मेरा जीवन-वृक्ष इस धरती की तरह है
एक बार गुरु नानक घूमते हुए पानीपत पहुंचे, जहां शाहशरफ नामक एक मशहूर सूफी फकीर रहा करते थे। गुरु नानक जब शाहशरफ से मिले तो उस वक्त उन्होंने गृहस्थों वाले कपड़े पहन रखे थे। यह देखकर शाहशरफ ने उनसे पूछा - 'एक फकीर होकर भी आपने यूं साधारण गृहस्थों की
एक बार गुरु नानक घूमते हुए पानीपत पहुंचे, जहां शाहशरफ नामक एक मशहूर सूफी फकीर रहा करते थे। गुरु नानक जब शाहशरफ से मिले तो उस वक्त उन्होंने गृहस्थों वाले कपड़े पहन रखे थे। यह देखकर शाहशरफ ने उनसे पूछा - 'एक फकीर होकर भी आपने यूं साधारण गृहस्थों की तरह कपड़े क्यों पहन रखे हैं?"
शाहशरफ के इस सवाल को सुनकर गुरु नानक ने कहा - 'वेशभूषा से क्या होता है! जो मनुष्य परमेश्वर के दर पर अपने सुख, स्वाद और अहंकार को त्याग कर गिर पड़े, उसने चाहे किसी तरह के भी वस्त्र धारण किए हों, परमात्मा उसे स्वीकार करता है। दरवेश का चोंगा और टोपी यही है कि वह ईश्वरीय ज्ञान को अपनी आत्मा में बसा ले। जो कोई अपने मन को जीत ले, सुख-दु:ख में जिसकी भाव-अवस्था एक समान रहे और जो हर समय सहजावस्था में विचरण करे, उसके लिए हर तरह का वेश शोभनीय है।"
शाहशरफ ने उनसे आगे पूछा - 'आप कृपया यह बताएं कि आपका मत क्या है, आपकी जाति क्या है और आपकी गुजर कैसे होती है?" यह सुनकर गुरु नानक मुस्कराए और बोले - 'आप जानना चाहते हैं तो सुनें, मेरा मत है सत्यमार्ग। जहां तक जाति का सवाल है तो मेरी जाति वही है, जो अग्नि और वायु की है, जो शत्रु और मित्र को एक समान समझती है। मेरा जीवन-वृक्ष इस धरती की तरह है। नदी की तरह मुझे इस बात की चिंता नहीं होती कि कोई मुझ पर पत्थर-धूल फेंकता है या फूल और मैं जीवित वास्तव में उसी व्यक्ति को मानता हूं, जिसका जीवन चंदन के समान दूसरों के लिए घिसता हुआ इस संसार में अपनी सुंगध फैला रहा हो। यदि आपका जीवन दूसरों के काम न आ सके, तो ऐसा जीवन किस काम का!"
शाहशरफ ने उनसे अगला सवाल किया - 'आपकी नजर में दरवेश कौन है?" नानक ने कहा - 'जो जिंदा ही मरे की तरह अविचल रहे। जागते हुए सोता रहे, जान-बूझकर अपने आप को लुटाता रहे। जो क्रोध में न आए और अभिमान न करे। जो न तो स्वयं दु:खी हो और न ही दूसरों को दु:ख दे। जो हमेशा अपने ईश्वर में मगन रहे और सिर्फ वही सुने जो उसके अंदर से ईश्वर बोलता है। वह उसी सर्वांतर्यामी परमात्मा को हर व्यक्ति, हर स्थान में देखे।"