तीर्थनगरी में भी कम नहीं गंगा के गुनाहगार
गंगा प्रदूषण रोकने की लचर कार्यप्रणाली को लेकर सुप्रीम कोर्ट केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) व राज्य नियंत्रण बोर्डो को फटकार लगा चुका है। मगर, गंगा प्रदूषण रोकने के लिए गठित जिम्मेदार विभागों की नींद अभी भी टूटी नहीं है।
ऋषिकेश। गंगा प्रदूषण रोकने की लचर कार्यप्रणाली को लेकर सुप्रीम कोर्ट केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) व राज्य नियंत्रण बोर्डो को फटकार लगा चुका है। मगर, गंगा प्रदूषण रोकने के लिए गठित जिम्मेदार विभागों की नींद अभी भी टूटी नहीं है। पर्वतीय क्षेत्र से उतर कर ऋषिकेश से मैदानी क्षेत्र में प्रवेश से पूर्व ही गंगा प्रदूषण के कारण आहत हो रही है। हालत यह है कि गंगा में मिल रहे सीवर व नालों को रोकने के लिए ठोस पहल तक नहीं हुई है। 1गंगा से ऋषिकेश की ही नहीं, बल्कि पूरे उत्तराखंड की पहचान है।
गंगा को लेकर बड़े मंचों से बड़ी-बड़ी बातें होती हैं। गंगा की पीड़ा को जानने की कोशिश किसी गंगामित्र ने नहीं की। अपने ही घर में गंगा की जो हालत है वह उन लोगों को आईना दिखाने के लिए काफी है जो गंगा को स्वच्छ करने के दावे करते हैं। त्रिवेणी घाट को ऋषिकेश की हृदय स्थली कहा जाता है। यहीं पर शहर का सबसे बड़ा नाला गंगा में मिल रहा है। रंभा नदी में लोगों ने सीवर लाइन जोड़ दी है। नदी सीधे गंगा में मिलती है। जनपद टिहरी के तपोवन, पौड़ी के लक्ष्मण झूला स्वर्गाश्रम, देहरादून जनपद के ऋषिकेश से श्यामपुर क्षेत्र तक करीब डेढ़ दर्जन गंदे नाले गंगा में मिल कर इसे प्रदूषित कर रहे हैं। गंगा के किनारे बसे तीर्थनगरी के शहरी क्षेत्र में 20 फीसद आबादी सीवर योजना से अछूती है। ग्रामीण क्षेत्र की बात करें तो 16 में से 14 ग्राम पंचायतों में सीवर लाइन है ही नहीं। इन नालों को रोकने की पहल जिम्मेदार विभाग ने नहीं की है। नगर क्षेत्र के 16 मोहल्ले व कॉलोनियां ऐसे हैं जहां सीवर लाइन के पुनर्गठन की जरूरत है क्योंकि यहां पांच दशक पूर्व की आबादी के लिहाज से छह इंची सीवर लाइन डाली थी जो अब बढ़ती जनसंख्या का भार नहीं सह पा रही है।
नगर से ग्रामीण क्षेत्र के लक्कड़ घाट ट्रीटमेंट प्लांट तक 18 गांव व कॉलोनी ऐसी हैं जिनमें सीवर लाइन है ही नहीं। इन दोनों क्षेत्रों के लिए वल्र्ड बैंक के सहयोग से मेगा प्रोजेक्ट तैयार होना है। 450 करोड़ की लागत से तैयार होने वाली 264 किलोमीटर सीवर लाइन व 24 एमएलडी का ट्रीटमेंट प्लांट बनाने की योजना पर दो वर्षो से सिर्फ चर्चा ही चल रही है। लंबी कवायद के बाद पेयजल निगम निर्माण इकाई गंगा की ओर से प्रोजेक्ट के लिए कंसलटेंट की नियुक्ति की गई है। वल्र्ड बैंक के मानकों के अनुसार कंसलटेंट पूरे क्षेत्र का सर्वे कर आंकलन रिपोर्ट तैयार करेगा, जिस पर डीपीआर बनेगी। उसके बाद समूचा प्रोजेक्ट राष्ट्रीय गंगा नदी घाटी प्राधिकरण को भेजा जाएगा। यह सब कब होगा, यह भविष्य की गर्त में है। त्रिवेणी घाट में पिछले तीन वर्षो से भूमिगत नाले के जरिए सीवर गंगा में मिल रहा है। इस योजना पर पेयजल निर्माण इकाई को काम करना है। प्रोजेक्ट भेजा जा चुका है। बीती चार अक्टूबर को मंडलायुक्त सीएस नपच्याल और मेलाधिकारी डी. सैंथिल पांडियन इस क्षेत्र का मुआयना कर लाइन को ठीक करने के लिए कुंभ निधि से 56 लाख रुपये की मंजूरी दे चुके हैं। मगर एक माह बाद भी इस पर काम शुरू नहीं हो पाया है। यहां से सीवर को आगे लिफ्ट करने के लिए 384 लाख रुपये की लागत से पंपिंग स्टेशन बनाया गया था। जिसे पुरानी लाइन से जोड़ा गया था मगर लाइनें फट गई थी। इस पंप हाउस से बहत्तरसीढ़ी तक लाइन डाली गई थी बाद में बहत्तरसीढ़ी से कोयलघाटी तक 965 मीटर नई लाइन को स्वीकृति दी गई थी मगर इस पर काम शुरू नहीं हुआ है। हालत यह है कि त्रिवेणी घाट में सीवर गंगा में मिल रहा है। पेयजल निगम निर्माण इकाई गंगा के परियोजना प्रबंधक पीके गुप्ता ने बताया कि सीवर पुनर्गठन योजना के लिए कंसलटेंट का चयन हो गया है। मेला प्रशासन से मंजूरी के बाद त्रिवेणी घाट के क्षतिग्रस्त नाले पर काम शुरू हो जाएगा। डिग्री कॉलेज के समीप वन भूमि पर 12 करोड़ की लागत वाला छह एमएलडी का ट्रीटमेंट प्लांट व दो किलोमीटर सीवर लाइन का प्रस्ताव भेजा जा चुका है। इससे त्रिवेणी घाट के पंपिंग स्टेशन को जोड़ा जाएगा।1जागरण संवाददाता, ऋषिकेश : गंगा प्रदूषण रोकने की लचर कार्यप्रणाली को लेकर सुप्रीम कोर्ट केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) व राज्य नियंत्रण बोर्डो को फटकार लगा चुका है। मगर, गंगा प्रदूषण रोकने के लिए गठित जिम्मेदार विभागों की नींद अभी भी टूटी नहीं है। पर्वतीय क्षेत्र से उतर कर ऋषिकेश से मैदानी क्षेत्र में प्रवेश से पूर्व ही गंगा प्रदूषण के कारण आहत हो रही है। हालत यह है कि गंगा में मिल रहे सीवर व नालों को रोकने के लिए ठोस पहल तक नहीं हुई है।
गंगा से ऋषिकेश की ही नहीं, बल्कि पूरे उत्तराखंड की पहचान है। गंगा को लेकर बड़े मंचों से बड़ी-बड़ी बातें होती हैं। गंगा की पीड़ा को जानने की कोशिश किसी गंगामित्र ने नहीं की। अपने ही घर में गंगा की जो हालत है वह उन लोगों को आईना दिखाने के लिए काफी है जो गंगा को स्वच्छ करने के दावे करते हैं। त्रिवेणी घाट को ऋषिकेश की हृदय स्थली कहा जाता है। यहीं पर शहर का सबसे बड़ा नाला गंगा में मिल रहा है। रंभा नदी में लोगों ने सीवर लाइन जोड़ दी है। नदी सीधे गंगा में मिलती है। जनपद टिहरी के तपोवन, पौड़ी के लक्ष्मण झूला स्वर्गाश्रम, देहरादून जनपद के ऋषिकेश से श्यामपुर क्षेत्र तक करीब डेढ़ दर्जन गंदे नाले गंगा में मिल कर इसे प्रदूषित कर रहे हैं। गंगा के किनारे बसे तीर्थनगरी के शहरी क्षेत्र में 20 फीसद आबादी सीवर योजना से अछूती है। ग्रामीण क्षेत्र की बात करें तो 16 में से 14 ग्राम पंचायतों में सीवर लाइन है ही नहीं। इन नालों को रोकने की पहल जिम्मेदार विभाग ने नहीं की है। नगर क्षेत्र के 16 मोहल्ले व कॉलोनियां ऐसे हैं जहां सीवर लाइन के पुनर्गठन की जरूरत है क्योंकि यहां पांच दशक पूर्व की आबादी के लिहाज से छह इंची सीवर लाइन डाली थी जो अब बढ़ती जनसंख्या का भार नहीं सह पा रही है। नगर से ग्रामीण क्षेत्र के लक्कड़ घाट ट्रीटमेंट प्लांट तक 18 गांव व कॉलोनी ऐसी हैं जिनमें सीवर लाइन है ही नहीं। इन दोनों क्षेत्रों के लिए वल्र्ड बैंक के सहयोग से मेगा प्रोजेक्ट तैयार होना है। 450 करोड़ की लागत से तैयार होने वाली 264 किलोमीटर सीवर लाइन व 24 एमएलडी का ट्रीटमेंट प्लांट बनाने की योजना पर दो वर्षो से सिर्फ चर्चा ही चल रही है। लंबी कवायद के बाद पेयजल निगम निर्माण इकाई गंगा की ओर से प्रोजेक्ट के लिए कंसलटेंट की नियुक्ति की गई है। वल्र्ड बैंक के मानकों के अनुसार कंसलटेंट पूरे क्षेत्र का सर्वे कर आंकलन रिपोर्ट तैयार करेगा, जिस पर डीपीआर बनेगी। उसके बाद समूचा प्रोजेक्ट राष्ट्रीय गंगा नदी घाटी प्राधिकरण को भेजा जाएगा। यह सब कब होगा, यह भविष्य की गर्त में है। त्रिवेणी घाट में पिछले तीन वर्षो से भूमिगत नाले के जरिए सीवर गंगा में मिल रहा है। इस योजना पर पेयजल निर्माण इकाई को काम करना है। प्रोजेक्ट भेजा जा चुका है। बीती चार अक्टूबर को मंडलायुक्त सीएस नपच्याल और मेलाधिकारी डी. सैंथिल पांडियन इस क्षेत्र का मुआयना कर लाइन को ठीक करने के लिए कुंभ निधि से 56 लाख रुपये की मंजूरी दे चुके हैं। मगर एक माह बाद भी इस पर काम शुरू नहीं हो पाया है। यहां से सीवर को आगे लिफ्ट करने के लिए 384 लाख रुपये की लागत से पंपिंग स्टेशन बनाया गया था। जिसे पुरानी लाइन से जोड़ा गया था मगर लाइनें फट गई थी। इस पंप हाउस से बहत्तरसीढ़ी तक लाइन डाली गई थी बाद में बहत्तरसीढ़ी से कोयलघाटी तक 965 मीटर नई लाइन को स्वीकृति दी गई थी मगर इस पर काम शुरू नहीं हुआ है। हालत यह है कि त्रिवेणी घाट में सीवर गंगा में मिल रहा है। पेयजल निगम निर्माण इकाई गंगा के परियोजना प्रबंधक पीके गुप्ता ने बताया कि सीवर पुनर्गठन योजना के लिए कंसलटेंट का चयन हो गया है। मेला प्रशासन से मंजूरी के बाद त्रिवेणी घाट के क्षतिग्रस्त नाले पर काम शुरू हो जाएगा। डिग्री कॉलेज के समीप वन भूमि पर 12 करोड़ की लागत वाला छह एमएलडी का ट्रीटमेंट प्लांट व दो किलोमीटर सीवर लाइन का प्रस्ताव भेजा जा चुका है। इससे त्रिवेणी घाट के पंपिंग स्टेशन को जोड़ा जाएगा।