अध्यात्म के साथ विज्ञान से जुड़ा है नवरात्र उपवास, जानें 4 वैज्ञानिक कारण
हिंदू धर्म में नवरात्र में नौ दिन नौ देवियों की पूजा के साथ उपवास भी रखे जाते हैं। इन उपवासों के पीछे अध्यामिक कारणों के साथ ही वैज्ञानिक कारण भी हैं। जानें ये 4 कारण...
अध्यात्मिक कारण:
वातावरण भक्तिमय होता:
नवरात्र भारतीय संस्कृति में आनन्द, उत्साह और परंपरा के साथ मनाया जाने वाला सबसे महत्वपूर्ण त्योहार हो चुका है। माना जाता है कि नौ दिन तक माता दुर्गा धरती पर वास करती है। इसलिए नवरात्र के नौ दिनों में मां दुर्गा के विभिन्न स्वरूपों की पूजा के साथ ही उपवास अनुष्ठान भी किया जाता है। व्रत के दौरान अन्न, मांस, मदिरा आदि का सेवन नहीं किया जाता है। इस दौरान फल, मेवा आदि खाए जाते हैं। नवरात्र उपवास रखने के पीछे मान्यता है कि नवरात्र के दौरान पूरा वातावरण भक्तिमय हो जाता है। भजन, जागरण आदि होते है। इन दिनों माता दुर्गा की विशेष कृपा मिलती है। जीवन में खुशियों का आगमन होता है। परेशानियां दूर हो जाती है।
वैज्ञानिक कारण:
डिटॉक्सीफिकेशन:
डिटॉक्सीफिकेशन का मतलब विषहरण। नवरात्र व्रत से शरीर से डिटॉक्सीफिकेशन यानी कि विषाक्त शरीर से बाहर निकल जाते हैं। नवरात्र वर्ष में दो बार मनाए जाते हैं। एक बार गर्मियों की शुरुआत में और दूसरी बार सर्दियों की शुरुआत में। दोनों ही नवरात्र मौसम परिवर्तन के दौर में होते हैं। इस समय आयुर्वेद के नजरिए से मांस, अनाज, शराब, प्याज, लहसुन जैसे खाद्य पदार्थों को खाने से बचना चाहिए। इसके अलावा नकारात्मक ऊर्जा से भी बचना जरूरी होता है। इस मौसम में शरीर की प्रतिरोधक क्षमता कम होती है और बीमार होने की संभावना अधिक होती है। इसलिए इस दौरान उपवास रखना बेहतर होता है। मन और आत्मा के साथ ही शरीर भी मजबूत होता है।
माइंडफुलनेस:
माइंडफुलनेस का मतलब सचेतन। उपवास एक ऐसा तरीका है जिससे कोई भी इंसान अनन्त आनंद और आनंद के लिए दिव्य शक्ति का आह्वान कर सकता है। भौतिकवादी युग में आत्मसुरक्षा बहुत जरूरी होती है। इसलिए नवरात्र उपवास से शरीर को बहुत आराम मिलता है। नवरात्र उपवास से पाचन तंत्र को तो आराम मिलता ही है साथ ही इंसान खुद के भीतर की दिव्यता से भी जुड़ता है। इस दिनों दिल व दिमाग दोनों को ही एक विशेष शांति का अहसास होता है। उपवास के दौरान इंसान झूठ बोलने, चुगली करने, ईष्या आदि करने से बचते हैं। जिससे उनके अंदर नकारात्मक ऊर्जा का प्रवेश नही होता है। ऐसे में लोग खुद के लिए सकारात्मक रूप से आत्मनिर्धारित विकल्प तलाशते हैं।
सेल्फडिसिप्लीन:
सेल्फडिसिप्लीन यानी कि आत्म अनुशासन। जीवन में आत्म अनुशासन बहुत जरूरी होता है। उपवास के दौरान यह धारणा होती है कि हर काम समय पर होना चाहिए। नवरात्र उपवास में लोग पुरानी आदतों को किनारे कर सकारात्मक इरादों के साथ अपने अच्छे व्यवहार के लिए खुद में आत्म-अनुशासन को प्रज्वलित करते हैं। व्रत के दौरान काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार, भय, ईर्ष्या, नफरत जैसी आदतों से बचा जाता है। जिससे लोगों को छोटी-छोटी बातों का तनाव नहीं होता है। वे कुढ़न में नही जीते हैं। खुशियों का अहसास होता है। मानसिक स्थिति काफी मजबूत होती है। जिससे डिप्रेशन, माइग्रेन, हार्ट डिजीज जैसी बीमारियों के होने की संभावना नहीं होती है।
हेल्थ बेनीफिट:
हेल्थ बेनीफिट यानी कि स्वास्थ्य लाभ। नवरात्र उपवास के दौरान हेल्थ बेनीफिट्स भी बहुत होते हैं। उपवास का मतलब भूखा रहना नहीं होता है। इस दौरान तामसी भोजन वर्जित होते हैं। उपवास में आहार आदि पर काफी कंट्रोल होता है। इससे इस दौरान बढ़ा वजन कम होने के चांसेज अधिक होते हैं। उपवास रखने से शरीर अपनी सरंचना में आ जाता है क्योंकि इस दौरान शरीर में कैलोरी की मात्रा ज्यादा नहीं पहुंचती है। इसके अलावा पांचन तंत्र मजबूत होता है। अपच आदि की शिकायते दूर हो जाती हैं। इन नौ दिनों के व्रत में शरीर फिट हो जाता है।