Move to Jagran APP

अब मशीन से बन रहे दीए

विज्ञान और बढ़ते तकनीक के दौर में मिट्टी के दीये बनाने वाले कुम्हार भी पीछे नहीं हैं। वह जमाना गया जब कुम्हार को ही चाक घुमाना पड़ता था और मिट्टी को आकार देकर दीया भी बनाना पड़ता था। दीवाली के मौके पर अधिक से अधिक दीया बनाने के लिए खलारी

By Preeti jhaEdited By: Published: Thu, 05 Nov 2015 04:35 PM (IST)Updated: Thu, 05 Nov 2015 04:40 PM (IST)

खलारी। विज्ञान और बढ़ते तकनीक के दौर में मिट्टी के दीये बनाने वाले कुम्हार भी पीछे नहीं हैं। वह जमाना गया जब कुम्हार को ही चाक घुमाना पड़ता था और मिट्टी को आकार देकर दीया भी बनाना पड़ता था। दीवाली के मौके पर अधिक से अधिक दीया बनाने के लिए खलारी का एक कुम्हार हरि प्रजापति अब चाक घूमाने के लिए बिजली के मोटर का उपयोग कर रहा है।

loksabha election banner

मोटर से घूमने वाला चाक कहीं बाजार में नहीं मिला, बल्कि हरि कुम्हार ने स्वयं की सोच और प्रयास से मशीनी चाक को बनाया है। जेहलीटांड़ खलारी के हरि प्रजापति ने बताया कि मोटर लगा देने से अब चाक घूमाने में मेहनत नहीं लगता। इससे दीया का उत्पादन भी बढ़ जाता है। हरि प्रजापति कहते हैं कि जेहलीटांड़ के कुम्हारों को सरकारी सहायता की जरूरत है। बस्ती में स्थाई बिजली और आर्थिक सहायता मिलता तो सभी कुम्हार तकनीक का इस्तेमाल कर अपना उत्पादन बढ़ा सकते थे। जेहलीटांड़ के मूर्तिकार प्रमोद प्रजापति बताते हैं कि एक दिन में एक आदमी हजार से पंद्रह सौ दीये बना लेता है। बताया कि दीवाली में इस बार दीयों की कीमत अस्सी से सौ रुपये प्रति सैकड़ा रहने की उम्मीद है। लक्ष्मी-गणोश की मूर्तियों के बारे में प्रमोद ने बताया कि जेहलीटांड़ में बनने वाली लक्ष्मी -गणोश की मूर्तियां तीस रुपये से लेकर छह सौ रुपये तक बिकेंगी। जेहलीटांड़ के सभी कुम्हार जोर-शोर से दिवाली की तैयारी में लगे हैं।खलारी: विज्ञान और बढ़ते तकनीक के दौर में मिट्टी के दीये बनाने वाले कुम्हार भी पीछे नहीं हैं। वह जमाना गया जब कुम्हार को ही चाक घुमाना पड़ता था और मिट्टी को आकार देकर दीया भी बनाना पड़ता था। दीवाली के मौके पर अधिक से अधिक दीया बनाने के लिए खलारी का एक कुम्हार हरि प्रजापति अब चाक घूमाने के लिए बिजली के मोटर का उपयोग कर रहा है।

मोटर से घूमने वाला चाक कहीं बाजार में नहीं मिला, बल्कि हरि कुम्हार ने स्वयं की सोच और प्रयास से मशीनी चाक को बनाया है। जेहलीटांड़ खलारी के हरि प्रजापति ने बताया कि मोटर लगा देने से अब चाक घूमाने में मेहनत नहीं लगता। इससे दीया का उत्पादन भी बढ़ जाता है। हरि प्रजापति कहते हैं कि जेहलीटांड़ के कुम्हारों को सरकारी सहायता की जरूरत है। बस्ती में स्थाई बिजली और आर्थिक सहायता मिलता तो सभी कुम्हार तकनीक का इस्तेमाल कर अपना उत्पादन बढ़ा सकते थे। जेहलीटांड़ के मूर्तिकार प्रमोद प्रजापति बताते हैं कि एक दिन में एक आदमी हजार से पंद्रह सौ दीये बना लेता है। बताया कि दीवाली में इस बार दीयों की कीमत अस्सी से सौ रुपये प्रति सैकड़ा रहने की उम्मीद है। लक्ष्मी-गणोश की मूर्तियों के बारे में प्रमोद ने बताया कि जेहलीटांड़ में बनने वाली लक्ष्मी -गणोश की मूर्तियां तीस रुपये से लेकर छह सौ रुपये तक बिकेंगी। जेहलीटांड़ के सभी कुम्हार जोर-शोर से दिवाली की तैयारी में लगे हैं।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.