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नंदी ने दिया था रावण को श्राप

हिंदू पौराणिक ग्रंथ 'शिवमहापुराण' में भगवान शिव की कथा के साथ ही उनसे जुड़े हर चमत्कार और शिवभक्तों का उल्लेख मिलता है। ऐसे ही एक शिवभक्त हैं नंदी। यूं तो नंदी भगवान शिव के वाहन के रूप और उनके सभी गणों में श्रेष्ठ हैं। लेकिन बहुत कम लोगों को पता

By Preeti jhaEdited By: Published: Sat, 23 May 2015 12:43 PM (IST)Updated: Sat, 23 May 2015 12:51 PM (IST)
नंदी ने दिया था रावण को श्राप

हिंदू पौराणिक ग्रंथ 'शिवमहापुराण' में भगवान शिव की कथा के साथ ही उनसे जुड़े हर चमत्कार और शिवभक्तों का उल्लेख मिलता है। ऐसे ही एक शिवभक्त हैं नंदी। यूं तो नंदी भगवान शिव के वाहन के रूप और उनके सभी गणों में श्रेष्ठ हैं। लेकिन बहुत कम लोगों को पता होगा कि नंदी ब्रह्मचारी मुनि शिलाद के पुत्र हैं।

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नंदी का एक रूप सबको आनंदित करने वाला है। भगवान शिव के अवतार नंदी के बारे में शिवपुराण शतरुद्रसंहिता 6/45 में वर्णित है, 'त्वायाहं नंन्दितो यस्मान्नदीनान्म सुरेश्वर। तस्मात् त्वां देवमानन्दं नमामि जगदीश्वरम।।' यानी नंदी के दिव्य स्वरूप को देख शिलाद मुनि ने कहा तुमने प्रगट होकर मुझे आनंदित किया है। अत: मैं आनंदमय जगदीश्वर को प्रणाम करता हूं।

ब्रह्मचारी मुनि के पुत्र हैं नंदी

बहुत समय पहले की बात है अपने वंश का अंत होते देख जब शिलाद मुनि के पितरों ने यह समस्या बताई तो मुनि शिलाद भी काफी परेशान हो गए।

लेकिन उन्होंने हार न मानते हुए इंद्र देव को प्रसन्न करने के लिए कठोर तप आरंभ कर दिया। जब इंद्र देव ने दर्शन दिए तो शिलाद मुनि ने उनसे अमर पुत्र की अभिलाषा जताई। इंद्र देव ऐसा वर न दे सके लेकिन उन्होंने मुनि को देवाधिदेव महादेव का तप करने की सलाह दी।

अब मुनि शिलाद ने भोलेनाथ को प्रसन्न करने के लिए तप आरंभ कर दिया। भगवान शंकर तप से प्रसन्न हुए और उन्होने मुनि शिलाद को वर दिया कि वो स्वयं बाल रूप में मुनि शिलाद के घर प्रकट होंगे।

कुछ समय बाद भूमि जोतते समय शिलाद को भूमि से एक बालक मिला। मुनि शिलाद ने उसका नाम नंदी रखा। एक दिन भगवान शंकर द्वारा भेजे गये मित्रा-वरुण नाम के दो मुनि शिलाद के आश्रम आए।

उन्होंने नंदी को देखकर कहा कि नंदी अल्पायु है। नंदी को जब यह ज्ञात हुआ तो वह महादेव के महामृत्यंजय मंत्र यानी 'ऊं नमः शिवाय' का जप कर तप करने वन में चले गए। वन में उन्होंने भगवान शिव का ध्यान आरंभ किया।

भगवान शिव नंदी के तप से प्रसन्न हुए व दर्शन देकर कहा, 'वत्स नंदी! तुम्हें मृत्यु से भय कैसे हो सकता है? तुम अजर-अमर, अदु:खी हो। मेरे अनुग्रह से तुम्हे जरा, जन्म और मृत्यु किसी से भी भय नहीं होगा।' भगवान भोलेनाथ ने माता सती की सम्मति से वेदों के समक्ष गणों के अधिपति के रूप में नंदी का अभिषेक करवाया। इस तरह नंदी नंदीश्वर हो गए।

नंदी ने दिया था रावण को शाप

शिवजी का वाहन नंदी पुरुषार्थ अर्थात परिश्रम का प्रतीक है। हिंदू धर्म ग्रंथों में उल्लेख मिलता है कि जब नंदी का रावण ने अपमान किया तो नंदी ने उसके सर्वनाश को घोषणा कर दी थी। रावण संहिता के अनुसार कुबेर पर विजय प्राप्त कर जब रावण लौट रहा था तो वह थोड़ी देर कैलाश पर्वत पर रुका था।

वहां शिव के पार्षद नंदी के कुरूप स्वरूप को देखकर रावण ने उसका उपहास किया। नंदी ने क्रोध में आकर रावण को यह शाप दिया कि मेरे जिस पशु स्वरूप को देखकर तू इतना हंस रहा है। उसी पशु स्वरूप के जीव तेरे विनाश का कारण बनेंगे।


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