मान्यता है कि, इनके जन्म होने के पूर्व छह माह तक रत्न वर्षा हुई थी
श्रावस्ती कल्याणक क्षेत्र तो है ही, सिद्ध क्षेत्र भी है। यहां जैन धर्म के तीसरे तीर्थकर भगवान संभवनाथ के चार कल्याणक हुए है। अनेक मुनिराजो ने निर्वाण प्राप्त किया है। देवाधिदेव भगवान संभवनाथ का जन्म श्रावस्ती मे हुआ था। कार्तिक पूर्णिमा पर जन्मोत्सव एवं अभिषेक मनाया जाता है। इस मौके
श्रावस्ती कल्याणक क्षेत्र तो है ही, सिद्ध क्षेत्र भी है। यहां जैन धर्म के तीसरे तीर्थकर भगवान संभवनाथ के चार कल्याणक हुए है। अनेक मुनिराजो ने निर्वाण प्राप्त किया है। देवाधिदेव भगवान संभवनाथ का जन्म श्रावस्ती मे हुआ था। कार्तिक पूर्णिमा पर जन्मोत्सव एवं अभिषेक मनाया जाता है। इस मौके पर ध्वजारोहण, नित्य नियम पूजन समेत तमाम कार्यक्रम होते है। इसमे भगवान संभवनाथ की रथ यात्रा सबसे अनूठी मानी जाती है। तकरीबन सौ वर्षो से निकाली जा रही रथ यात्रा चौबीसी जिन मंदिर से भगवान संभवनाथ के जन्म स्थली तक जाती है। रथ यात्रा का आकर्षण इतना भव्य होता है कि दिल्ली, लखनऊ, बाराबंकी, फैजाबाद, अमेठी, सुल्तानपुर, कानपुर, गोडा, बहराइच, बलरामपुर, राजस्थान समेत देश के कोने-कोने से जैन धर्मावलंबियो की आस्था तो उमड़ती ही है साथ ही अमेरिका व नेपाल समेत अन्य विदेशी पर्यटकों का भी सांस्कृतिक सामजंस्य होता है।
रथ हांकने के लिए होती है बोली
भगवान संभवनाथ की प्रतिमा लेकर धर्मानुयायी रथ के बीच बैठते है। चंवर डोलाते दो इंद्र होते है। रथ पर कुंवर भी होता है जो रत्न की वर्षा करते हुए चलता है और रथ हांकने के लिए सारथी होता है। श्री दिगम्बर जैन श्रावस्ती तीर्थ क्षेत्र कमेटी के पूर्व प्रचार मंत्री अविनाश जैन बताते है कि रथ हांकने व चंवर डुलाने, आरती करने व भगवान के अगल-बगल बैठने के लिए बाकायदा बोली होती है। इस बोली में जो आगे निकलता है उसे ही रथ हांकने, चंवर डुलाने व अन्य कार्यक्रम का हक मिलता है।
आरती के बाद आगे बढ़ता है रथ
चौबीसी जिन मंदिर पर जब भगवान संभव नाथ का रथ सज कर तैयार होता है तो आरती उतारी जाती है। इस आरती के लिए भी बोली होती है। आरती उतारने के बाद रथ भगवान संभवनाथ की जन्मस्थली महेट मे स्थित सोमनाथ मंदिर के लिए रवाना होता है। वहां पहुंच कर जन्माभिषेक कार्यक्रम होता है।
पालना का भी होगा कार्यक्रम
इस वर्ष भगवान संभवनाथ के जन्म जयंती पर पालना झुलाने का कार्यक्रम होगा। तीर्थ क्षेत्र कमेटी के सह मंत्री प्रकाश चंद्र जैन बताते है कि पालना कार्यक्रम पहली बार होगा। उन्होने बताया कि भगवान संभवनाथ को पालना झुलाने की बोली होगी।
जन्म से पूर्व हुई थी रत्नो की वर्षा
मान्यता है कि भगवान संभवनाथ के जन्म होने के पूर्व निरंतर छह माह तक श्रावस्ती मे रत्न वर्षा हुई थी। भगवान संभवनाथ के पिता का नाम जितारि और माता का नाम शुसेना था। पद्मम पुराण, बरांग चरित व उलाम पुराण मे भी उल्लेख मिलता है कि संभव कुमार ने अपना बाल्यकाल और युवावस्था श्रावस्ती मे ही बिताया था। उन्होने राज और सांसारिक भोगो का भी उपयोग किया, लेकिन एक दिन जब वह महल की छत पर बैठे प्राकृतिक छंटा निहार रहे थे तो सहसा हवा के झोके बदलो के टुकड़े गगन मे विलीन हो गए जिससे वह बिचलित हो उठे। राजकाज के मोह के बंधन ढीले पड़ गए। संसार की असारता का विचार आते ही उनमे वैराग्य पैदा हो गया। मगसिर शुक्ला पूर्णमासी को श्रावस्ती के सहेतुक वन मे उन्होने दीक्षा ले ली। जैन शास्त्रो के अनुसार भगवान संभव नाथ ने मार्ग शीर्ष शुक्ल पूर्णिमा के दिन सहेतुक वन के घनघोर जंगल मे वस्त्राभूषण का त्याग कर दिया और पंचमुखी केस लौट कर उपवास का नियम ले लय मे निमग्न हो गए। 14 वर्षो तक भगवान संभवनाथ ने घोर तप किया। कार्तिक सुदी चतुर्दशी को जब उन्हे ज्ञान प्राप्त हुआ तब देवो और मनुष्यो ने श्रावस्ती सहेतुक वन मे बड़े उल्लास के साथ ज्ञान कल्याण का पूजन किया।
महेट मे है जन्मस्थली के अवशेष
भगवान संभव नाथ का जन्म स्थान श्रावस्ती के महेट स्थित इमलिया दरवाजे के पास सोमनाथ मंदिर के रूप मे विख्यात है। इस मंदिर की रचना शैली ईरानी है। इसके नीचे प्राचीन जैन मंदिर के अवशेष है। खुदाई के दौरान यहां पुरातत्व विभाग को बहुत सी जैन मूर्तियां मिली है।