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कैसे करें देवी स्कन्दमाता की पूजा?

[प्रीति झा] नवरात्रि की पंचमी तिथि को स्कंदमाता की पूजा की जाती है। स्कंदमाता भक्तों को सुख-शांति प्रदान वाली है। देवासुर संग्राम के सेनापति भगवान स्कंद की माता होने के कारण मां दुर्गा के पांचवे स्वरूप को स्कंदमाता के नाम से जानते हैं। इनकी पूजन विधि इस प्रकार है- सबसे पहले चौकी (बाजोट) पर स्कंदमाता की प्रतिमा या तस्वीर स्थापित कर

By Edited By: Published: Wed, 24 Sep 2014 02:43 PM (IST)Updated: Wed, 24 Sep 2014 07:38 PM (IST)
कैसे करें देवी स्कन्दमाता की पूजा?

[प्रीति झा] नवरात्रि की पंचमी तिथि को स्कंदमाता की पूजा की जाती है। स्कंदमाता भक्तों को सुख-शांति प्रदान वाली है। देवासुर संग्राम के सेनापति भगवान स्कंद की माता होने के कारण मां दुर्गा के पांचवे स्वरूप को स्कंदमाता के नाम से जानते हैं। इनकी पूजन विधि इस प्रकार है-

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सबसे पहले चौकी (बाजोट) पर स्कंदमाता की प्रतिमा या तस्वीर स्थापित करें। इसके बाद गंगा जल या गोमूत्र से शुद्धिकरण करें। चौकी पर चांदी, तांबे या मिट्टी के घड़े में जल भरकर उस पर नारियल रखकर कलश स्थापना करें। उसी चौकी पर श्रीगणेश, वरुण, नवग्रह, षोडश मातृका (16 देवी), सप्त घृत मातृका(सात सिंदूर की बिंदी लगाएं) की स्थापना भी करें।

इसके बाद व्रत, पूजन का संकल्प लें और वैदिक एवं सप्तशती मंत्रों द्वारा स्कंदमाता सहित समस्त स्थापित देवताओं की षोडशोपचार पूजा करें। इसमें आवाहन, आसन, पाद्य, अ‌र्ध्य, आचमन, स्नान, वस्त्र, सौभाग्य सूत्र, चंदन, रोली, हल्दी, सिंदूर, दुर्वा, बिल्वपत्र, आभूषण, पुष्प-हार, सुगंधित द्रव्य, धूप-दीप, नैवेद्य, फल, पान, दक्षिणा, आरती, प्रदक्षिणा, मंत्र पुष्पांजलि आदि करें। तत्पश्चात प्रसाद वितरण कर पूजन संपन्न करें।

ध्यान मंत्र

सिंहासनगता नित्यं पद्मा@ितकरद्वया।

शुभदास्तु सदा देवी स्कन्दमाता यशस्विनी॥

अर्थात: मां दुर्गा के पांचवें स्वरूप का नाम स्कंदमाता है। इनकी चार भुजाएं हैं। दाहिनी तरफ की ऊपर वाली भुजा में भगवान स्कंद गोद में हैं। दाहिने तरफ की नीची वाली भुजा में कमलपुष्प है। बाएं तरफ की ऊपर वाली भुजा वरमुद्रा तथा नीचे वाली भुजा में भी कमलपुष्प है।

महत्व

नवरात्रि की पंचमी तिथि को स्कंदमाता की पूजा विशेष फलदाई होती है। इस दिन साधक का मन विशुद्ध चक्र में अवस्थित होना चाहिए जिससे कि ध्यान वृत्ति एकाग्र हो सके। यह शक्ति परम शांति व सुख का अनुभव कराती है।

कैसे करें मां स्कंदमाता की पूजा-

माना जाता है कि मां स्कंदमाता की उपासना से मन की सारी कुण्ठा जीवन-कलह और द्वेष भाव समाप्त हो जाता है. मृत्यु लोक में ही स्वर्ग की भांति परम शांति एवं सुख का अनुभव प्राप्त होता है. साधना के पूर्ण होने पर मोक्ष का मार्ग स्वत: ही खुल जाता है।

साधना विधान

सर्वप्रथम मां स्कंद माता की मूर्ति अथवा तस्वीर को लकड़ी की चौकी पर पीले वस्त्र को बिछाकर उस पर कुंकुंम से ऊं लिखकर स्थापित करें। मनोकामना की पूर्णता के लिए चौकी पर मनोकामना गुटिका रखें। हाथ में पीले पुष्प लेकर मां स्कंद माता के दिव्य ज्योति स्वरूप का ध्यान करें।

ध्यान के बाद हाथ के पुष्प चौकी पर छोड़ दें। तदुपरांत यंत्र तथा मनोकामना गुटिका सहित मां का पंचोपचार विधि द्वारा पूजन करें। पीले नैवेद्य का भोग लगाएं तथा पीले फल चढ़ाएं। इसके बाद मां के श्री चरणों में प्रार्थना कर आरती पुष्पांजलि समर्पित करें तथा भजन कीर्तन करें।

स्कंदमाता के मंत्र

ध्यान मंत्र -

सिंहासनगता नित्यं पद्माश्रित करद्वया।

शुभदास्तु सदा देवी स्कंद माता यशस्विनी॥

स्तोत्र मंत्र

नमामि स्कन्धमातास्कन्धधारिणीम्।

समग्रतत्वसागरमपारपारगहराम्घ्

शिप्रभांसमुल्वलांस्फुरच्छशागशेखराम्।

ललाटरत्नभास्कराजगतप्रदीप्तभास्कराम्घ्

महेन्द्रकश्यपाद्दचतांसनत्कुमारसंस्तुताम्।

सुरासेरेन्द्रवन्दितांयथार्थनिर्मलादभुताम्घ्

मुमुक्षुभिद्दवचिन्तितांविशेषतत्वमूचिताम्।

नानालंकारभूषितांकृगेन्द्रवाहनाग्रताम्।।

सुशुद्धतत्वातोषणांत्रिवेदमारभषणाम्।

सुधाद्दमककौपकारिणीसुरेन्द्रवैरिघातिनीम्घ्

शुभांपुष्पमालिनीसुवर्णकल्पशाखिनीम्।

तमोअन्कारयामिनीशिवस्वभावकामिनीम्घ्

सहस्त्रसूर्यराजिकांधनच्जयोग्रकारिकाम्।

सुशुद्धकाल कन्दलांसुभृडकृन्दमच्जुलाम्घ्

प्रजायिनीप्रजावती नमामिमातरंसतीम्।

स्वकर्मधारणेगतिंहरिप्रयच्छपार्वतीम्घ्

इनन्तशक्तिकान्तिदांयशोथमुक्तिदाम्।

पुनरूपुनर्जगद्धितांनमाम्यहंसुराद्दचतामघ्

जयेश्वरित्रिलाचनेप्रसीददेवि पाहिमाम्घ्

कवच ऐं बीजालिंकादेवी पदयुग्मधरापरा।

हृदयंपातुसा देवी कातिकययुताघ्

श्रींहीं हुं ऐं देवी पूर्वस्यांपातुसर्वदा।

सर्वाग में सदा पातुस्कन्धमातापुत्रप्रदाघ्

वाणवाणामृतेहुं फट् बीज समन्विता।

उत्तरस्यातथाग्नेचवारूणेनेत्रतेअवतुघ्

इन्द्राणी भैरवी चौवासितांगीचसंहारिणी।

उपासना मंत्र

सिंहासानगता नितयं पद्माश्रितकरद्वया।

शुभदास्तु सदा देवी स्कन्दमाता यशस्विनी।।


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