां पुल की एप्रोच रोड होने के कारण दुघर्टनाओं को रोकने के लिए पक्का निर्माण किया ही नहीं जा सकता।
प्रशासनिक अधिकारी भी इस निर्माण को देखकर अपना मुंह किस कारण फेर लेते हैं, यह जांच का विषय है। अगर मुख्यमंत्री या प्रभारी मंत्री स्वयं इस निर्माण कार्य को देखें तो पता चल जाएगा कि सिंहस्थ क्षेत्र में प्रतिबंध के बाद भी कैसे निर्माण हो रहा है।