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आस्था के समंदर में नहाते रहे लोग

सायं छह बजे कार्तिक शुक्ल नवमी यानी अक्षय नवमी का मुहूर्त लगते ही 14 कोसी परिक्रमा मार्ग पर आस्था का सैलाब उमड़ पड़ा। शुरू के एकाध घंटे तो यह प्रतीकात्मक ही रहा पर देखते-देखते परिक्रमा मार्ग श्रद्धालुओं से पट गया।

By Preeti jhaEdited By: Published: Sat, 01 Nov 2014 02:53 PM (IST)Updated: Sat, 01 Nov 2014 04:21 PM (IST)
आस्था के समंदर में नहाते रहे लोग

अयोध्या सायं छह बजे कार्तिक शुक्ल नवमी यानी अक्षय नवमी का मुहूर्त लगते ही 14 कोसी परिक्रमा मार्ग पर आस्था का सैलाब उमड़ पड़ा। शुरू के एकाध घंटे तो यह प्रतीकात्मक ही रहा पर देखते-देखते परिक्रमा मार्ग श्रद्धालुओं से पट गया।

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यद्यपि रामनगरी की वृहत्तर परिधि में जिसे जहां से सुविधा मिली, वहीं से परिक्रमा शुरू कर दी पर सर्वाधिक भीड़-भाड़ नयाघाट स्थित बंधा तिराहे पर देखने को मिली। रामघाट चौराहा, हलकारा का पुरवा, सूर्यकुंड, आचारी का सगरा, जनौरा, नाका हनुमानगढ़ी, सआदतगंज हनुमान गढ़ी, गुप्तारघाट, जमथरा आदि पड़ावों पर भी काफी गहमा-गहमी रही। परिक्रमार्थियों का कारवां इंद्रधनुषी छटा का वाहक रहा। इसमें यदि युवा थे, तो महिलाओ, बच्चों और वृद्धों की तादाद भी कम नहीं रही। अधिकांश ग्रामीण और कृषक थे, तो कस्बाई और महानगरीय संस्कृति की नुमाइंदगी भी देखने को मिल रही थी। अनेकता के बावजूद सांस्कृतिक एकता प्रतिपादित हो रही थी। किसी के तन पर ठीक से कपड़े नहीं थे तो कोई अपनी साधन सम्पन्नता के अनुरूप सजा-संवरा नजर आ रहा था पर सबके चेहरे शांत और आराध्य के प्रति समर्पण से ओत-प्रोत थे। कोई खुले कंठ से जयकारा लगाता हुआ आगे बढ़ रहा था तो कई ऐसे थे, जो मन ही मन आराध्य को स्मरण करते हुए आस्था का पथ नाप रहे थे। देखते-देखते अपनी जुड़वा नगरी फैजाबाद सहित रामनगरी आस्था के गहन वतरुल से घिरी दिखने लगी। रामकथा मर्मज्ञ डॉ. राघवेशदास के अनुसार परिक्रमार्थी नगरी की परिधि नापकर न केवल अपनी आस्था को साकार करते हैं बल्कि नगरी के धार्मिक-आध्यात्मिक फलक को ऊर्जस्वित भी करते हैं। हालांकि शुरू के कुछ घंटों को छोड़कर परिक्रमार्थियों का शरीर शनै:-शनै: शिथिल पड़ने लगा और वे आगे तो बढ़ रहे थे पर अपने उत्साह से कम आस्था की डोर थाम कर अधिक।

इस बीच जगह-जगह परिक्रमार्थियों के लिए भोजन, जलपान, विश्रम एवं स्वास्थ्य सेवा के स्टाल लगाए गए होते हैं। गोलाघाट स्थित चतुभरुजी मंदिर के सम्मुख अवध इलेक्ट्रोपैथी धर्मार्थ चिकित्सालय की ओर से स्टाल लगाए चिकित्सक संतोष पांडेय देर शाम पूरे चाव से श्रद्धालुओं की सेवा में निमग्न होते हैं। उनके अनुसार अगले कुछ घंटों में परिक्रमा की मंजिल पाने के करीब होने के साथ श्रद्धालुओं को ऐसे शविरों की और जरूरत महसूस होगी, तब न केवल सेवा शिविरों की सार्थकता सिद्ध होती है बल्कि बड़ी संख्या में श्रद्धालु ऐसे शिविरों से उपकृत नजर आते हैं। औषधि के साथ चाय, जलपान और भोजन के सेवा शिविर भी लगे दिखते हैं। अधिकांश श्रद्धालु परिक्रमा की चुनौती स्वीकार कर चाय, जलपान, भोजन आदि की सेवा लेने से परहेज करते हैं पर बीच-बीच में नजर आने वाले बीतरागी संतों के हुजूम के लिए ऐसे शिविर मुफीद साबित होते हैं। पहली पांत में ही परिक्रमा शुरू करने वाले जालौन के 50 वर्षीय कृषक ओमप्रकाश निरंजन कुछ ही घंटों में 14 कोस के परिक्रमा मार्ग का एक तिहाई रास्ता नाप चुके होते हैं।जाका, अयोध्या: सायं छह बजे कार्तिक शुक्ल नवमी यानी अक्षय नवमी का मुहूर्त लगते ही 14 कोसी परिक्रमा मार्ग पर आस्था का सैलाब उमड़ पड़ा। शुरू के एकाध घंटे तो यह प्रतीकात्मक ही रहा पर देखते-देखते परिक्रमा मार्ग श्रद्धालुओं से पट गया। 1यद्यपि रामनगरी की वृहत्तर परिधि में जिसे जहां से सुविधा मिली, वहीं से परिक्रमा शुरू कर दी पर सर्वाधिक भीड़-भाड़ नयाघाट स्थित बंधा तिराहे पर देखने को मिली। रामघाट चौराहा, हलकारा का पुरवा, सूर्यकुंड, आचारी का सगरा, जनौरा, नाका हनुमानगढ़ी, सआदतगंज हनुमान गढ़ी, गुप्तारघाट, जमथरा आदि पड़ावों पर भी काफी गहमा-गहमी रही। परिक्रमार्थियों का कारवां इंद्रधनुषी छटा का वाहक रहा। इसमें यदि युवा थे, तो महिलाओ, बच्चों और वृद्धों की तादाद भी कम नहीं रही। अधिकांश ग्रामीण और कृषक थे, तो कस्बाई और महानगरीय संस्कृति की नुमाइंदगी भी देखने को मिल रही थी। अनेकता के बावजूद सांस्कृतिक एकता प्रतिपादित हो रही थी। किसी के तन पर ठीक से कपड़े नहीं थे तो कोई अपनी साधन सम्पन्नता के अनुरूप सजा-संवरा नजर आ रहा था पर सबके चेहरे शांत और आराध्य के प्रति समर्पण से ओत-प्रोत थे। कोई खुले कंठ से जयकारा लगाता हुआ आगे बढ़ रहा था तो कई ऐसे थे, जो मन ही मन आराध्य को स्मरण करते हुए आस्था का पथ नाप रहे थे। देखते-देखते अपनी जुड़वा नगरी फैजाबाद सहित रामनगरी आस्था के गहन वतरुल से घिरी दिखने लगी। रामकथा मर्मज्ञ डॉ. राघवेशदास के अनुसार परिक्रमार्थी नगरी की परिधि नापकर न केवल अपनी आस्था को साकार करते हैं बल्कि नगरी के धार्मिक-आध्यात्मिक फलक को ऊर्जस्वित भी करते हैं। हालांकि शुरू के कुछ घंटों को छोड़कर परिक्रमार्थियों का शरीर शनै:-शनै: शिथिल पड़ने लगा और वे आगे तो बढ़ रहे थे पर अपने उत्साह से कम आस्था की डोर थाम कर अधिक। इस बीच जगह-जगह परिक्रमार्थियों के लिए भोजन, जलपान, विश्रम एवं स्वास्थ्य सेवा के स्टाल लगाए गए होते हैं। गोलाघाट स्थित चतुभरुजी मंदिर के सम्मुख अवध इलेक्ट्रोपैथी धर्मार्थ चिकित्सालय की ओर से स्टाल लगाए चिकित्सक संतोष पांडेय देर शाम पूरे चाव से श्रद्धालुओं की सेवा में निमग्न होते हैं। उनके अनुसार अगले कुछ घंटों में परिक्रमा की मंजिल पाने के करीब होने के साथ श्रद्धालुओं को ऐसे शविरों की और जरूरत महसूस होगी, तब न केवल सेवा शिविरों की सार्थकता सिद्ध होती है बल्कि बड़ी संख्या में श्रद्धालु ऐसे शिविरों से उपकृत नजर आते हैं। औषधि के साथ चाय, जलपान और भोजन के सेवा शिविर भी लगे दिखते हैं। अधिकांश श्रद्धालु परिक्रमा की चुनौती स्वीकार कर चाय, जलपान, भोजन आदि की सेवा लेने से परहेज करते हैं पर बीच-बीच में नजर आने वाले बीतरागी संतों के हुजूम के लिए ऐसे शिविर मुफीद साबित होते हैं। पहली पांत में ही परिक्रमा शुरू करने वाले जालौन के 50 वर्षीय कृषक ओमप्रकाश निरंजन कुछ ही घंटों में 14 कोस के परिक्रमा मार्ग का एक तिहाई रास्ता नाप चुके होते हैं।


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