इस शुभ दिन में दशमेश गुरु ने ली थी शिष्यों से दीक्षा
तख्त श्री हरिमंदिर जी पटना साहिब में सोमवार को बैसाखी के मौके पर आयोजित विशेष दीवान में देश-विदेश के श्रद्धालु जुटे। उन्होंने कहा कि आज से 315 वर्ष पूर्व दशमेश गुरु गोविन्द सिंह ने ऊंच-नीच, छूआछूत, भेदभाव जैसी सामाजिक कुरीतियों को समाप्त करने के लिये खालसा पंथ की स्थापना कर अनुयायियों को हमेशा न्यारा रहने का संदे
पटना सिटी। तख्त श्री हरिमंदिर जी पटना साहिब में सोमवार को बैसाखी के मौके पर आयोजित विशेष दीवान में देश-विदेश के श्रद्धालु जुटे। उन्होंने कहा कि आज से 315 वर्ष पूर्व दशमेश गुरु गोविन्द सिंह ने ऊंच-नीच, छूआछूत, भेदभाव जैसी सामाजिक कुरीतियों को समाप्त करने के लिये खालसा पंथ की स्थापना कर अनुयायियों को हमेशा न्यारा रहने का संदेश दिया।
तख्त श्री हरिमंदिर जी पटना साहिब में बैसाखी मनाने वाले श्रद्धालुओं का दिनभर तांता लगा रहा। इससे पहले त्रिदिवसीय अखंड पाठ की समाप्ति के बाद भजन-कीर्तन, कथा-प्रवचन का दौर दिनभर चलता रहा। इस मौके पर भाई लोकिंद्र सिंह, भाई रजनीश सिंह, भाई ज्ञान सिंह, भाई हरविंद्र पाल सिंह लिटिल के शब्द-कीर्तन से संगत निहाल हुई।
कथा वाचक ज्ञानी दलजीत सिंह ने कहा कि दशमेश गुरु अपने आप में सार्वदेशिक, सार्वभौमिक एवं विश्व बंधुत्व का प्रतीक थे। श्री गुरु गोविंद सिंह ने लोगों को शस्त्रधारी होने के लिए कहा, समय आने पर शस्त्रों को उपयोग करने की प्रेरणा दी। बैसाखी के दिन खालसा के रूप में उन्होंने एक नये समाज का सृजन किया। देश-विदेश से आये सिख श्रद्धालुओं ने पंगत में बैठ लंगर चखा।
खालसा की स्थापना 13 अप्रैल 1699 को सिखों के दशमेश गुरु गोविंद राय जी (जो बाद में गुरु गोविंद सिंह के नाम से विख्यात हुए) ने आनंदपुर साहिब के श्री केश गढ़ साहिब में खालसा पंथ की स्थापना की। दशमेश पिता ने 'पंज प्यारे' से अमृत छका (चखा) और उन्हें सिख के रूप में मान्यता दी। उसी समय गुरु जी ने सिखों के लिए पंच ककार-केस, कंघा, कड़ा, कच्छा एवं कृपाण धारण करने का विधान बनाया। उस दिन हजारों प्राणियों ने अमृतपान किया और ऊंच-नीच, जाति-पाति व भेदभाव को त्याग कर एक ही ईश्वर की संतान बना खालसा यानी शुद्ध, खालिस बन गए। इस प्रकार दलित-शोषित मानवता की रक्षा के लिए अकाल पुरुष की फौज तैयार हो गई। इस प्रकार खालसा पंथ की स्थापना करके गुरु गोबिंद सिंह जी ने चिड़ियों में बाज जैसी शक्ति भर दी। पंथ की स्थापना का महत्व-
फसलां दी मुक गई राखी ओ जट्टा आई बैसाखी की पंक्तियों पर प्रकाश डालते हुए कथा वाचक दलजीत सिंह ने बताया कि पंजाबी में 'मूक' का अर्थ होता है खत्म होना और 'राखी' रखवाली को कहते हैं। बैसाखी का पर्व हर वर्ष फसल तैयार होने की खुशी में उल्लास पूर्वक पंजाब व अन्य प्रदेशों में मनाया जाता है। ढोल की थाप और भंगड़े-गिद्दे के रंग दिलों की इंद्रधनुषी उमंग से भर देते हैं। खुशहाली व समृद्धि के इस पर्व के साथ जुड़ा है खालसा पंथ की स्थापना का महत्व।
अमृत छके संगत ने-खालसा पंथ के स्थापना दिवस पर दर्जनों लोगों ने अमृत छके। विशेष दीवान में प्रबंधक कमेटी के अध्यक्ष प्रो आरएस गांधी, कनीय उपाध्यक्ष महाराजा सिंह सोनू, सदस्य सरजिंद्र सिंह, प्रबंधक दलजीत सिंह, बाबा इंद्रजीत सिंह समेत अन्य समाज के लोग थे।