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धन-संपत्ति से मनुष्य कभी तृप्त नहीं होता

एषणा का अर्थ है कामना। ऐसी कामना जिसमें मुख्यत: विवेक का अभाव रहता है। जिस व्यक्ति के मन में सदा कामनाएं बनी रहती हैं, वह किसी भी कार्य या सिद्धांत पर नहीं टिक सकता है। एषणाएं मुख्य रूप से तीन प्रकार की होती हैं-वित्तैषणा, पुत्रैषणा और लोकैषणा। मनुष्य जीवन का उद्देश्य भोग के साथ योग है। इन समस्त भोगों का आधार धन-संपत्ति है। इसके ि

By Edited By: Published: Mon, 22 Sep 2014 12:50 PM (IST)Updated: Mon, 22 Sep 2014 12:54 PM (IST)
धन-संपत्ति से मनुष्य कभी तृप्त नहीं होता

एषणा का अर्थ है कामना। ऐसी कामना जिसमें मुख्यत: विवेक का अभाव रहता है। जिस व्यक्ति के मन में सदा कामनाएं बनी रहती हैं, वह किसी भी कार्य या सिद्धांत पर नहीं टिक सकता है। एषणाएं मुख्य रूप से तीन प्रकार की होती हैं-वित्तैषणा, पुत्रैषणा और लोकैषणा। मनुष्य जीवन का उद्देश्य भोग के साथ योग है।

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इन समस्त भोगों का आधार धन-संपत्ति है। इसके बिना जीवन संभव नहीं है। शास्त्रों में कहा गया है 'भूखा व्यक्ति कौन-सा पाप नहीं करता है, परंतु हम इस दुनिया में पाते हैं कि पेट भरे व्यक्ति भूखों से अधिक पाप करते दिखाई देते हैं। वेद आदि शास्त्रों में पुरुषार्थ करते हुए धन कमा कर ऐश्वर्य प्राप्त करने पर बल दिया गया है और यह कहा गया है कि धन का उचित उपयोग और उपभोग करना चाहिए।

कठोपनिषद में कहा गया है कि धन-संपत्ति से मनुष्य कभी तृप्त नहीं होता। पुत्रैषणा का अर्थ है-संतान की इच्छा। हम न केवल संतान की इच्छा करते हैं, बल्कि यह भी चाहते हैं कि उसके लिए भी धन-संपत्ति का अंबार लगाकर इस संसार से विदा हों। संसार के सारे भोग मैं और मेरी संतान आदि के लिए हों। जिन सुख-सुविधाओं और ऐश्‌र्र्वयो से हम वंचित रहे हैं, आने वाली पीढि़यों को ऐसा बनायें कि वे हमें वह सब प्राप्त कराकर अमर कर दें।

ऐसी ही एक अमरता की कामना हैं-लोकैषणा जिसका अर्थ है यश, ख्याति, मान-सम्मान आदि की चाह करना।

शास्त्रों में परोपकार और दान आदि की महिमा बताई गई है, परंतु साथ ही इसका आडंबर वर्जित किया गया है। इस कामना के वशीभूत व्यक्ति अपने सारे कार्य इस प्रकार लोगों के सामने प्रचारित करते हैं कि उन्हें सम्मान मिले। वे वर्तमान समय की प्रशंसा से ही संतुष्ट नहीं रहते, बल्कि चाहते हैं कि मरने के बाद भी उनकी मूर्तियां चौराहों पर स्थापित रहें। धर्मपूर्वक जिस लोकैषणा की पूर्ति की जाती है, उसे हम लौकिक दृष्टि से समाज के लिए हितकारी मान सकते हैं।

शास्त्रों में एषणाओं को मोक्ष मार्ग में पड़ने वाली खाई बताया गया है। एषणाओं का त्याग करके ही आध्यात्मिक मार्ग पर बढ़ते हुए ब्रह्म की प्राप्ति की जा सकती है। यह आवश्यक है कि हम कामनाओं को अपने ऊपर हावी न होने दें। सुखी जीवन की यही सच्ची राह है।


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