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ऐसे बरसेंगी लक्ष्मी

पांच दिवसीय दीपोत्सव का श्रीगणेश आज धनतेरस के साथ होगा। इस दिन राजधानी में करोड़ों की खरीदारी की उम्मीद है। राजधानी के बाजार गुलजार हैं। सभी को धनतेरस पर विशेष खरीदारी की आशा है। व्यापारियों ने अपनी दुकानें सजा दी हैं। करोड़ से ज्यादा बिक्री का अनुमान है। आदि

By Preeti jhaEdited By: Published: Tue, 21 Oct 2014 02:58 PM (IST)Updated: Tue, 21 Oct 2014 03:33 PM (IST)
ऐसे बरसेंगी लक्ष्मी

पटना। पांच दिवसीय दीपोत्सव का श्रीगणेश आज धनतेरस के साथ होगा। इस दिन राजधानी में करोड़ों की खरीदारी की उम्मीद है। राजधानी के बाजार गुलजार हैं। सभी को धनतेरस पर विशेष खरीदारी की आशा है। व्यापारियों ने अपनी दुकानें सजा दी हैं। करोड़ से ज्यादा बिक्री का अनुमान है।

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आदि काल से लेकर वर्तमान काल तक लक्ष्मी का स्वरूप अत्यंत व्यापक रहा है। ऋग्वेद की ऋचाओं में 'श्री' का वर्णन समृद्धि एवं सौंदर्य के रूप में हुआ है। अथर्ववेद में पृथ्वी सूक्त में 'श्री' की प्रार्थना करते हुए ऋषि कहते हैं :

'श्रिया मां धेहि' अर्थात् मुझे 'श्री' की प्राप्ति हो। श्रीसूक्त में 'श्री' का आवाहन जातवेदस के साथ हुआ है : 'जातवेदोम्आवह'। जातवेदस अग्नि का नाम है। अग्नि की तेजस्विता तथा श्री की तेजस्विता में भी साम्य है।

विष्णु पुराण में लक्ष्मी की अभिव्यक्ति दो रूपों में की गई है- श्री रूप और लक्ष्मी रूप। श्रीदेवी को कहीं-कहीं भू देवी भी कहते हैं। इसी तरह लक्ष्मी के दो स्वरूप हैं। सच्चिदानंदमयी लक्ष्मी श्री नारायण के हृदय में वास करती हैं। दूसरा रूप है भौतिक या प्राकृतिक संपत्ति की अधिष्ठत्री देवी का। यही श्रीदेवी या भूदेवी हैं। सब संपत्तियों की अधिष्ठात्री श्रीदेवी शुद्ध सत्वमयी हैं। इनके पास लोभ, मोह, काम, क्रोध और अहंकार आदि दोषों का प्रवेश नहीं है। यह स्वर्ग में स्वर्गलक्ष्मी, राजाओं के पास राजलक्ष्मी, मनुष्यों के गृह में गृहलक्ष्मी, व्यापारियों के पास वाणिज्यलक्ष्मी और युद्ध विजेताओं के पास विजयलक्ष्मी के रूप में रहती हैं।

अष्टसिद्धि और नवनिधि की देवी श्रीलक्ष्मी भौतिक मनोकांक्षाओं को पूर्ण करती हैं। कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या को जब सूर्य और चंद्र दोनों तुला राशि में होते हैं, तब दीपावली का त्योहार मनाया जाता है। इस दिन भगवान विष्णु क्षीरसागर की तरंगों पर शयन-गामी होते हैं और श्रीलक्ष्मी भी दैत्य भय से विमुख होकर कमल के उदर में सुख से सोती हैं। भारतीय पद्धति के अनुसार आराधना, उपासना व अर्चना में आधिभौतिक, आध्यात्मिक और आधिदैविक-इन तीनों रूपों का समन्वित व्यवहार होता है। दीपावली में सोना-चांदी आदि के रूप में आधिभौतिक लक्ष्मी का आधिदैविक लक्ष्मी से संबंध स्वीकार करके पूजन किया जाता हैं। घरों को दीपमाला आदि से सुसज्जित करना लक्ष्मी के आध्यात्मिक स्वरूप की शोभा को बढ़ाने का उपक्रम है। देवी की जितनी भी शक्तियां मानी गई हैं, उन सब की मूल भगवती लक्ष्मी ही हैं। ये ही सर्वोत्कृष्ट पराशक्ति हैं। लक्ष्मी नित्य, सर्वव्यापक है। पुरुषवाची भगवान हरि हैं और स्त्रीवाची लक्ष्मी। इनसे इतर कोई नहीं है।

सामान्यत: दीपावली पूजन का अर्थ लक्ष्मी पूजा से लगाया जाता है, किंतु इसके अंतर्गत गणेश, गौरी, नवग्रह, षोडशमातृका, महालक्ष्मी, महाकाली, महासरस्वती, धनकुबेर, तुला और मान की पूजा भी होती है। मान्यता है कि ये सभी श्रीलक्ष्मी के साथ अंग-सदृश होते हैं।

श्रीगणेश

पार्वतीजी से प्राप्त कर लक्ष्मीजी ने गणेश को सुख-समृद्धि प्रदान की। वे रिद्धि-सिद्धि के स्वामी हैं। प्रथम पूज्य गणेश के नाम के साथ ही शुभ-लाभ व मांगलिक कार्य शुरू होते हैं। गणेशजी के दाईं ओर स्वास्तिक तथा बाईं ओर ऊं का चिह्न बनाया जाता है। यह वास्तु अनुसार सुख, शांति और समृद्धि देने वाला है। गणेशजी समृद्धि के प्रथम प्रतीक हैं।

श्रीविष्णु

श्रीलक्ष्मी सदैव पति श्रीविष्णु के सानिध्य में ही निवास करती हैं। इसलिए उनकी तस्वीर अथवा मूर्ति के साथ श्रीविष्णु की तस्वीर या मूर्ति का होना आवश्यक है। विष्णु भगवान की उपेक्षा कर मात्र श्रीलक्ष्मी की आराधना से देवी पूर्णत: प्रसन्न नहीं होती। कुछ दोष-भाव शेष रह जाता है।

महासरस्वती

सरस्वती का जन्म ब्रह्मा के मुख से हुआ था। वह ज्ञान की देवी हैं और गणपति बुद्धि के देवता है। अगर हम धन के लिए लक्ष्मी का आवाहन करते है तो सरस्वती और गणेश को भी बुलाएं। धन आने पर उसे अपने ज्ञान से संभालें और बुद्धि के उपयोग से उसका निवेश करें। इससे लक्ष्मी का स्थायी निवास होगा। सरस्वती लक्ष्मी की दाई और गणपति बाई ओर विराजमान होते हैं। मानव-शरीर का दाएं पक्ष का मस्तिष्क ज्ञान के लिए होता है। उस ओर हमारा ज्ञान एकत्र होता है। बाएं पक्ष का मस्तिष्क रचनात्मक होता है।

महाकाली

अमावस की कालिमा देवी काली का स्वरूप है। यह तमोगुणमयी रात होती है। इसलिए इस रात देवी महाकाली की भी पूजा होती है।

महाशिव

महाकाली के क्रोध का शमन शिव के अंग के स्पर्श से ही हुआ था। उन्हें शिव का अभाव प्रिय नहीं है। इसीलिए महाकाली के साथ महाशिव की पूजा का विधान है।

धनकुबेर

कुबेर दशों दिशाओं के दिक्पालों में से एक उत्तर दिशा के अधिपति देवता हैं। वे सभी भौतिक कामनाओं को पूर्ण कर धन-वैभव प्रदान करने में समर्थ देव हैं। कुबेर देव सखा हैं और उनके मित्र मणिभद्र हैं। चिक्लीत भी लक्ष्मी पुत्र हैं। धन की रक्षा यक्ष और कुबेर करते हैं।

अष्टाक्षर मंत्र : ऊं वैश्रवणाय स्वाहा:

षोडशाक्षर मंत्र : ऊं श्री ऊं हृीं श्री हृीं क्लीं श्री क्लीं वितेश्वराय नम: पंच त्रिंशदक्षर मंत्र : ऊं यक्षाय कुबेराय वैश्रवणाय धनधान्यधिपतये धनधान्यसमृद्धि दोहि द्रापय स्वाहा

धनतेरस नरक चतुदर्शी दीपावली गोव‌र्द्धन पूजा यम द्वितीया दीपोत्सव? हल्दी-रोली-सिंदूर के घोल से घर के मुख्य द्वार पर ऊं और स्वास्तिक का चिह्न बनाएं। धन-लाभ होगा। घर से पश्चिम खुले स्थान पर अथवा घर के परिसर में पश्चिम में 14 दीपक पूर्वजों के नाम से जलाएं। किसी भिखारी या गरीब को नौ किलो अनाज का दान करें और अगले दिन मुख्य द्वार को रंगोली से सजाएं। प्रात:काल हाथी को गन्ना या मीठा खिलाने से कष्टों से मुक्ति मिलती है। बहन से प्रसाद ग्रहण करने के उपरांत आशीर्वाद-उपहार दें। बहन के मनोभावों का सम्मान करें।

03 बजे दोपहर से शाम 7:20 बजे

लाल वस्तु, तांबा, पीतल, कांसा के

बर्तन, लाल कंबल आदि।

क्या खरीदें

2 बजे दोपहर से 02 बजे तक

चांदी-स्टील बर्तन सफेद पुखराज,

स्फटिक, स्फटिक की प्रतिमा।

02 बजे दोपहर से रात 08 बजे तक

पीतल के सामान, कांसा, पन्ना,

ऑनेक्स, पैरीडॉट, कास्ला, फिरोजा।

01 बजे दोपहर से शाम 07 बजे तक

मोती, सफेद पुखराज, कांसा पात्र, चांदी बर्तन, सिक्का, आभूषण।

09 बजे सुबह से रात 08 बजे तक

माणिक्य, गार्नेट तांबा, तांबा जड़ित

बर्तन, कांसा,बर्मिज माणिक आदि।

02 बजे दोपहर से शाम 07 बजे तक

सोना, सोने के आभूषण, पीतल,

पीतल बर्तन, पन्ना, व फिरोजा आदि।

12 बजे दोपहर से शाम 06 बजे तक

चांदी, स्टील, कांसा मोती की माला,

सफेद पुखराज,हीरा मूंगा, शंख आदि।

12 बजे दोपहर से शाम 06 बजे तक

तांबा, मूंगा, मूंगे की माला, लाल

इटालियन मूंगा, त्रिकोण मूंगा आदि।

11 बजे दिन से शाम 07 बजे तक

पीला पुखराज, टोपाज, सोना

जड़ित पुखराज, पीतल बर्तन आदि।

01 बजे दोपहर से शाम 04 बजे तक

लाजवर्त, जमुनिया, नीलम, लोहे की

अंगूठी, स्टील अलमीरा आदि।

10 बजे सुबह से दोपहर 3:30 बजे

स्वर्णजड़ित नीलम, नीली, लाजवर्त,

फिरोजा, इमिथेक्स, जमुनिया आदि।

02 बजे दोपहर से रात 09 बजे तक

स्वर्ण, पीतल, पुखराज, टोपाज,

पीले वस्त्र, पीतल का कलश आदि।

लक्ष्मी से स्थूल तात्पर्य है-अर्थ। लक्ष्मी-पूजा वस्तुत: अर्थ का पर्व है। गणेश, दीप-पूजन और गो-द्रव्य पूजन इस पर्व की विशेषताएं हैं।

गोधूलि लग्न में पूजा आरंभ करके महानिशीथ काल तक महालक्ष्मी के पूजन को जारी रखा जाता है। इसका अभिप्राय यह है कि जहां गृहस्थ और वणिक लक्ष्मी से समृद्धि और वित्त-कोष की कामना करते हैं, वहीं साधु-संत और तांत्रिक कुछ विशेष सिद्धियां अर्जित करने के लिए रात्रिकाल में अपने तांत्रिक षट्कर्म करते हैं।

दीपावली के दिन महालक्ष्मी के पूजन के लिए स्थिर लग्न का चयन किया जाता है। वृष, सिंह, वृश्चिक एवं कुंभ स्थिर लग्न हैं। स्थिर लग्न के साथ ही उपयुक्त चौघड़ियों का चयन भी अनिवार्य है। शुभ एवं उपयुक्त चैघड़िया हैं-चर, लाभ, अमृत एवं शुभ।

मुहूर्त

प्रदोष काल कैसे करें पूजा-

चौघड़ियां धनतेरस की पूजा प्रदोष काल के दौरान उचित है।

प्रदोष-काल सूर्यास्त के बाद शुरू होकर दो घंटे 24 मिनट तक रहता है। विशेष रूप से गणेश, लक्ष्मी, कुबेर आदि देवी-देवताओं के पूजन के लिए तथा सेवकों को वस्तुएं दान देने के लिए शुभ होता है। यही समय द्वार पर स्वास्तिक और शुभ-लाभ का सिंदूर से निर्माण करने के लिए भी उपयुक्त है। इस साल पंचदीप पर्व पर सुखद संयोग बन रहा है।

ज्योतिर्विद आचार्य अविनाश राय कहते हैं इस साल पंचदीप पर्व हर साधक के लिए सुख, शांति व संपन्नता लेकर आया है। मंगलवार को धनत्रयोदशी के साथ भौम प्रदोष भी है, जो साधक को ऋणदोष से मुक्त करके धन-संपन्नता प्रदान करेगा। घर के बाहर चौमुख दीपक जलाने से आयु में वृद्धि का आशीष मिलेगा। 23 अक्टूबर को तुला राशि में सूर्य, चंद्रमा, शनि व शुक्र एक साथ आ रहे हैं, जिससे 'चतुर्ग्रही योग' बनेगा। इसमें सूर्य सरकारी तंत्र, शनि लोकतंत्र, शुक्र सलाहकार, चंद्रमा स्त्रियों का प्रतिनिधित्व करता है, जबकि तुला सबमें संतुलन स्थापित करता है। ऐसी स्थिति में देश में सत्ता, शक्ति और व्यापार में संतुलन स्थापित होगा। साथ ही व्यावसायिक उन्नति बढ़ेगी।

अमावस्या तिथि के साथ सुबह 6.31 से अगले दिन सुबह 6.09 बजे तक 'प्रीति योग' भी रहेगा, जो सोने पर सुहागा सदृश है।

पूजन-विधि: पूजा यम-नियम से होनी चाहिए। लकड़ी की चौकी पर लाल कपड़ा बिछाएं। फिर उसमें लक्ष्मी, गणेश व धनवंतरि की प्रतिमा या चित्र को स्थापित करें। जल से स्नान करने के बाद, रोली लगाएं। अक्षत, पुष्प, नैवेद्य अर्पित करके लक्ष्मी सूक्त-श्रीसूक्त का पाठ करें।

पूजन-समय और खरीदारी : धनतेरस को वैसे तो दिनभर खरीदारी की जा सकती है, परंतु शुभ मुर्हूत का ख्याल भी जरूरी है। त्रयोदशी सोमवार की रात 10.59 से मंगलवार की रात 2.44 तक रहेगी, जबकि ऐंद्र योग मंगल की सुबह 6.24 से रात 10.45 तक रहेगा। इसमें भी सबसे शुभ कुंभ लग्न 2.35 से 4.06 बजे तक है। पं. अजय कुमार द्विवेदी के अनुसार स्थिर लगन् वृषभ में भी खरीदारी का मुहूर्त होता है। यह मुहूर्त इस बार शाम 6: 48 से रात 8: 42 बजे तक है।

धनतेरस दीपावली पूजन के दो मुहूर्त : धनतेरस पर प्रदोष काल में दीपदान

करना अत्यंत शुभ माना जाता है। दीपदान का शुभ मुहूर्त शाम को 5: 41 से रात 8:15 बजे तक रहेगा। लक्ष्मी-गणेश और कुबेर की पूजा का शुभ मुहूर्त 7:04 से 8:15 बजे तक है। पंडित ओंकारनाथ पाण्डेय के मुताबिक धनतेरस की सामान्य खरीदारी भी शुभ ही होती है। लक्ष्मी जब कभी घर में आएं, तभी वे फलदायी होती हैं, तथापि शुभ मुहूर्त में अगर राशि और समय को ध्यान में अनुकूल वस्तुओं की खरीदारी की जाए तो फल और उत्तम होता है।

संकटमोचन को अर्पित करें तुलसी की माला : धनतेरस के अगले दिन बुधवार को संकटमोचन हनुमान जी का जन्मोत्सव मनाया जाएगा। आचार्य देवेंद्र प्रसाद त्रिपाठी बताते हैं हनुमान जी का जन्म मेष लग्न में हुआ था।

बुधवार को शाम 5:26 से 7:03 बजे तक मेष लग्न का संयोग बन रहा है। इसी समयावधि में हनुमान जी की स्तुति करनी चाहिए। इस काल-खंड में सिद्ध हनुमान मंदिर जाकर उन्हें तुलसी की माला व बेसन का लड्डू अर्पित करना चाहिए।

हनुमान चालीसा, सुंदरकांड, हनुमान कवच आदि का पाठ कल्याणकारी रहेगा। यथाशक्ति गरीबों को भोजन कराना और उन्हें लाल वस्त्र दान देना श्रेयस्कर होगा। दीन-दुखियों की सेवा से लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं।

श्रीलक्ष्मी की पूजा का इस बार विशेष संयोग बन रहा है। दीपावली के दिन चित्रा नक्षत्र में विषकुंभ योग बन रहा है। सिद्धि योग की ऐसी स्थिति हर आठ साल के बाद आती है। पंडित ओंकारनाथ पाण्डेय के मुताबिक यह पूजा अगर राशि और लग्न को ध्यान में रखकर की जाए तो मनोवांछित फल प्राप्त होगा।मां लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए पूजन-सामग्री में गुलाबी अबीर, इत्र, अबरख और कमल फूल अवश्य रखें। मनोवांछित फल मिलेगा। स्थिर लग्न स्थिर लग्न में देवी लक्ष्मी की पूजा करने का विशेष महत्व होता है। इससे घर में लक्ष्मी का स्थायी रूप से वास होता है।

षोडशोपचार पूजा

1. ध्यान

2. आवाहन

3. पुष्पांलि

4. स्वागत

5. पाद्य

6. अ‌र्घ्य

7. गंध-पुष्प

8. अंग-पूजन

9. अष्ट-सिद्धि पूजा

10. धूप-दीप समर्पण

11. नैवेद्य समर्पण

12. आचमन समर्पण

13. तांबूल समर्पण

14. दक्षिणा-प्रदक्षिणा

15. वंदना-साष्टांग प्रणाम

16. क्षमा-प्रार्थना

राशि अनुसार पूजन समय

मेष शाम 06 से रात 08 बजे तक

वृष रात 08 से नौ बजे तक

मिथुन रात 09 से 11 बजे तक

कर्क रात 11 से 01 बजे तक।


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