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केदारनाथ में सुरंग निर्माण में मदद देगा सीआइएमएफआर

केदारघाटी की त्रासदी के बाद से ही सरकार वैकल्पिक मार्ग व सुरंग निर्माण की संभावनाएं तलाश रही हैं। इस दिशा में सहयोगात्मक रवैया अपनाते हुए सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ माइनिंग एंड फ्यूल रिसर्च सेंटर (सीआइएमएफआर) ने इंडियन सोसाइटी ऑफ इंजीनियरिंग जियोलॉजी की कार्यशाला में सुरंग निर्माण में प्रदेश को हरसंभव तकनीकी

By Preeti jhaEdited By: Published: Tue, 11 Nov 2014 01:23 PM (IST)Updated: Tue, 11 Nov 2014 01:26 PM (IST)

देहरादून। केदारघाटी की त्रासदी के बाद से ही सरकार वैकल्पिक मार्ग व सुरंग निर्माण की संभावनाएं तलाश रही हैं। इस दिशा में सहयोगात्मक रवैया अपनाते हुए सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ माइनिंग एंड फ्यूल रिसर्च सेंटर (सीआइएमएफआर) ने इंडियन सोसाइटी ऑफ इंजीनियरिंग जियोलॉजी की कार्यशाला में सुरंग निर्माण में प्रदेश को हरसंभव तकनीकी मदद देने का आश्वासन दिया।

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यह सेंटर जम्मू कश्मीर में चेनानी व नासरी गांव के बीच नौ किमी लंबी सुरंग पर काम कर रहा है व हिमाचल प्रदेश में रोहतांग पास र्दे की दूरी मनाली से सुरंग के माध्यम से कम करने की दिशा में काम कर चुका है। सोमवार को सुभाष रोड स्थित एक होटल में तीन दिवसीय कार्यशाला का शुभारंभ लोनिवि के विभागाध्यक्ष प्रमुख अभियंता एचके उप्रेती ने किया। उन्होंने कहा कि इंजीनियरिंग जगत में भूविज्ञानी व सिविल इंजीनियर मिलकर विनाशरहित विकास की अवधारणा को सच साबित कर सकते हैं।

उन्होंने किसी भी निर्माण के लिए मिट्टी की स्थिति, चट्टान की प्रकृति, भूकंपीय अध्ययन व पर्यावरण आदि के विशेष अध्ययन पर बल दिया। भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण विभाग के पूर्व अध्यक्ष डॉ. पीसी नवानी ने बताया कि किस तरह किसी भी निर्माण के डिजाइन को पर्यावरण के लिहाज से अनुकूल बनाया जा सकता है। सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ माइनिंग एंड फ्यूल रिसर्च सेंटर (सीआइएमएफआर) के प्रभारी डॉ. आरके गोयल ने कहा कि यह केंद्र भारत सरकार के अधीन काम करता है, लेकिन अभी राज्य सरकार को इसकी पर्याप्त जानकारी नहीं है। यदि सरकार चाहे तो सेंटर केदारनाथ व अन्य क्षेत्रों में सुरंग निर्माण की संभावनाओं के साथ ही निर्माण में तकनीकी मदद देने को तैयार है। क्यू सिस्टम व रॉक मास नंबर से किसी भी सुरंग निर्माण की सुरक्षा को अचूक बनाया जा सकता है। वैसे भी उत्तराखंड जैसे पर्वतीय प्रदेश में सुरंग व भूतल संबंधी किसी भी निर्माण में तकनीकी दक्षता की विशेष जरूरत है। वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान के निदेशक प्रो. विक्रम गुप्ता ने जमीन के भीतर की स्थिति को चित्र के माध्यम से अवगत कराने वाली तकनीक ग्राउंड पेनेट्रेटिंग रडार (जीपीआर) का प्रदर्शन कराया। कार्यक्रम समन्वयक की भूमिका भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण के निदेशक डॉ. वीके शर्मा ने निभाई। इस अवसर पर प्रो. युद्धवीर सिंह, प्रो. एके अवस्थी, हर्ष कुमार समेत देश के विभिन्न हिस्सों से आए विशेषज्ञ उपस्थित रहे।


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