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खतरे में यमुनोत्री, धाम में फिर आ सकती है तबाही

चारधाम यात्रा का पहला धाम यमुनोत्री खतरे के साये में है। दरकती कालिंदी पहाड़ी और मंदिर परिसर की ओर बढ़ता यमुना का प्रवाह धाम में तबाही ला सकता है। धाम की सुरक्षा के नाम पर पिछले सात सालों में एक करोड़ रुपये से अधिक धनराशि भी खर्च हो चुकी है

By Preeti jhaEdited By: Published: Tue, 05 May 2015 01:13 PM (IST)Updated: Tue, 05 May 2015 01:18 PM (IST)
खतरे में यमुनोत्री, धाम में फिर आ सकती है तबाही

बड़कोट। चारधाम यात्रा का पहला धाम यमुनोत्री खतरे के साये में है। दरकती कालिंदी पहाड़ी और मंदिर परिसर की ओर बढ़ता यमुना का प्रवाह धाम में तबाही ला सकता है। धाम की सुरक्षा के नाम पर पिछले सात सालों में एक करोड़ रुपये से अधिक धनराशि भी खर्च हो चुकी है लेकिन लीपापोती और निम्न गुणवत्ता के कार्यो के चलते अब तक हुए सुरक्षा इंतजाम नाकाफी ही साबित हो रहे हैं।

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केदारनाथ त्रासदी के बाद भी यमुनोत्री धाम की सुरक्षा को लेकर सरकार ने ठोस कदम नहीं उठाए हैं। दरकते कालिंदी पहाड़ी के ठीक नीचे यमुनोत्री धाम में वर्ष 1982, 1984, 2002 और 2004 में पत्थर गिरने की घटनाएं और नदी के बहाव से गर्भगृह को नुकसान पहुंचने की घटनाएं हो चुकी हैं। वर्ष 2004 में तो पहाड़ी से पत्थर गिरने से मंदिर परिसर में मौजूद 6 लोगों की मौत हो गई थी। वर्ष 2013 में मंदिर समिति की ओर से सुरक्षा को लेकर गुहार लगाई गई थी। सरकार ने सिंचाई विभाग को कामचलाऊ सुरक्षा कार्य की जिम्मेदारी सौंप दी। इसके साथ ही जीएसआई व इसरो से इसका अध्ययन कराया गया। जुलाई 2013 में जिलाधिकारी के आग्रह पर भूगर्भ एवं भूखनिक इकाई उत्तराखंड और आइआइआरएस (इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ रिमोट सेंसिंग) के पीके चंपतिरे व डॉ. एसएल चटर्जी ने कालिंदी पहाड़ी का अध्ययन कर अपनी रिपोर्ट सौंपी। रिपोर्ट में कहा गया कि यमुनोत्री धाम बाढ़, भूस्खलन और पत्थर गिरने को लेकर काफी संवेदनशील है, जिसका समय रहते इसका उपचार किया जाना जरूरी है। रिपोर्ट में सलाह दी गई है कि जियोग्रिड वॉल और अन्य माध्यमों से इसे उपचारित किया जा सकता है। लेकिन आज तक इस दिशा में सरकार और प्रशासन की ओर से कोई भी कदम नहीं उठाया गया।


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