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संन्यास का अर्थ है सम्यक न्यास, सबके लिए जीना

स्वामी अवधेशानंद के अनुसार संन्यास का अर्थ है सम्यक न्यास, सबके लिए जीना।

By Preeti jhaEdited By: Published: Sat, 30 Apr 2016 11:57 AM (IST)Updated: Sat, 30 Apr 2016 12:51 PM (IST)
संन्यास का अर्थ है सम्यक न्यास, सबके लिए जीना

उज्जैन । जूना अखाड़ा पीठाधीश्वर आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी अवधेशानंद गिरि के अनुसार संन्यास का अर्थ है सम्यक न्यास, सबके लिए जीना।

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उनके विचार

संन्यास ऐसा धर्म है जो अग्नि की तरह पवित्र है। संन्यासी जीवन जल जैसा तरल, सागर जैसा गंभीर और अग्नि जैसा पवित्र होता है। आपने देखा होगा कि वृक्ष अपना फल कभी नहीं खाता है, उसी प्रकार साधु अपना जीवन दूसरों के लिए समर्पित कर देता है।

संन्यास का अर्थ है सम्यक न्यास। वो जिसकी संपदा सबके लिए है। फल, फूल, जल और प्रकाश जैसे कई उदाहरण हैं, जो अपने लिए नहीं, सबके लिए होते हैं। ठीक उसी तरह संन्यासी भी सबके लिए है।

एक सामान्य व्यक्ति के भीतर संसार रहता है लेकिन साधु में संसार नहीं रहता। मुझे आचार्य होने के नाते सिंहस्थ में रथ पर बैठाया जाता है लेकिन मुझे मेले में सबसे निचली पंक्ति के श्रद्धालु, जिसके माथे पर पोटली है, उसके पसीने की चिंता रहती है। ऐसा होता है संन्यासी।

संन्यासी का ना तो किसी से राग होता है और ना द्वेष। वह कभी किसी से बड़ा बनने का प्रयास नहीं करता। हम आज यहां बैठे हैं। 25 मई को चले जाएंगे। फिर किससे कैसा राग और कैसा द्वेष।


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