गुलाबी सर्दी में बदला 'बांकेबिहारी' का खानपान
शरद पूर्णिमा के बाद शीत का प्रभाव धीरे-धीरे बढ़ने लगा है। मौसम के अनुरूप बाल रूप वाले बांकेबिहारी को भोग दिए जाने की परंपरा है। सर्दी के प्रभाव से उन्हें बचाने के लिए अब ड्राई फ्रूट का भोग शुरू कर दिया गया है। इसके अलावा उनको लगाए जाने वाले चंदन के टीके में केसर मिलाया जा रहा। जबकि माखन-मिश्री में भी केसर मिलाया
वृंदावन। शरद पूर्णिमा के बाद शीत का प्रभाव धीरे-धीरे बढ़ने लगा है। मौसम के अनुरूप बाल रूप वाले बांकेबिहारी को भोग दिए जाने की परंपरा है। सर्दी के प्रभाव से उन्हें बचाने के लिए अब ड्राई फ्रूट का भोग शुरू कर दिया गया है। इसके अलावा उनको लगाए जाने वाले चंदन के टीके में केसर मिलाया जा रहा। जबकि माखन-मिश्री में भी केसर मिलाया जा रहा है।
मंदिर के सेवायतों का मानना है कि उनके ठाकुर बाल रूप में हैं। उन्हें बच्चे की भांति ही सर्दी और गर्मी का अहसास होता है। शरद पूर्णिमा के बाद से ड्राई फ्रूट में बादाम, काजू, पिस्ता और किसमिस आदि का भोग उन्हें दिया जा रहा है। उनके दूध में अब केसर की मात्र बढ़ा दी गई है। इसी प्रकार सनील, बेलवेट और मोटे अश्तरदार सिल्क की पोशाक पहनाई जा रही है। उन्हें सुबह आठ बजे श्रंगार भोग माखन मिश्री का दिया जाता है, अब उसमें केसर मिलाया जाने लगा है।
दोपहर राजभोग में कच्चा भोजन, खीर, सूखे मेवे डालकर दी जाती है। इसके अलावा केसर डाल दूध-भात भी उन्हें भाता है। बांके बिहारी को शाम को उत्थापन यानि की चाट का भोग भी दिया जाता है। रात को शयन भोग में उन्हें पकवान अर्पित किए जाते हैं।
शयन के पूर्व बिहारीजी को मेवायुक्त और केसर मिश्रित दूध का भोग दिया जाता है। मंदिर के सेवायत श्रीनाथ गोस्वामी बताते हैं कि बांकेबिहारी के शयन कक्ष में ठाकुरजी के सोने के बाद शयन कक्ष में चार लड्ड, चार पान के जोड़े और लोटे में पानी रखा जाता है। उनका कहना है कि रात में यदि बिहारीजी की आंख खुल जाए और उन्हें भूख या प्यास लगे, तो वह इधर-उधर परेशान न हों।